महाशिवरात्रि व्रत —— 2023
महाशिवरात्रि 18 फरवरी शनिवार 2023
निशीथ काल — 12 बजकर 28 मिनट से 01 बजकर 16 मिनट
प्रथम पहर – सांय 06 बजकर 17 मिनट से रात्रि 09 बजकर 29 मिनट
दिवितीय पहर — रात्रि 09 बजकर 30 मिनट से मध्यरात्रि 12 बजकर 41 मिनट
तृतीय पहर – 12 बजकर 42 मिनट से अंतरात्रि 03 बजकर 53 मिनट
चतुर्थ पहर — अंतरात्रि 03 बजकर 54 मिनट से अगले दिन प्रात:07 बजकर 04 मिनट तक
महाशिवरात्रि व्रत कथा
Maha Shivaratri Vrat Katha
शिव पुराण के अनुसार एक शिकारी जानवरों का शिकार करके अपने कुटुम्ब का पालन पौषण करता था | एक रोज वह वह जंगल में शिकार के लिए निकला लेकिन पुरे दिन परिश्रम के बाद भी उसे कोई जानवर नहीं मिला | भूख प्यास से व्याकुल होकर वह रात्रि में जलाशय के निकट एक बिल्व वृक्ष पर जाकर बैठ गया | बिल्व वृक्ष के नीचे शिव लिंग था जों बिल्व पत्रों से ढका हुआ था | शिकारी को इस बात का ज्ञान नहीं था | भूख से व्याकुल होने के कारण बिल्व पत्र के पेड़ पर परेशान बैठा था की अचानक उसके स्पर्श से नीचे शिव लिंग के ऊपर कुछ पत्ते गिर गये |
शिकार के इंतजार में पेड़ से पत्ते तोड़ तोड़ कर नीचे डालता जा रहा था और अनजाने में ही सारे पत्ते शिवजी को अर्पित हो रहे थे | रात्रि का एक पहर व्यतीत होने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने आई | शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खीची , मृगी बोली , ‘ शिकारी मुझे मत मारों मैं गर्भिणी हूँ | शीघ्र ही अपने बच्चे को जन्म दूँगी | एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे यह उचित नहीं हैं | अपने बच्चे के जन्म के शीघ्र बाद में तुम्हारे पास वापस आ जाऊंगी , तब तुम मुझे मार लेना |’
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शिकारी को हिरनी पर दया आ गई और शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी | मृगी अपने रास्ते चली गई | कुछ समय बाद दूसरी मृगी आई शिकारी ने धनुष बाण चढाया और अनायास ही उसके हाथ से बिल्व पत्र के पत्ते और उसकी आँख से कुछ आंसू की बुँदे शिवजी को अर्पित हो गई |
शिकारी की दुसरे पहर की पूजा सम्पन हो गई | मृगी ने प्रार्थना की आप मुझ पर दया करे पर शिकारी ने कहा मेरा परिवार भूखा हैं | मृगी विनती करती रही शिकारी से उसने वादा किया की उसका कार्य सम्पन्न होते ही वह शीघ्र लौट आयेगी | शिकारी ने उसे भी जाने दिया |मन ही मन सोच रहा था की उन में से कोई हिरनी लौट आयें और उसके परिवार के लिए खाने को कुछ मिल जाये | इतने में ही उसने जल की और आते हुए एक हिरन को देखा , उसको देखते ही शिकारी प्रसन्न हुआ , अब फिर धनुष पर बाण चढाने लगा तभी शिवजी पर कुछ पानी की बुँदे और बिल्व पत्र के पत्ते शिवजी को अर्पित हो गये और पत्तो की आवाज से हिरन सावधान हो गया | उसने शिकारी को देखा और पूछा – “ तुम क्या करना चाहते हो ? “ वह बोला मैं मेरे परिवार के भोजन के लिए तुम्हारा शिकार करना चाहता हूँ |”
