पौष रविवार
पौष रविवार व्रत का महत्त्व | पौष रविवार व्रत की कथा |
पौष रविवार पौष रविवार मल मासके महीने में एक माह तक जो भी रविवार रहता हैंउसको आता हैं | पौष रविवार ये पौष मास में प्रारम्भ होते हैं | मल मास में समस्त शुभ कार्य वर्जित होते हैं | परन्तु इस समय अपने इष्ट देव की आराधना व दान पुण्य का विशेष महत्त्व हैं | इस मास में किये गये दान पुण्य अधिक फल प्रदान करते हैं | मल मास में शुभ कार्य नही करने चाहिये | जैसे – यज्ञ , तीर्थ यात्रा , देव मूर्ति स्थापना की प्राण प्रतिष्ठा , यज्ञ पवित संस्कार ,विवाह , गृह प्रवेश , वास्तु पूजा , कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करते हैं | इस मास में प्रतिदिन घर की महिलाओ को प्रात: स्नानादि से निर्वत हो भगवत गीता के पाठ करने से सारे कष्ट दुर हो जाते हैं | भगवान विष्णु की कृपा आप व आपके परिवार पर बनी रहती हैं | अखंड सौभाग्य मिलता हैं |
पौष रविवार भगवान विष्णु की इन मन्त्रो से करे जप – पौष रविवार मन्त्र
ॐ नारायणाय विद्महे |
वासुदेवाय धीमहि |
तन्नो विष्णु प्रचोदयात ||
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे |
हे नाथ नारायण वासुदेवाय ||
पौष रविवार इस मास में रविवार का व्रत कर भगवान सूर्य को आसानी से प्रसन्न किया जा सकता हैं | भगवान सूर्य पुष्प आदि के द्वारा पूजन करने से आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं | और उत्तम फल देते हैं |यदि इस रविवार को व्रत करने वाला भगवान सूर्य नारायण की आराधना में तत्पर रहे तो सन्तान आज्ञाकारी होती हैं तथा माता पिता से अधिक स्नेह करती हैं | और सन्तान का तेज सूर्य के समान बढ़ता जाता हैं | प्रभाव , मान सम्मान ,समाज में प्रतिष्ठा मिलती हैं |
पौष रविवार व्रत विधि –
पौष रविवार के दिन अलूना भोजन करे ,सूर्य भगवान की आराधना करे , दिन में तिन समय सूर्य को अर्ध्य प्रदान करे |इस दिन छाछ नही बनाये , महिलाओ को सिर नही धोना चाहिये , तेल नही खाना चाहिए , नीले वस्त्र नही पहनने चाहिए | पूजा करके कहानी सुनना चाहिए |
पौष रविवार व्रत की कहानी
पौष रविवार ] एक साहूकार था | उसके बच्चा नही था | एक दिन सवेरे वो बाहर गया , देखा एक किसान खेत में दाना डालने जा रहा था | साहूकार के मिलते ही वो वापस लौट गया और बोलता गया , आज तो शगुन अच्छा नही हुआ | किसान की बात साहूकार ने सुन ली उसका मुंह उतर गया उदास मन से जब घर गया तो उसकी पत्नी ने उदासी का कारण पूछा , आज क्या बात हैं ? साहूकार ने सारी बात बताई तो पत्नी बोली आज चिड़िया आई तो वे भी बोली , बच्चे नहीं यहाँ तो दाना कहाँ से मिलेगा कहकर उड़ गई | साहूकार को क्रोध आया | उसी दिन से सूरज भगवान की आराधना करने लगा | 12 वर्ष बीत गये | राणा दे जी ने सूरज भगवान से कहाँ यह इतने मन से आपकी आराधना करता हैं इसकी पुकार सुन लो जी |
सूर्य भगवान ने उसके सामने प्रकट हुए और कहाँ तेरे भग्य में सन्तान नही हैं पर मेरे आशीर्वाद से एक कन्या होगी |
नवें महीने एक कन्या ने उनके घर में जन्म लिया | कन्या जब हसंती तो उसके मुख से हीरे मोती गिरते | मालिश वाली आती और हीरे मोती ले जाती | एक माह बाद मालिश वाली का आना बंद कर दिया तो उसकी माँ को हीरे मोती मिलने लगे | उनके घर में बहुत धन – दौलत हो गई | उसके पिता ने सोचा लडकी बड़ी हो गई हैं इसकी शादी कर देते हैं | उसकी माँ ने कहा मेरे उठते ही इसका मुँह देखने का नियम हैं | क्यों नहीं हम घर जँवाई रख लेते हैं | एक गरीब लड़का ढूंढा और उसकी शादी के दी | शादी के बाद रोज सुबह उसकी माँ उसको उठाने जाती तो लडके को बुरा लगता तो लडकी ने प्यार से समझा दिया की माँ के मेरा मुँह देखने का नियम हैं | एक दिन जवाई ने लडकी को उठा दिया और देखा हीरे मोती उसके मुँह से गिर रहे हैं उसने उठा लिया | लडकी की माँ आई तो समझ गई की जँवाई को पता चल गया | उसके मन में लालच ने घर कर लिया उसने अपने जँवाई को मारने के लिएएक आदमी भेज दिया |आदमी ने जँवाई को मार दिया और उसका सिर सासु को लाके दे दिया | राणा दे जी और सूरज भगवान ने सोचा म्हारी दी हुई लडकी के पति को मार दिया उसकी रक्षा करनी चाहिये | सूज भगवान ब्राह्मण का रूप धारण कर के गये और भिक्षा में जँवाई का सिर ले आये | अंग जौडकर अमृत का छिता दिया और उसका पति जीवित हो गया | लडकी के पौष रविवार का व्रत करने का नियम था | वह पूजा कर कहानी सुन भोजन करने के लिये पति का इंतजार कर रही थी | उसका पति आया तो उसने पूछा आपको पता नहीं हैं क्या दिन अस्त होने पर में खाना नही खा सकती |अगले दिन खाना पड़ता हैं | उसके पति ने उसको सारी बात बताई | बेटी बोली अब हम यहाँ नही रहेंगे | सास ने बहुत पश्चाताप किया पर बेटी अपने पति के साथ ससुराल में शुख पूर्वक रहने लगी | उसके घर में सुख़ स्मृद्दी हो गई | हे सूरज भगवान ! जेसी बेटी पर कृपा करी वैसी सब पर करना | उसने अपने परिवार पुत्र पौत्र के साथ जीवन यापन कर अंत में सूर्य लोक में स्थान प्राप्त किया |
|| जय बोलो सूरज भगवान जी जय ||
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