Kadi nagara sichne ki kahani कीड़ी नगराKadi nagara sichne ki kahani कीड़ी नगरा

कीड़ी नगरा सीचने से नहीं होती घर में कभी कोई
एक गांव में एक बुढ़िया माई रहती थी उसके दो बेटे तथा बहू में थी बुढ़िया माई भगवान श्री हरि विष्णु की परम भक्त थी अपना जीवन दान धर्म पुण्य कार्य कामों में लगाती थी परंतु बुढ़िया माई कभी भी मंदिर और सत्संग में वह तीर्थ स्थानों पर नहीं जाती थी एक बार गांव में भागवत कथा हो रही थी बेटे ने कहा मां आप सारा दिन घर में रहती है आप मंदिर में भागवत कथा सुनने क्यों नहीं जाती बुढ़िया माई ने बेटे का मन रखने के लिए कह दिया कि आज जाऊंगी परंतु नहीं गई ऐसा करते करते 6 दिन निकल गए बुढ़िया माई के बेटे ने कहा मां आज अंतिम दिन है आज तो कथा सुनने आपको जाना ही पड़ेगा सारा दिन घर का काम करके बुढ़िया माई ने जाते-जाते इतनी देर कर दी की अंतिम दिन की भागवत कथा भी समाप्त हो गई भगवान श्री हरि विष्णु सन्यासी का रूप धारण करके बुढ़िया माई के पास आए और बोले बुढ़िया माई तुम कहां जा रही हो बुढ़िया माई ने कहा मैं भागवत कथा सुनने जा रही हूं तब सन्यासी रूप धारी भगवान श्री हरि विष्णु ने कहा अब इतनी देर से क्यों जा रही हो वहां तो अब कथा समाप्त हो गई अब वहां जाकर क्या करोगी बुढ़िया माई ने कहा अब घर से निकली हूं तो जाकर ही आऊंगी सब सन्यासी रूप धारी भगवान श्री हरि विष्णु ने कहा कि अब कथा समाप्त हो गई भक्त लोग भी अपने अपने घर चले गए अब तुम वहां से क्या लाओगे तो बुढ़िया माई बोली कुछ नहीं तो मैं वहां से एक ईट ही उठा लाऊंगी तो सन्यासी रूप धारी भगवान श्री हरी विष्णु बोले तुम वहां से मिट्टी की ईट लाओगे उसके बदले में मैं तुम्हें एक सोने की ईंट दे देता हूं बुढ़िया माई ने ईट ले ली और घर की तरफ चल पड़ी

 

 

 

 

 

और विचार करने लगी कि यदि यह ईद में घर लेकर जाऊंगी तो बेटे बहू झगड़ने लगेंगे इसीलिए घर के आंगन में बाहर ही बुढ़िया माई ने वह ईट जमीन में गाड़ दी परंतु अब बुढ़िया माई का ध्यान उस ईट पर ही रहने लगा खाने-पीने घर के काम करने में सदैव बुढ़िया माई अपना ध्यान सोने की ईंट पर लगाए रखती बेटे बहू ने पूछा मां पूरे दिन घर के आंगन में क्या करती रहती हो तो बुढ़िया माई ने कहा मैं आने जाने वाले को देखती रहती हूं 1 दिन बुढ़िया माई मर गई यमराज के दूत बुढ़िया माई को लेने आए बुढ़िया बुढ़िया माई को लेकर धर्मराज जी के पास पहुंचे और धर्मराज जी को सारी बात बतलाई धर्मराज जी ने बुढ़िया माई को कुत्तिया की योनि दे दे और कुत्तिया उसी पेड़ के नीचे बैठी रहती बुढ़िया माई की बहू ने कहा इस कुत्तिया को यहां से भगाओ नहीं तो यह बच्चों को काट जाएगी तो उसके बेटे ने उसकी पीठ पर एक लकड़ी मारी और बुढ़िया माई मर गई और को सर्प की योनि मिली आंगन में सर्प को देखकर बेटे बहू ने किसी को काट नहीं जाए इसी डर से मार दिया फिर बुढ़िया माई मरकर धर्मराज जी के पास पहुंची बुढ़िया माई कीड़ी का रूप धारण करके उस आंगन में कीड़ी नगरा बना लिया आंगन में कीड़ी नगरा हो गया घर वाले बहुत परेशान हुए घर वाले भोजन भी नहीं बना रहे थे और मन ही मन होने का स्मरण करने लगे तब भगवान श्री हरि विष्णु सन्यासी का रूप धारण करके आए और बोले की कुछ खाने को दे दो तो घरवालों ने कहा महाराज हमारे खाने को भी कुछ नहीं बनाया क्योंकि हमारे घर में कीड़ी नगरा हो गया है आप ही इसका कुछ उपाय बतलाइए तब महाराज जी ने आंगन में खुदा और सोने की 28 निकाली और दोनों बेटों को दे दी और कहा तुम तुम्हारी मां के नाम से दान पुण्य करना धर्मशाला बनवाना स्कूल बनवाना प्याऊ लगवाना गौशाला में गाय के चारे खाने की व्यवस्था करना परंतु दोनों बेटे आपस में झगड़ने लगे कि तू दान कर तू दान कर किसी ने बुढ़िया माई के नाम से कोई दान नहीं किया और कीड़ी नगरा वहां उसी स्वरूप में स्थापित रहा कुछ दिन बाद सन्यासी वापस आया और बुढ़िया माई के बेटों ने भगवान स्वरूप धारी सन्यासी महाराज से कहा कि हमारी घर की हालत वैसी की वैसी है कीड़ी नगरा तो वैसे का वैसा ही है तब साधु रूप धारी सन्यासी महाराज ने कहा वह सोने के इट के टुकड़े लाओ और उन्हें बेचकर उनसे जो भी धन मिले उसे तुम्हारी मां के नाम से दान पुण्य करो इस कीड़ी नगरा पर शक्कर और आटा डालो तुम ऐसा करोगे तो तुम्हारी मां को मोक्ष प्राप्ति होगी और उनके घर से कीड़ी नगरा चला गया जो व्यक्ति प्रतिदिन सुबह प्रातः आटा और शक्कर खेड़ी नगरे पर डालता है वह सदैव धनवान पुत्र मान संपन्न सुख शांति से जीवन यापन करता है उसके घर में कभी कोई कष्ट नहीं आता है उसका जीवन सदा सर्वदा आनंद से व्यतीत होता है उसके परिवार जन उसे अत्यधिक स्नेह प्रदान करते हैं कीड़ी नगरा प्रतिदिन खींचने से जुड़ी नगरी की कहानी सुनने से दान पुण्य व धर्म कार्यों में रुचि लगाने से जीवन उत्तम हो जाता है जय बोलो विष्णु भगवान की जय

 

 

 

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