उमा महेश्वर व्रत और पूजा विधि |Uma Maheshwar Vrat Vidhi

उमामहेश्वर व्रत का महत्त्व

समस्त व्रतो में श्रेष्ठ एक व्रत हैं जिसे उमामहेश्वर व्रत के नाम से जाना जाता हैं |भविष्य पुराण के अनुसार यह व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता हैं |

यह व्रत भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि को भी किया जाता हैं इसका उल्लेख नारद पुराण में मिलता हैं | इस व्रत को करने से स्त्रियों को गुणवान सन्तान ,पुत्र पौत्र , धन – धान्य , अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं |

इस व्रत को वैदिक काल में दमयन्ती , तारा , अनसूया आदि सभी ने किया था |

उमामहेश्वर व्रत विधि

मार्गशीर्ष मास की तृतीया तिथि को पवित्र तीर्थ स्थान गंगा आदि पर स्नानादि से निर्वत होकर भगवान शिव और माँ पार्वती की पूजा स्थान पर मूर्ति स्थापित करते हुए उनका ध्यान करना चाहिये | पूजा के बाद गाय के गुत्र , दूध ,दही का सेवन करना चाहिए , तथा रात्रि जागरण कर यथा शक्ति ब्राह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा देकर भगवान देवाधिदेव शिव पार्वती का स्मरण करते हुए इस मन्त्र को बोले –

नमो नमस्ते देवेश उमदेहार्धधारक |

महादेवी नमस्तेस्तु हरकायार्धवासिनी ||

माँ भगवती को अपने आधे भाग में धारण करने वाले भगवान देवाधिदेव भोले नाथ ! आपको बारम्बार नमस्कार हैं | महादेवी आप भगवान के आधे भाग में निवास करने वाली हैं आपको बारम्बार नमस्कार |

इस व्रत को जो स्त्री विधिपूर्वक करती हैं वह शिवजी के समीप एक कल्प तक निवास करती हैं |जीवन में समस्त सुख भोग कर अंत में शिव लोक में निवास करती हैं |

उमा महेश्वर व्रत कथा

एक बार ऋषि दुर्वासा भगवान शिव से भेट कर लौट रहे थे | मार्ग में उनकी भेट भगवान विष्णु से हो गई | दुर्वाषा ऋषि ने प्रसन्न होकर भगवान शिव की बिल्व पत्र की माला विष्णु भगवान को दी और भगवान विष्णु ने वह माला गुरुड को पहना दी इससे दुर्वाषा ऋषि क्रोधित होकर बोले – तुम्हारे पास से लक्ष्मी क्षीर सागर में चली जाये | यह सुनकर भगवान विष्णु ने महर्षि दुर्वासाको प्रणाम कर उपाय पूछा | ऋषि दुर्वासा ने उमामहेश्वर व्रत करने को कहा | भगवान विष्णु ने यह व्रत किया और व्रत के प्रभाव से लक्ष्मी जी और क्षीर सागर को पुनः प्राप्त किया |

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