भगवान भैरव जन्म की कथा | Bhairav Nath Janam Ki Katha

 

भगवान भैरव जन्म की कथा

भगवान भैरव जन्म की कथा  एक बार सुमेरु पर्वत पर बैठे हुए देवताओ को प्रणाम कर ऋषियों ने उनसे पूछा – हे प्रभु ! आप मैं सबसे बड़ा कौन है ? उस समय भगवन शंकर की माया के वशिभुत होकर ब्रहमाजी ने अहंकर मे भरकर कहा – ऋषियों ! इस सम्पूर्ण द्रश्यमान सृष्टी को उत्पन्न करने वाला मैं ही हु | मुझे किसी ने उत्पन्न नहीं किया , मैं ही सर्व शक्तिमान हूँ मैं ब्रह्मा हूँ | बह्माजी के ये अहंकार पूर्ण वचन सुन भगवान नारायण के अंश ऋतू को क्रोध आ गया | ऋतू के कहा – ब्रह्माजी ! आप अज्ञानता वश ये वचन कह रहे हैं सम्पूर्ण संसार का पालन कर्ता मैं नारायण का अंश हूँ | अत स्वयं का बड़ा समझने की भूल मत करो |

दोनों वेदों के पास गये और पूछा – आप हमारे संदेह का निवारण करो हम मैं से बड़ा कौन हैं ? यह सुन विचार कर ऋग्वेद ने कहा जिससे सबका जन्म हुआ हैं वे एकमात्र रूद्र ही सर्वशक्ति मान हैं |

यजुर्वेद ने कहा – जिनका ध्यान ऋषि मुनि निसदिन करते हैं वे एकमात्र शिव ही हैं | सोमवेद ने कहा – जिसके प्रकाश से सम्पूर्ण विश्व प्रकाशित हैं योगीजन जिनका ध्यान लगाते हैं सारा संसार जिनके भीतर हैं वे शिव ही हैं |

अथर्ववेद ने कहा – जो अपने भक्तो पर अति शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं उनके सभी कष्टों को हर लेते हैं वे भगवान शंकर ही हैं |

माया के वशीभूत ब्रह्माजी को यह तर्क उचित नहीं लगा वे अत्यधिक विचलित हो गये तभी एक घटना घटी ब्रह्माजी के मस्तक से एक दिव्य ज्योति उत्पन हुई उस ज्योति से उत्पन्न पुरुष को देखकर ब्रह्माजी का पांचवा मस्तक अत्यंत क्रोधित होकर बोला तुम कौन हो तभी वह बालक रूप  में परिवर्तित हो गया और रुदन करने लगा तब ब्रह्माजी ने यह जानकर की ये बालक मेरे तेज से उत्पन्न हुआ हैं यह वरदान दिया की तुम मेरे मस्तक से प्रकट होकर उत्पन्न हुए इसलिए तुम्हारा नाम भैरव होगा तुममे सम्पूर्ण विश्व के भरण पौष्ण का सामर्थ्य होगा तुमसे काल भी भयभीत होगा इस कारण तुम्हे काल भैरव के नाम से भी जाना जाता हैं | काशी पूरी में जो भी व्यक्ति पाप करेगा उसका लेखा जोखा तुम स्वयं रखोगे चित्रगुप्त काशी वासी का लेखा जोखा नहीं रखा करेंगे |

 

ब्रह्मा के वरो को ग्रहम करने बाद भैरव नाथ ने ब्रह्माजी के पांचवे सिर को काट दिया क्यों की उसने शिवजी की निंदा की थी ब्रह्माजी का सिर काटने के कारण उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा | तब ब्रह्माजी को अपने अपराध का ज्ञान हुआ और ब्रह्माजी ने शिवजी की आराधना विष्णु भगवान ने भी शिवजी की स्तुति की तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी , विष्णु भगवान को अभय वरदान दिया | ब्रह्मा जी ने भैरव नाथ को आज्ञा दी की तुम मेरे पांचवे सिर को हाथ में लेकर भिक्षा याचना करते हुए भक्तो के कष्टों को हरो और ब्रह्म हत्या के पाप का प्रायश्चित करो |  

ब्रह्महत्या के पाप के कारण लाल वस्त्र धारण की हुई भयंकर स्त्री भैरव नाथ के पीछे दौड़ने लगी तब   भगवान शिवजी ने भैरव नाथ से कहा की आप काशी चले जाये और वही पर काशी के कोतवाल बनकर रहे | भैरवनाथ जी ने वैसा ही किया और काशी पहुंचकर ब्रह्माजी का सिर हाथ से छुट गया और भैरव नाथ ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हुए | जिस स्थान पर ब्रह्माजी का कपाल गिरा वह स्थान ‘ कपाल मोचन ‘ के नाम से विख्यात हुआ | ऐसी मान्यता हैं की मार्गशीर्ष की अष्टमी तिथि को भैरव जी ने  ब्रह्माजी के अहंकार का नाश किया था इसलिए इस दिन को भैरव अष्टमी के नाम से जाना जाता हैं जो भी भक्त जन इस दिन भैरव नाथ की उपासना करते हैं उसकी सभी मनोकामनाए पूर्ण हो जाती हैं |

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