श्रवण द्वादशी व्रत 

श्रवण द्वादशी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष द्वादशी को करने का विधान हैं | इस दिन श्रवण नक्षत्र और बुधवार हो तो अति उत्तम हैं | इस व्रत को बारह वर्ष तक करने का विधान हैं | इसके पश्चात उद्यापनकरना चाहिये | इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाये पूर्ण हो जाती हैं | यह व्रत अति शीघ्र फल देने वाला हैं |

व्रत की विधि
 
प्रातकाल नदी या तालाब पर जाकर स्नानादि से निर्वत होकर व्रत करना चाहिए | श्रवण नक्षत्र युक्त बुधवार को यह व्रत करने से सभी व्रतो का फल प्राप्त होता हैं | इसको किये सभी दान पुण्य अक्षय हो जाते हैं | इस व्रत में भगवान विष्णु की प्रतिमा का पूजन करना चाहिए | रात्रि जागरण कर श्री हरि के भजन करना चाहिए | प्रातकाल स्नानादि से निर्वत होकर भगवान का पूजन कर पुष्प अर्पित कर प्रार्थना करे | ब्राह्मण भोजन करवाये यथा शक्ति दान दक्षिणा देवें |

श्रवण द्वादशी व्रत कथा

प्राचीन कल में एक वर्णिक अपने साथियों से बिछुड़ गया | भूख प्यास से व्याकुल होकर इधर उधर भटकने लगा | वह थक हार कर एक स्थान पर बैठ गया और विचार करने लगा अब में क्या करू तभी उसे एक प्रेत को बैठे देखा | वह प्रेत वर्णिक के पास आया और बोला – तुम इस निर्जन स्थान पर क्या कर रहे हो | वर्णिक ने बतलाया की वह अपने साथियों से बिछड़ गया हैं | मैं किसी पूर्व जन्म के फल से यहाँ पहुँच गया हूँ | मैं भूख प्यास से व्याकुल हूँ | प्रेत ने कहा ! तुम क्षण भर इस वृक्ष के निचे विश्राम करो तुम्हे पुण्य फल की प्राप्ति होगी | वृक्ष में से एक पुण्यात्मा प्रगट हुई उसने प्रेतों को  वर्णिक ने एक भाग प्रेतों को दिया दूसरा दाल भात का भाग स्वयं भोजन किया | वर्णिक ने प्रेत से पूछा – आप ग्रास मात्र में ही कैसे संतुष्ट हो गये आपकी प्रेत योनी में आने का क्या कारण हैं |

मैंने पहले बहुत पाप किये | कभी किसी प्यासे को जल नहीं पिलाया  कभी किसी भूखे को भोजन नहीं दिया | कभी अकस्मात ही में एक ब्राह्मण के साथ नदी में स्नान करने गया | वह दिन श्रवण द्वादशी का था मैंने विष्णु भगवान का पूजन किया | मैं ईश्वर को नहीं मानता था नास्तिक था इसी कारण मुझे प्रेत योनी प्राप्त हुई | उस व्रत के पुन्य फल के कारण सभी प्रेत मेरे सेवक बन गये | हे वर्णिक आप हम पर दया कर गया जाकर श्राद्ध करवाए | वर्णिक ने अत्यधिक धन अर्जित कर सभी प्रेतों को मुक्त किया सभी ने आशीर्वाद दिया | वह धन धान्य से सम्पन्न हो पुत्र पोत्र का सुख प्राप्त कर अंत मैं स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त किया |

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