पुत्रदा एकादशी पौष पुत्रदा एकादशी महात्म्य 

युधिष्ठर ने पूछा – स्वामी ! पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम हैं ? उसकी क्या विधि हैं तथा इस दिन किसकी पूजा की जाती हैं ? यह बतलाइए | भगवान वासुदेव ने कहा – हे राजन ! पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता हैं इस व्रत में भगवान जनार्दन का पूजन किया जाता हैं | अब मैं इस एकादशी का महात्म्य सुनाता हूँ ध्यान पूर्वक सुने |

राजन इस व्रत को विधि पूर्वक करना चाहिए | यह सब पापों को हरने वाली उत्तम तिथि हैं | समस्त संसार के अधिष्ठदाता भगवान नारायण इस तिथि के देवता हैं | सम्पूर्ण संसार में इसके समान कोई  तिथि नहीं हैं | व्रत नहीं हैं |

प्राचीन काल में भद्रावती नगरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे | उनकी रानी का नाम शैव्या था | राजा के कोई पुत्र नहीं था इसलिए राजा रानी बहुत दुखी रहते थे | राजा के पितृ दुखी होकर पिण्ड लिया करते थे | राजा के बाद वंश आगे बढ़ाने वाला कोई न था | यही विचार कर राजा के पितृ दुखी रहते थे |

एक दिन राजा घोड़े पर स्वर हो वन में चले गये | राजदरबार में पुरोहित आदि को भी इस बात का पता नहीं था | मृग और पक्षियों से युक्त उस जंगल में राजा भ्रमण करने लगे | मार्ग में जंगली जानवरों की आवाजे आ रहीं थी | रीछ , जंगली हिरन इधर – उधर भ्रमण करते दिखाई दे रहे थे | इस प्रकार राजा जंगल में भ्रमण कर रहे थे दोपहर हो गई | राजा भूख प्यास से व्याकुल होने लगे और पानी की तलाश में भटकने लगे | राजा को पूण्य के प्रभाव से एक सरोवर दिखाई दिया , वहा ऋषि मुनियों के आश्रम थे | राजा ने आश्रमों की और देखा | उस समय राजा का मन अत्यंत प्रसन्न होने लगा उसी क्षण राजा का दाहिना हाथ और दाहिनी आँख फडकने लगी जो अत्यंत शुभ संकेत था | वेदपाठी मुनियों को देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ | राजा ऋषि मुनियो की चरण वन्दना करने लगे ऋषि मुनियों की सेवा करने लगे दण्डवत प्रणाम किया | मुनियों ने कहा हे राजन हम प्रसन्न हुए |

राजा बोले – हे मुनि श्रेष्ठ आप सब यहाँ किस उद्देश्य से एकत्रित हुए हैं ? कृपा कर आप मुझे बतलाइए | मुनि बोले – राजन हम यहाँ स्नान के लिए आये हैं माघ मास निकट आया हैं आज के पांचवे दिन से माघ स्नान आरम्भ हो जायेगा | आज ही पुत्रदा नामक एकादशी हैं जो व्रत करने वालो को पुत्र देती हैं |

राजा ने कहा – हे विश्वदेवगण ! यदि आप लोग मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दीजिये |

मुनि श्रेष्ठ बोले –  राजन ! आज पुत्रदा एकादशी व्रत हैं तुम आज श्रद्धा पूर्वं इस व्रत को करो | राजन ! भगवान श्री हरि के प्रसाद से तुम्हे अवश्य पुत्र प्राप्त होगा |

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं – युधिष्ठर ! इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने उत्तम व्रत का पालन किया | मुनियों के आज्ञा अनुसार व्रत का अनुष्ठान किया | द्वादशी को पारण कर ऋषियों को प्रणाम कर राजा अपने राज्य में लौट आये |

रानी ने नवें माह सुंदर तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट कर दिया | वः प्रजावत्सल , प्रजापालक हुआ | इसलिए राजन पुत्रदा एकादशी का उत्तम व्रत अवश्य करना चाहिए |

व्रती एकाग्रचित होकर पुत्रदा का व्रत करते हैं वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात स्वर्ग में स्थान प्राप्त करते हैं | इस व्रत को करने से मनुष्य निश्चय ही पाप मुक्त हो जाता हैं | इसके महात्म्य को सुनने मात्र से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता हैं |

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