अधिकमास पद्मिनी एकादशी 2023 | adhikmaas padmini ekadashi 2023
अधिकमास मलमास / पुरषोतम मास कृष्ण पक्ष
अधिकमास पद्मिनी एकादशी
अधिकमास युधिष्ठिर बोले- हे जनार्दन ! मलमास के शुक्ल पक्ष में कौन-सी एकादशी होती है ? उसका क्या नाम है ? और क्या विधि है ? सो मुझसे कहिए। श्रीकृष्णजी बोले- मलमास अधिकमास में पद्मिनी नाम की पवित्र एकादशी आती है। विधिपूर्वक उसका उपवास करने से वह पद्मनाभ के लोकमे पहुंचा देती है। मलमास की एकादशी पवित्र पापों को दूर करने वाली है। इसका फल ब्रह्माजी भी नहीं वर्णन कर सकते। प्राचीन समय में ब्रह्माजी ने पद्मिनी एकादशी के उत्तम व्रत को विधिपूर्वक नारदजी से सुना है। यह व्रत पापों को नाश करने वाला और भुक्ति-मुक्ति को देने वाला है। भगवान श्रीकृष्ण का वाक्य सुनकर धर्म के जानने वाले राजा युधिष्ठिर प्रसन्न हुए और भगवान् से एकादशी की विधि पूछने लगे। राजा के वचन सुनकर प्रसन्नता से खिले हुए कमल सरीखे नेत्र वाले भगवान् बोले-हे राजन् ! जो मुनियों को भी कठिन है वह मैं तुमसे कहूंगा। व्रती दशमी के दिन नियम करे।
108 कांसे के बर्तन में भोजन, मसूर, चना, कोदों, शाक, शहद, पराया अन्न ये दशमी के दिन वर्जित हैं। हविष्य अन्न भोजन करे। नमक नहीं खाना चाहिए। दशमी के दिन भूमि पर शयन करें और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करे। एकादशी के दिन प्रातकाल स्नानादिसे निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहने | बुद्धिमान मनुष्य बारह कुल्ले करके पवित्र होकर सावधानी से प्रातःकाल सुन्दर तीर्थ में स्नान करने को चला जाए। गोबर, मिट्टी, तिल, कुशा लेकर पवित्र होकर आंवले का चूर्ण शरीर में लगाकर विधिपूर्वक स्नान करे। इस मंत्र का स्मरण करे । सौ भुजा वाले श्रीकृष्ण रूपी वाराह ने तुमको धारण किया है। हे मृत्तिके ! कश्यपजी से अभिमंत्रित की हुई और ब्रह्माजी से दी हुई हो। मैंने सिर और नेत्रों में तुमको लगाया, मेरे अंग को पवित्र करो। हे मृत्तिके ! भगवान् के पूजन के योग्य तुमको नमस्कार है। सब औषधियों से पैदा हुआ, गौ के उदर में स्थित, पृथ्वी को पवित्र करने वाला गोबर मुझे शुद्ध करे। ब्रह्माजी के थूक से पैदा हुए, लोक को पवित्र करने वाले, हे आंवले ! स्पर्श करने से तू मेरे शरीर को पवित्र कर, तुझको नमस्कार है। हे देवताओं के देवता ! हे शंख, चक्र, गदा धारण करने वाले ! हे जगन्नाथ! हे विष्णो ! मुझको तीर्थ में स्नान करने की आज्ञा दीजिए। वरुण के मंत्रों को जपकर गङ्गादि तीर्थों का स्मरण करके जहां कहीं जलाशय हो उसमें विधिपूर्वक स्नान करे। हे नृपसत्तम ! पीछे विधिपूर्वक मुख, पीठ, हृदय, भुजा, सिर और नीचे का अंग इनमें मार्जन करे। फिर सुखदाई, सफेद, शुद्ध अखण्डित धोती पहनकर भगवान् का पूजन करे तो बड़ा पाप नष्ट हो जाता है। विधिपूर्वक, संध्या करके देव और पितरों का तर्पण करे। भगवान् के मन्दिर में आकर कमलापति का पूजन करे। एक मांसे सुवर्ण की बनाई हुई राधाकृष्ण की मूर्ति की तथा महादेव पार्वती की विधिपूर्वक पूजा करे। कलश के
