भीष्म पितामह के जन्म की कथा
Mahabharat Katha – Bhishma Pitamah Ki Janam Katha
भीष्म पितामह भीष्म पितामह ] सत्यवीर पराक्रमी राजा शंतनू एक बार शिकार खेलने गये | वे गंगा तट पर घने जंगलो में घूम रहे थे | वही सुन्दर आभूषण धारण किये एक अत्यंत रूपवान सुन्दरी दिखाई पड़ी | उस सुन्दरी को देख कर राजा शंतनू के मन आनन्द मग्न हो गया | राजा शंतनू ने मधुर वचनों से कहा | हे सुन्दरी ! तुम देवी , मानुषी , गन्धर्वी , अप्सरा अथवा अन्य कौन हो | तुम जो कोई भी हो मेरी पत्नी बनने का प्रस्ताव स्वीकार करे | राजा शंतनू इस बात से अनजान थे की वह देवी गंगा हैं परन्तु देवी गंगा जानती थी की की ये राजा महाभिष हैं जो इस समय शंतनू हैं पूर्व यादो का स्मरण कर देवी गंगा ने विवाह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया |
देवी गंगा ने कहा – हे राजन ! आप वचन दे और मेरी शर्त स्वीकार करे तब मैं आपको पति रूप में वरण करूंगी | हे राजन ! मैं जो कुछ भी अच्छा या बुरा कार्य करूं आप उसे रोकने के आधिकारी नहीं होंगे |आप मुझसे अप्रिय वचन कभी नहीं कहेंगे | जिस समय आप मुझसे अप्रिय वचन कहेंगे अथवा रोकेगे उसी समय मैं आपको छोड़ कर चली जाउंगी | राजा शंतनू ने सारी शर्ते स्वीकर कर ली | राजा के यो कहने पर गंगा जी राजा की पत्नी बन गई | अनेको वर्ष व्यतीत हो गये | देवी गंगा का गर्भ रह गया उनके पुत्र के रूप वसुकी उत्पन्न हुए | गंगा जी ने उस पुत्र को गंगा में प्रवाहित कर दिया इसी तरह दूसरा , तीसरा , चौथा ,पांचवा , छटा , सातवाँ सभी बालक काल के ग्रास बन गये | राजा शंतनू का धीरज टूट गया और आठवां पुत्र जन्म के समय जब देवी गंगा बालक को नदी में प्रवाहित करने लगी राजा देवी गंगा के चरणों में गिर गये और प्रार्थना करने लगे देवी इस बालक को जीवन दान दे दो | देवी गंगा ने बालक को राजा की गोद में देकर कहा हे राजन ! देवताओ की कार्य सिद्धि के लिए मैं आई थी मैं देवी गंगा हु अब आपका वचन टूट गया अत: मुझे जाना होगा |हे महाभाग ! ये बालक गांगेय नाम से विख्यात होगा | यह बालक सबसे अधिक बलवान होगा | आज मैं इसे अपने साथ ले जाती हूँ जब ये बड़ा हो जायेगा तब मैं इसे लौटा दूंगी , इस प्रकार कह कर देवी गंगा अंतर्ध्यान हो गई | राजा शंतनू शोक में डूब गये | उनके दुःख की कोई सीमा नहीं थी | इसके बाद राजा शंतनू शिकार खेलने गंगा तट पर गये | वंहा एक कुमार दिखाई पड़ा जो गंगा तट पर खेलने में व्यस्त था | बालक विशाल धनुष बाण से अभ्यास कर रहा था | तब देवी गंगा शंतनू की पत्नी के रूप में प्रगट हुई | देवी गंगा बोली ! यह तुम्हारा पुत्र हैं अब तक मैंने इसकी रक्षा की हैं अब यह तुम्हारा कर्तव्य हैं यह आठवां वसु हैं | इस प्रकार कह कर देवी गंगा अंतर्ध्यान हो गई | यही आगे चलकर पितामह भीष्म के नाम से जाने गये | भीष्म जी के जन्म की यही कथा हैं |
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