महाकुंभ के प्रारंभ की कथा
कद्रूऔर विनीताकी कहानी
कुंभ शब्द का अर्थ है है कलश । घड़ा
कद्रूऔर विनीता दोनो बहने थी और वे दोनो ही काळी कश्यप की पत्नीमा जी। एक दिन कछु ने अपने स्वामी ऋषी कश्यप से वरदान माँगा कि एक हजार विषेले और शक्तिशाली पुत्र चाहिये ।ऋषि कश्यप ने तथास्तु कहा। और कद्रू को एक हजार अण्ड मिले। यह देखकर चिनिता ने भी ऋषि कश्यप से वरदान माँगा ।
कि भले ही उसके पुत्र कम हो लेकिन वे कद्रू के पुत्रो से अधिक शक्तिशाली हो। ऋषि कश्यप ने विनिता को भी तथास्तु कहा और उन्हें भी दो बड़े अण्डे मिले । समय बितने के साथ कद्रू के अण्डों में से 1000 सांप उत्पन्न हुये। इस लिए कद्रू को सर्पों की माता भी कहते है। लेकिन विनिता के अण्डे नहीं फुट रहे थे।
विनिता ने व्याकुल होकर एक अण्डा पहले फोड़ दिया । जिसमें से एक अधुरा जीव निकला जो कमर से ऊपर तक ही था। उसने अपनी माँ से कहा माँ आपने मेरे साथ अन्याय किया है। लेकिन दुसरे अण्डे के साथ ऐसा मत करना। वह जीव उड़ गया उसे अरुण नाम से जानते है। जो सूर्य देव का सारथी है। एक दिन कद्रू ने सूर्य देव के घोडे को देखकर शर्त लगाई। विनिता ने कहा में घोड़ा पूरी तरह से सफेद है लेकिन कद्रू ने कहा कि इसकी पूछ काली है। और जो भी हार जायेगा उसे दासी बनना पड़ेगा ।कद्रू ने अपने नाग पुत्रो से कहा कि ने सुक्ष्म रूप धारण कर घोड़े की पूछ से लिपट जाना ताकी पूंछ काली दिखे नागों ने ऐसा ही किया। और कद्रू शर्त जीत गई।
विनीता के हारने के कारण उसे दासी बनना पड़ा । कुछ समय बाद विनिता के दुसरे अण्डे से एक शक्तिशाली जीव निकला जिसका चेहरा गरुड जैसा और शरीर मनुष्य जैसा उसका नाम गरुड़ रखा गया। जब गरुड़ ने अपनी माता विनिता को दासी बने देखा । तव गरुड ने मां को कैसे दासी से मुक्त करवाने का संकल्प लिया। गरुड़ ने सर्पों से अपनी माता को मुक्त कराने को उपाय पुछा तो उन्नहोने कहा तुम्हे स्वर्ग से हमें अमृत कलश लाकर देना होगा। गरुड़ ने शर्त मान कर बैकुण्ड आकर अमृत कलश लिया । देवताओं ने उन्हें रोकने का प्रयास किया। लेकिन गरूड़ अपनी शक्ति से ले आये। भगवान विष्णु ने स्वयं गरूड़ से पूछ तुम इसे क्यो ले जा रह हो ? जब तुम खुद अमृत पान नहीं कर रहे। गरुड़ ने भगवान विष्णु जी को सारी बात बताई। तब भगवान ने कहा कि तुम्हे कलश ले जाने के लिए मेरा वाहन बनना पडेगा। ।तब गरुड़ ने भगवान विष्णु का वाहन बनना स्वीकार किया।
गरुड़ ने अमृत कलश सर्पों को दे दिया। और अपनी मांता को दास्ता से मुक्त करवाया। और विष्णु भगवान ने अपकी लीला गायब कर अमृत कलश से सर्पों से अमृत वापस ले लिया ।
ऐसा माना जाता है कि जब गरुड़ जी अमृत ला रहे थे । तब कुछ बुंदे हरिद्वार , प्रयागराज , उज्जैन और नासिक पर गिरी । अमृत की बूंदे इन पवित्र स्थानों पर गिरने के कारण इन स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है। यही कारण है कि इन चार पवित्र स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।