वह मृग विचित्र था बोला यह मेरा सौभाग्य हैं की मेरा शरीर किसी के काम तो आएगा, परोपकार से मेरा जीवन सफल हो जायेगा पर कृपा कर अभी मुझे जाने दो ताकि मैं अपने बच्चो को उनकी माँ को सौप कर आता हूँ | शिकारी ने हिरन को सारी बात बताई और कहा तुम मुझे मुर्ख तो नहीं बना कर जा रहे हो यदि तुम भी चले गये तो मेरे परिवार का क्या होगा | हिरन ने सत्य बोलने का वादा किया और चला गया |
शिकारी मन ही मन विचार करते पेड़ के पत्ते तौड कर नीचे गिराने लगा और भावुक हो आखें नम हो गई और शिकारी की चौथे पहर की पूजा सम्पन्न हो गई | शिकारी ने देखा सारे मृग मृगनी अपने बच्चों के साथ आ रहे थे | शिकारी बहुत ज्यादा प्रसन्न हो गया | वचन के पक्के मृग मृगनी उसके बच्चों को देखकर शिकारी का मन करुणा से भर गया और उसने उनको जाने दिया | उसके ऐसा करने देवता भगवान शिवजी प्रसन्न हो कर तत्काल उसको अपने दिव्य रूप का दर्शन करवाया और सभी देवी देवताओं ने पुष्पों की वर्षा की तथा उसको सुख़ समृद्धि का वरदान देकर “ गुह “ नाम प्रदान किया |
और मृग परिवार को मोक्ष की प्राप्ति हुई | यही वह गुह था जिसके साथ भगवान श्री राम ने मित्रता की |
भगवान शिव को भोले नाथ के नाम से भी जाना जाता हैं | भगवान शिव की जटाओं में गंगा जी निवास करती हैं , मस्तक पर चन्द्रमा , तीन नेत्र वाले , नील कण्ठ , हाथ में डमरू , त्रिशूल , अंग पर भस्म रमाये , गले में विषधारी नाग , नंदी की सवारी करने वाले त्रिलोकी नाथ भगवान शिव भक्तो को मन चाहा वरदान देते हैं करुणा के सागर हैं |
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जों महाशिवरात्रि का व्रत करता हैं तथा विधि पूर्वक शिवजी की पूजा करता हैं , उसकी सभी मनोकामनाये पूर्ण हो जाती हैं |
महाशिवरात्रि व्रत पूजन विधि
प्रातकाल स्नानादि से निर्वत हो घर को साफ कर गंगा जल का छीटा लगाये |
मस्तक पर त्रिपुंड तिलक लगाये |
गले में रुद्राक्ष की माला धारण करे |
सभी पूजन सामग्री लेकर घर में या मन्दिर में या मिट्टी का शिवलिंग बनाकर विधि विधान से मन्त्रोच्चार के साथ शिवजी का अभिषेक करे |
महाशिवरात्रि को सभी पहर पूजा करनी चहिये | रात्रि में चारों पहरों की गई पूजा विशेष फलदाई हैं |
रात्रि जागरण अवश्य करे चार पहर की पूजा रात्रि जागरण करके ही सफल होगी
ब्राह्मणों को यथाशक्ति भोजन करवाकर यथाशक्ति दान दक्षिणा अवश्य देवे
गरुड पुराण के अनुसार — भगवान शिव को बिल्व पत्र
कच्चा दूध
गो द्रव्य
गंगा जल
आकडे के पुष्प
धतुरा
भांग
रुद्राक्ष
शहद
घी
कपूर
रुई
रोली ,
मोली
अक्षत
जनेऊ जौड़ा
मिष्ठान नैवेध्य
आदि भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं | इन सब से सात्विक भाव से पुजा अर्चना करे ||
महाशिवरात्रि पूजा क्षमा – प्रार्थना
आवाहनं न जानामि नैव जानामि पूजनम |
विसर्जनम न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरम ||
|| ॐ नम: शिवाय || || ॐ नम: शिवाय || || ॐ नम: शिवाय ||
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