बुधाष्टमी व्रत का महात्म्य

Budhashtmi-vrat Ki Vidhi

भगवान श्री कृष्ण बोले — अब में बुधाष्टमी व्रत का महात्म्य [ विधान ] बतलाता हूँ , जिसे करने वाला कभी नरक  का मुहँ नही देखता |

जब जब शुक्ल पक्ष की अष्टमी को बुधवार पड़े तो उस दिन यह व्रत करना चाहिए | पूर्वाह में नदी आदि में स्नान करें और वहाँ से जल से भरा नवीन कलश लाकर घर में स्थापित कर दे , उसमे सोना छोड़ दे और बाँस के पात्र में पक्वात्र भी रखे |

आठ बुधाष्ट्मियो का व्रत करें और आठों में क्रमशः ये आठ पक्वात्र – मोदक , फेनी , घी का अपूप , वटक, श्वेत कसार से बने पदार्थ , सोहालक [ खांड युक्त अशोक वर्तिका ] और फल पुष्प तथा फेनी आदि अनेक पदार्थ बुध को निवेदित कर बाद में स्वयं भी इष्ट मित्रों के साथ बुधाष्टमी की कथा सुने | बुध की एक माशे [ 8 रति – एक माशा ] या आधे माशे की सुवर्णमयी प्रतिमा बनाकर गंध ,पुष्प , नैवैध्य , पित वस्त्र तथा दक्षिणा आदि से उसका पूजन करे पूजन के मन्त्र इस प्रकार हैं —

ॐ बुधाय नम: ,

ॐ सोमात्म्जाय नम: ,

ॐ दुर्बुद्धिनाशय नम: ,

ॐ सुबुद्धिप्रदाय नम : ,

ॐ ताराजाताय नम : ,

ॐ सौम्यप्ग्रहाय नम: ,

ॐ सर्व सौख्य प्रदाय नम: ,

तदन्तर निम्नलिखित मन्त्र पढकर मूर्ति के साथ – साथ वह भोज्य सामग्री तथा अन्य पदार्थ ब्राह्मण को दान कर दे |

इस विधि से जों बुधाष्टमी व्रत करता हैं , वह सात जन्म तक जातिस्मर होता हैं | धन , धान्य , पुत्र , पौत्र , दीर्घ आयुष्य और एश्वर्य आदि संसार के सभी पदार्थों को प्राप्त कर अंत समय में नारायण स्मरण करता हुआ तीर्थ –स्थानों में प्राण त्याग करता हैं और प्रलय पर्यन्त स्वर्ग में निवास करता हैं | जों इस विधान को सुनता हैं , वह भी ब्रह्म ह्त्यादी पापों से मुक्त हो जाता हैं |

इस के बाद बुधाष्टमी व्रत की कथा

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