महामृत्युंजय मन्त्र का अर्थ और महिमा | Mahamrityunjay Mantra Ka Arth Aur Mahima

pitr ji ke geet

महामृत्युंजय मन्त्र का अर्थ और महिमा

Mahamrityunjay Mantra Ka Arth Aur Mahima

ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगंधी पुष्टिवर्धनम् | उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ||

महामृत्युंजयी मन्त्र महामंत्र हैं इस मन्त्र के द्धवारा भगवान शिव की आराधना करते हैं | इसे संजीवनी मन्त्र भी कहते हैं यह अत्यंत प्रभावशाली मन्त्र हैं | इस मन्त्र का क्रमबंध विधिपूर्वक जप करने से शरीर के चारों और दैविक शक्तियों का सुरक्षा कवच बन जाता हैं |इस मन्त्र के नियमित उच्चारण व श्रवण करने से कष्ट , दुर्भाग्य , अमंगल , विपतिया मानव मात्र से कोसो दूर रहती हैं ,तथा सुख समृद्धी का वास होता है | हम त्रिनेत्र धारी भगवान शिव की आराधना करते हैं जो सुगंधी के कोष है जो सभी का पोषण कर वृद्धि प्रदान करते है | भगवान शिव से प्राथना है की वो हमे अमृत के लिये म्रत्युलोक से मुक्त करे | जैसे की पक्की हुई ककड़ी अपनेआप बेल से अलग हो जाती हैं | उसी प्रकार भगवान  पुनर्जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिला कर मोक्ष  प्रदान करते हैं | यह महामंत्र मोक्ष प्राप्ति का अत्यंत प्रभावशाली साधन है | इससे मानव मात्र दीर्घायु होकर इस लोक में तथा स्वर्ग में स्थान प्राप्त करते हैं |

निरंजनो निराकार एको देवो महेश्वर मृत्युमुखात् गतं प्राणं बलादाकृष्य रक्षते अर्थात निरंजन निराकार महेश्वर ही एक मात्र महादेव हैं जो मृत्यु के मुख में गये हुए प्राण को बलपूर्वक निकालकर उसकी रक्षा करते हैं |

मार्केंडऋषि का पुत्र मार्केंडेय अल्प आयु था | ऋषियों ने उसको शिव मन्दिर में जाकर महामृतुन्ज्य मन्त्र जपने को कहा ऋषियों में श्रद्धा रखकर शिव मन्दिर में महामृत्युंजयी मन्त्र का यथा विधि जाप करने लगे | समय पर यमराज आये किन्तु महामृत्युंजय की शरण में गये हुए को कौन छू सकता हैं | यमराज लौट गये | मार्कण्डेय ऋषि दीर्घ आयु पाई और मार्कण्डेयपुराण पुराण की रचना भी की |

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