ऊपर तांबे अथवा मिट्टी के पात्र में उत्तम वस्त्र रखकर सुगन्धित करके देवता को स्थापित करे। उसके ऊपर तांबे, चांदी व सुवर्ण का पात्र रखे, उसमें मूर्ति को रखकर विधिपूर्वक पूजन करे। सुन्दर जल, गन्ध, धूप, चन्दन, अगर, कपूर इनसे भगवान् का पूजन करे। कस्तूरी, कुंकुम, श्वेतकमल और उस ऋतु में पैदा हुए फूलों से परमेश्वर का पूजन करे। शक्ति के अनुसार अनेक प्रकार के नैवेद्य, धूप, दीपक, कपूर और आरती से केशव और शिव का पूजन करे। भगवान् के सामने नृत्य और कीर्तन करे। पतित मनुष्यों से बातचीत न करे, न स्पर्श करे। मिथ्या भाषण न करे, सत्य बोले, रजस्वला का स्पर्श न करे, ब्राह्मण और गुरु की निन्दा न करे। वैष्णवों को संग लेकर ठाकुरजी के सामने कथा सुने। मलमास के शुक्लपक्ष की एकादशी में पानी भी न पिये। अथवा इस व्रत में जलपान व दूध पीकर रहना चाहिए और कुछ नहीं खाना चाहिए। रात में कीर्तन और बाजे बजाकर जागरण करना चाहिए। रात के प्रथम प्रहर की पूजा में गोला रखकर अर्घ्य देना चाहिए। दूसरे में श्रीफल से तीसरे में बिजौरे से । चौथे प्रहर में सुपारी से अर्घ्य देना चाहिए। विशेष करके नारंगी से पूजन करना उचित है। प्रथम प्रहर में जागरण से अग्निष्टोम यज्ञ का पुण्य होता है। दूसरे प्रहर में जागरण से वाजपेय का, तीसरे प्रहर में जागरण से अश्वमेध का, चौथे प्रहर के जागरण से राजसूय का फल मिलता है। इस व्रत से अधिक न कोई पुण्य है, न कोई यज्ञ है, न कोई विद्या है, न कोई तपस्या है। जिस मनुष्य ने एकादशी का व्रत कर लिया, उसने पृथ्वी के सब तीर्थ, सब क्षेत्र, इनका स्नान और दर्शन कर लिया। इस प्रकार सूर्योदय तक जागरण करे। सवेरा होते ही अच्छे तीर्थ में जाकर स्नान करे। फिर घर पर आकर पहले कही हुई विधि से भक्तिपूर्वक भगवान् का पूजन करे फिर उत्तम ब्राह्मणों को भोजन करावे। कलश
सामग्री और भगवान जनार्दन की प्रतिमा का विधिपूर्वक पूजन करके ब्राह्मणदेवता को दान कर दे। जो मनुष्य इस विधि से व्रत करता हैं उसको मुक्ति को देने वाला यह व्रत सफल हो जाता है। है अनघ । मलमास के शुक्लपक्ष की जो एकादशी की उत्तम विधि तुमने मुझसे पूछी सो मैंने कह दी। हे नृपनन्दन ! जो प्रसन्नता से पद्मिनी एकादशी का व्रत करता उसने सब व्रत कर लिए। मलमास कृष्णपक्ष की एकादशी की भी यही विधि है। इसका नाम परमा है और सब पापों का नाश कर देती है। यहां मैं एक सुन्दर कथा तुमसे कहूंगा जो कि पुलस्त्य मुनि ने विस्तारपूर्वक नारदजी से कही है। कार्तवीर्य के द्वारा जेलखाने में कैद हुए रावण को देखकर पुलस्त्य मुनि ने राजा से कहकर उसको छुड़ा दिया। इस आश्चर्य को सुनकर दिव्य रूप नारदजी भक्तिपूर्वक