माघ मास महात्मय पन्द्रहवां अध्याय

दत्तात्रेय जी कहते हैं  कि हे राजन् ! प्रजापति ब्रह्मा ने पापों के नाश के लिएमाघ मास में  प्रयाग तीर्थ की उत्पत्ति  की। गंगाजी और यमुना जी के जल की धारा में स्नान का माहात्म्य ध्यान पूर्वक  सुनो । जो प्राणी इस गंगा यमुना  संगम में माघ मास में स्नान करता है वह गर्भ योनि में नहीं आता, उसको जन्म मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाती हैं । माघ मास में प्रयागराज  में स्नान करने से मनुष्य समस्त  भोगों को भोगकर ब्रह्मपद को प्राप्त होता है। माघ मास तथा मकरराशी में  सूर्य में जो प्रयाग में स्नान करता है उसके पुण्यों की गणना तो साक्षत चित्रगुप्त भी नहीं कर सकते । सौ वर्ष तक निराहार रह कर जो पुण्य प्राप्त होता है वही फल माघ मास मेंस्नान दान जप तप तथा 
माघ मास महात्म्यसुनने तथा माघ मास में  तीनबार  प्रयाग में स्नान करने से होता है,

जो फल सौ वर्ष तक योगाभ्यास करने से मिलता। है। जैसे सर्प पुरानी कांचली को छोड़कर नया रूप ग्रहण कर लेता है वैसे ही माघ मास में स्नान करने से मनुष्य पापों को छोड़कर स्वर्ग को प्राप्त होता है। परन्तु गंगा यमुना के संगम में स्नान करने से हजारों गुना फल मिलता है। हे राजन्! जिसको अमृत कहा है वह यह त्रिवेणी ही है। ब्रह्मा, शिव, रुद्र, आदित्य, मरुतगण, गंधर्व, लोकपाल, यक्ष, गुह्यक, किन्नर, अणिमादि गुणों से सिद्ध, तत्वज्ञानी, ब्राह्मणी, पार्वती, लक्ष्मी, शची, नैना दिति, अदिति, सम्पूर्ण देव पत्नियां तथा नागों की स्त्रियां, घृताची, मेनका, उर्वशी, रम्भा, तिलोक्षमा, अप्सरा गण और सब पितर, मनुष्य गण कलियुग में गुप्त और
सत्युग में प्रत्यक्ष सब देवता माघ मास में स्नान करने के लिए आते हैं। इन दिनों माघ में प्रयाग में स्नान करने से जो फल मिलता है उसकी महिमा का गान करना सम्भव नहीं हैं |प्राणी मात्र में  कहने की शक्ति नहीं है। हजारों अश्वमेघ यज्ञ करने से भी यह फल प्राप्त नहीं होता। पूर्व समय में कांचन मालिनी ने इस स्नान का फल राक्षस को दिया था और इससे वह पापी मुक्त हो गया था।

।। इति श्री पद्मपुराणान्तर्गत पंचदशोध्याय समाप्तः ॥

माघ स्नान 1 से 8 अध्याय 

माघ स्नान 14 अध्याय