भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार धारण करने कि कथा

मोहिनी अवतार भगवान श्री हरि विष्णु के स्त्री रूप धारण करने की कथा हैं |जो इस रूप के के दर्शन व इसकी महिमा को श्रवण करता हैं उसका कल्याण निश्चित हैं | भगवान विष्णु ने मोहक रूप धारण कर दैत्यों को अमृत पीने से रोका |

मोहिनी रूप का चित्रण

भगवान विष्णु ने अत्यंत मनमोहक स्त्री अवतार धारण करने की कथा हैं | समुन्द्र मंथन के समय जब असुरो की दृष्टि अमृत कलश पर पड़ी तब असुरो ने अमृत कलश छीन लियाऔर देवताओं का मन विषाद से भर गया तब सभी देवता भगवान जी की शरण में गये और देवताओं की करुण पुकार सुनकर भक्त वत्सल भगवान ने देवताओं से कहा – “ मैं तुम्हारा कार्य अवस्य ही सिद्ध करूंगा “ | अमृत के ग्रहण करने की बात पर असुर आपस में झगड़ने लगे की अमृत का पान पहले कौन करेगा ?सभी एक स्वर में कहने लगे ‘ पहले मैं पिऊंगा ,पहले मैं , पहले मै का स्वर गूंजने लगा | तभी देवताओं का कार्य सिद्ध करने वाले भगवान विष्णु ने अत्यंत अद्भुत अत्यंत मनमोहक , अवर्णनिय स्त्री रूप धारण कर लिया | भगवान विष्णु के मोहिनी रूप का वर्णन करना असम्भव हैं उस रूप की कल्पना करना भी सम्भव न था | उनका शरीर नील कमल के समान स्याम और नयनो को अपनी और आकृषित करने वाला था | सुन्दर कपोल ऊँची नासिका , रमणीय मुख , पतली और आकृषित करने वाली कमर लम्बे केश सुन्दर कंठ माला धारण किये हुए , सुन्दर भुजाओं में बाजूबंद शौभीत थे |

मोहिनी रूप में अमृत वितरण करना

स्त्री रूप धारण करे साक्षात् भगवान असुरे की और जाने लगे असुरो की दृष्टि मोहिनी रूप धारण किये हुए प्रभु के स्त्री रूप पर पड़ी | जिस भी असुर की दृष्टि सुन्दर स्त्री पर पड़ी वही मोहित हो गया और उनके पद चाप के पीछे पीछे चलने लगा | और विचार करने लगे यह अनुपम सुन्दरी जिसके चारों और प्रकाश हैं | उन्होंने पूछा हे अनुपम सुन्दरी ! तुम कौन हों  | हे कमल नयनी तुम कौन हो ? किसकी कन्या हो और किस उद्धेश्य से यहाँ आई हो | सुन्दरी अवस्य ही विधाता ने ही दया करके हमारे लिए तुम्हे यहाँ भेजा होगा | हे सुन्दरी अब तुम यहाँ आई हो तो हमारा झगड़ा सुलझाने में हमारी सहायता करो | न्याय के अनुसार इस अमृत का निष्पक्ष वितरण कर दो | असुरो की इस प्रकार की विनती सुन कर स्त्रीरूप धरी प्रभु ने पहले तो आनाकानी की परन्तु फिर रहस्यपूर्ण भाव से हंसकर अमृत कलश स्वीकार किया | मोहिनी रूप धारी स्त्री ने दैत्यों की सहमती से देवताओ और असुरों से एक दिन उपवास कर स्नान ध्यान के नवीं वस्त्र धारणकरने के  पश्चात पूर्व की और मुख कर आसन पर विराजमान हुए |  मोहिनी रूपधारी स्त्री के अपने मोहक रूप हाव भाव से सबका मन अपने वश में कर लिया और असुरो को अटखेलिया दिखाते हुए देवताओं को अजर अमर करने वाला अमृत का पान करवाने लगे उन क्रूर स्वभाव वाले द्त्यो को मोहिनी रूप धारी प्रभु से अत्यंत प्रेम हो गया था इसी कारण असुर शांत चित से मोहिनी को देखते रहे उन्होंने झगड़ा नहीं किया क्यों की उन्हें कुछ भी ज्ञान नहीं था वे सभी मोहिताव्स्था में थे | 

जिस समय भगवान देवताओं को अमृत पिला रहे थे उस समय राहू नामक दैत्य सुर रूप धारण कर देवताओ की पंक्ति में आ बैठा और अमृत पान करने लगा तो सूर्य और चन्दमा ने उसको देख लिया और मोहिनी रूप धारी भगवान ने उसी क्षण अपने चक्र से राहू का सिर काट डाला क्यों की उसने मुख में अमृत को कंठ से निचे नहीं उतार पाया था इसी कारण उसका मुख अमर हो गया इसी कारण ब्रह्माजी ने उसे ग्रह  बना दिया और उसी वैर का बदला लेने के लिए पूर्णिमा और अमावस्या को दोनों पर हमला करता हैं | देवताओ को प्रभु की कृपा मिली और अपनी प्रकृति के अनुसार प्रभु से वैर रखने के कारण उन्हें अमृत से वंचित रहना पड़ा |  

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