dshmata vrat katha

दशमाता व्रत कथा 3

एक पेड़ पर चिड़िया पक्षियों का जोड़ा रहता था | उनके कोई संतान नहीं थी | दुसरे पक्षी को बाँझ कहकर ताने मारते थे |

चिड़ा व चिड़िया बच्चे न होने के कारण बहुत दुखी रहती थी | एक दिन चिड़िया अन्य पक्षियों के तानो का मन में स्मरण करते हुए दुखी होकर अकेली नदी पर पानी पीने गई | वहा पर कुछ स्त्रियां दशामाता व्रत का डोरा ले रही थी | उनका एक डोरा बच गया था | उनके पास एक डोरा बच गया | जिसे वह डोरा दे देती लेकिन कोई नहीं था |तभी उन्होंने सोचा की इस चिड़िया के गले मैं इस डोरे को बांध देते है | यह यहाँ रोज आकर कथा सुन लिया करेगी | उन्होंने चिड़िया से पूछा तो चिड़िया ने हामी भर ली | स्त्रियों ने चिड़िया को पूजन की विधि दी | | स्त्रियों के कहे अनुसार उन्होंने चिड़िया के गले मैं दशामाता का डोरा बांध दिया और उसे समझा दिया की तुम रोज नो दिन तक यहाँ आकर कहानी सुन लिया करो | दसवे दिन इक्कीस गहु के दाने लाकर उनमे से एक दाना दशामाता के नाम से नदी मैं डाल देना और बाकि 10 दाने तुम खा लेना | चिड़िया ने स्त्रियों के कहे अनुसार नो दिन तक नियमपूर्वक दशामाता की कहानी सुनी | दसवे दिन स्त्रियां द्वारा बताई विधि के अनुसार डोरा एव एक गहु का दाना नदी मैं डालकर दाने खा लिए |

दशमाता व्रत करने से कुछ दिनों में ही उस चिड़िया के भी बच्चे हो गए |  चिड़ा और चिड़िया बहुत प्रसन्न हुए |दुसरे पक्षियों को भी बड़ा आश्चर्ये हुआ की इसे तो बच्चे होते ही नहीं थे | अब बच्चे कैसे होने लगे ? वह चिड़िया बोली -‘ जब मुझे बच्चे नहीं होते थे तो सब मुझे बाँझ कहकर मेरा तिरस्कार करते थे | अब मुझे दशामाता के आशीर्वाद से बच्चे हुए |चिड़ियों के पूछने पर उसने दशामाता का डोरा लेने व व्रत करने की विधि सब पक्षियों को बता दी | तब से जंगल में सरे पक्षी दशमाता का व्रत करने लगे |

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