जय लक्ष्मी स्वामी , प्रभु जय कमला स्वामी |
प्रभो सत्यनारायण जय अन्तर्यामी || टेर ||
शुक्ल…वर्ण पीताम्बर…वनमाला धारी |
चक्र सुदर्शन कर में , रिपुगण भयकारी || १ ||
शंक गदात्पल सुन्दर , हाथों में सोहे |
तब सुन्दरता देखत , कोटि मदन मोहे || २ ||
राधा – कृष्ण तुम्हीं हो , तुम राघव सीता |
जो नर तुमको घ्याते , पाते मन चीता || ३ ||
काशीनगर – निवासी , दिविज पर कृपा करी |
किया उसे जनपूजित , भिक्षावृति हरी || ४ ||
उल्कामुख राजा को , दे सूत हरषाय |
सत्य प्रभाव जगत में , सबको दरसाया || ५ ||
कथा वैश्य ने बोली , पर न करा पाया |
उसका फल भोगकर , प्रभु ने अपनाया || ६ ||
आर्त प्रार्थना को प्रभु , सुन लेते झटपट |
कथा व्यर्थ हैं जिसके , मन में झूठ कपट || ७ ||
तब प्रसाद के त्यागे , नरपति दुःख पाया |
प्रायश्चित किया तब , मनवांछित फल पाया || ८ ||
मदग प्रसाद तुन्हें प्रिय , केला है फल में |
भाव भक्ति से राजी , हो जाते पल में || ९ ||
हम हरी तुमसे मांगे , कृपया यह वर दो |
सत्य धर्ममय जीवन , हम सब का कर दो || १० ||
सत्यदेव की आरती जों मानव गावे |
“ धरणीं ” पर सुख़ पावे , भव से तिर जावे || ११ ||
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