यमुना तट पर मथुरा नामक एक सुन्दर नगरी हैं | वहाँ रामचन्द्रजी ने अपने भाई शत्रुघ्न को राजा के पद पर प्रतिष्ठित किया था | उनकी रानी का नाम किर्तिमाला था | वह बड़ी पतिव्रता स्त्री थी |एक दिन कीर्तिमाला ने अपने गुरु वशिष्ठ जी से पूछा – मुनिश्रेष्ठ ! आप कोई ऐसा व्रत बताये जिससे सौभाग्य , पुत्र , सुख़ – समृद्धि आये | आषाढ़ मास की पूर्णिमा को संकल्प करे की श्रावण महीने में पुरे महीने नित्य स्नान , तारों की छाँव में भोजन , भूमि शयन ,ब्रह्मचर्यं का पालन औए प्राणियों पर दया करूंगी | नदी या तीर्थ स्थान पर उबटन [ तिल का उबटन ] लगाकर आठ दिन स्नान करे | सर्वोषधियो का उबटन लगाकर आठ दिन स्नान करे | शेष दिनों में जौके आटे , हल्दी का उबटन लगाकर स्नान कर सूर्य भगवान का ध्यान करे | तिल को पिस कर कोकिला पक्षी की मूर्ति बनाकर लाल पुष्प , लाल चन्दन , अगरबत्ती ,तिल , चावल , दूर्वा से यह मन्त्र बोलकर पूजा करे |
तिलसहे तिलसौख्ये तिलवर्ण तिलप्रिये |
सौभाग्यद्रव्यपुत्रास्रच देहि में कोकिले नम: ||
आप तिल के समान श्याम वर्ण की हैं | आपको तिल अत्यंत प्रिय हैं | आप मुझे सौभाग्य , सम्पति तथा सन्तान प्रदान करे | आपके श्री चरणों में मेरा बारम्बार नमस्कार | इस प्रकार पूजन कर भोजन ग्रहण करे | इस विधि से एक मास तक व्रत पूजन के लम्बे के बर्तन में कोकिला पक्षी को रख वस्त्र दक्षिणा शिन ब्राह्मण को दान करे |
इस विधि से जों स्त्री व्रत करती वह जन्म जन्म तक अखंड सोभाग्यवती रहती है | वशिष्ठ जी से व्रत का विधान जानकर किर्तिमाला ने यह व्रत किया और अखण्ड सौभाग्य उत्तम सन्तान , सुख़ – समृद्धि , और शत्रुघ्न जी का साथ प्राप्त हुआ |