पुलस्त्य मुनि से पूछने लगे। कि इन्द्र समेत सब देवता जिस रावण ने जीत लिए, उस युद्ध कुशल रावण को कार्तवीर्य ने कैसे जीत लिया ? नारदजी का वचन सुनकर पुलस्त्य मुनि बोले कि हे वत्स ! मैं कार्तवीर्य की उत्पत्ति तुमसे कहूंगा, तुम सुनो। हे राजन् ! पहले समय में त्रेतायुग में माहिष्मती पुरी में हैहयों के कुल में कृतवीर्य नाम का एक बड़ा राजा पैदा हुआ। उस राजा के एक हजार प्राण प्यारी रानियां थीं। परन्तु उनमें से किसी के राज को सम्भालने वाला पुत्र नहीं हुआ। उसने देवता, पितृगण और बड़े-बड़े सिद्धों का पूजन किया और सिद्धों की आज्ञा से व्रत भी किए, परन्तु पुत्र नहीं हुआ। पुत्र के बिना राजा को राज्य सुखदायक नहीं मालूम होता था, जैसे भूखे मनुष्य को विषय भोग अच्छे नहीं लगते। राजा ने मन में विचार किया कि तपस्या करने से इच्छा पूरी होती है, यह चित्त में सोचकर तपस्या करने का निश्चय किया। यह विचार कर वह धर्मात्मा, वस्त्र और जटा धारण करके घर का भार मंत्री को सौंपकर तप करने को चला गया। इक्ष्वाकु कुल में पैदा हुईं, स्त्रियों में श्रेष्ठ राजा हरिश्चन्द्र की पुत्री पद्मिनी उस राजा की रानी थी, उसने अपने पति को निकलते हुए देखा। वह रानी पतिव्रता थी, उसने अपने पति की तपस्या का तेज देखकर अपने सब आभूषणों को उतारकर चीर वस्त्र धारण कर लिए। अपने पति के साथ गन्धमादन पर्वत पर चली गई। राजा ने वहां जाकर दस हजार वर्ष तपस्या की। उसने गदाधर भगवान् विष्णु जी का ध्यान किया, तब भी राजा के पुत्र नहीं हुआ। उस श्रेष्ठ रानी ने अपने पति के शरीर में हड्डी और चमड़ा शेष बचा देखा। वह पद्मिनी नम्रता से पतिव्रता अनसूया से पूछने लगी कि हे साध्वी ! मेरे पति को तपस्या करते हुए दस हजार वर्ष बीत गए तो भी कष्टों को दूर करने वाले भगवान केशव प्रसन्न नहीं हुए, इसलिए हे महाभागे ! मुझको यथार्थ व्रत बतलाओ जिससे भगवान् मेरी भक्ति से प्रसन्न हो जाएं जिससे मेरे श्रेष्ठ चक्रवर्ती पुत्र पैदा हो। तपस्या करने के लिए आते हुए राजा के पीछे-पीछे आती हुई पद्मिनी रानी की बात सुनकर पतिव्रता अनसूया प्रसन्न होकर कमल नयनी पद्मिनी से बोली- हे सुभ्रु ! यह मलमास / अधिक मास बारहों महीनों में अधिक श्रेष्ठ होता है। हे सुन्दर मुखवाली ! यह बत्तीस महीनोंअर्थात तीन वर्ष में एक बार आता है। इसमें परमा और पद्मिनी नाम की दो एकादशियां होती हैं। उनका व्रत करके विधिपूर्वक जागरण करना चाहिए। इसके करने से पुत्र देने वाले भगवान् शीघ्र प्रसन्न होंगे। यह सुनकर अनसूया ने प्रसन्न होकर मेरी कही हुई व्रत की विधि उसको समझा दी। अनसूया से कही हुई व्रत की विधि को सुनकर पुत्र होने की कामना से सब विधियों को उसने किया। एकादशी को न कुछ खाती न जल पीती थी। रात्रि में नृत्य गीत से जागरण करती थी। व्रत पूर्ण होने पर केशव भगवान् शीघ्र प्रसन्न हो गए। गरुड़ पर बैठकर स्वयं बोले कि हे सुन्दरी ! वर मांग जगत के रक्षक भगवान् का यह वचन सुनकर पचिनी प्रसन्न होकर मन्द मुस्कान करके बोली कि मेरे पति को बहुत बड़ा वरदान दीजिए।पश्विनी के वचन सुनकर प्रिय बोलने वाले कृष्ण भगवान् प्रसन्न हुए और बोले कि हे भद्रे! तूने मुझे प्रसन्न कर लिया। जैसा मलमास मुझे प्यारा है वैसा दूसरा नहीं है। उसमें सुन्दर एकादशी मुझको विशेष प्रिय है। हे सुन्दर मुखवाली ! सुन्दर भृकुटी वाली | तूने विधिपूर्वक एकादशी का व्रत किया है जैसा कि अनसूया ने तुमसे कहा है, इससे मैं तुम पर प्रसन्न हूँ। तुम्हारे पति को मैं इच्छानुसार वर दूंगा। यह कहकर संसार के दुःख हरने वाले भगवान् राजा से बोले-हे राजेन्द्र ! अपनी इच्छानुसार वर मांग लो। रानी ने तुम्हारी कामना सिद्ध होने के लिए मुझे प्रसन्न कर लिया। विष्णु का वचन सुनकर राजा प्रसन्न हो गया। जिसको सब लोक नमस्कार करें ऐसा बड़ी भुजाओं वाला पुत्र मांगा। हे जगत् के स्वामी ! हे मधुसूदन ! तुमको छोड़कर देवता, मनुष्य, नाग, दैत्य, दानव, राक्षस ये कोई जिसको न जीत सकें ऐसा पुत्र होना चाहिए। राजा के ऐसे कहने पर बहुत अच्छा, ऐसे कहकर भगवान् अन्तर्ध्यान हो गए। राजा भी रानी समेत हृष्ट पुष्ट और प्रसन्न हो गया। स्त्री पुरुषों से युक्त रमणीक अपने नगर में आ गया। फिर पद्मिनी के बड़ा बलवान कार्तवीर्य नामक पुत्र हुआ। उसके समान त्रिलोकी में कोई मनुष्य नहीं था। इससे दशकन्ध रावण को उसने युद्ध में हरा दिया। चक्रपाणि गदाधर भगवान् के सिवा त्रिलोकी में उसके जीतने के लिए कोई समर्थ नहीं है। मलमास के प्रसाद और पद्मिनी के उपवास से उसने रावण को जीत लिया, इसमें तुमको विस्मय नहीं करना चाहिए। देवताओं के देवता भगवान् ने महाबली कार्तवीर्य को दिया था। ऐसा कहकर पुलस्त्य मुनि प्रसन्न होकर चले गए। श्रीकृष्ण बोले-तुमने जो मलमास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत पूछा था वह मैंने तुमसे कह दिया। जो
मनुष्य इसको करेंगे वे विष्णुलोक को प्राप्त होंगे। जो तुम इच्छानुसार फल चाहते हो तो तुम भी इस व्रत को विधिपूर्वक करो। केशव का वचन सुनकर धर्मराज बहुत प्रसन्न हुए। अपने भाइयों को संग लेकर युधिष्ठिर ने भी यह व्रत किया। सूतजी बोले- हे द्विज ! पहले तुमने जो एकादशी का पवित्र व्रत पूछा था सो मैंने परम पवित्र व्रत तुमसे कह दिया। फिर अब क्या सुनने की इच्छा है। इस विधि से जो मनुष्य भक्ति से मलमास की एकादशी का व्रत करेंगे और जिन्होंने सुख देनी शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत किया है, वे मनुष्य धन्य हैं। जो मनुष्य इसकी सब विधि को सुनेंगे वे पुण्य के भागी होंगे और जो सब कथा को सुनेगे पढेगे तो इसके फलस्वरूप श्री हरि के चरणों में स्थान मिलेगा |
जय श्री राम
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