गौ [ गाय ] मानव संस्कृति की रीढ़ हैं | ‘ मातर: सर्व भुतानामं गाव: ‘ के अनुसार गाय पृथ्वी के समस्त प्राणियों की जननी हैं | आर्य संस्कृति में पनपे सभी प्राणी गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं | हे अवध्य गौ ! उत्पन्न होते समय तथा उत्पत्ति के पश्चात भी मेरा तुम्हे नमस्कार हैं | तुम्हारे शरीर , रोम , खुर को भी मेरा प्रणाम हैं | जिसने पृथ्वी , भूमंडल एवं समुन्द्र को सुरक्षित रखा हैं , उस शस्त्र धाराओ से दुग्ध देने वाली गौ माता को मेरा बारम्बार प्रणाम करते हैं |
गौ के श्रींगो के मध्य ब्रह्मा , ललाट में भगवान शंकर , दोनों कर्णो में अश्वनी कुमार , नेत्रों में चन्द्रमा और सूर्य तथा कक्ष में साध्य देवता , ग्रीवा में पार्वती , पीठ पर नक्षत्र गण ,ककुद में आकाश , गोबर में लक्ष्मी तथा स्तनों में जल से परिपूर्ण चारों समुन्द्र निवास करते हैं | गौ को साक्षात् देव स्वरूप मानकर उसकी रक्षा न केवल प्रत्येक मानव मात्र का कर्तव्य हैं वरन धर्म भी हैं |
वाल्मीकीय रामायण के अनुसार जहाँ गौ होती हैं , वहाँ सभी प्रकार की समृद्धि , धन – धान्य , अन्न के भंडार भरे होते हैं |
विद्यते गोषु सम्भाव्यं विद्यते ब्राह्मणे तप: |
विद्यते स्त्रीषु चापल्मं विद्यते ज्ञातितो भयम ||
इस श्लोक के प्रथम चरण में गाय की महत्ता तीनो लोको में स्वीकार की गई हैं | अत: गाय प्रत्यक्ष देवता हैं | गाय में सभी देवता निवास करते हैं | गाय के गोबर से लीपे जाने पर भूमि पवित्र भूमि हो जाती हैं | गोमूत्र में गंगाजी निवास होता हैं |
तीर्थस्थानेषु यत्पुण्यं यत्पुण्यं विप्रभोजने |
सर्वव्रतोपवासेषु सर्वेष्वेव तप:सु च ||
यत्पुण्यं च महादाने यत्पुण्यं हरिसेवने |
यत्पुण्यं सर्वयज्ञेषु दीक्षायां च लभेन्नर: |
तत्पुण्यं लभते प्राज्ञो गोभ्यो दत्वा तृणानि च ||
तीर्थ – स्थानों में जाकर स्नान – दान से , ब्राह्मण – भोजन से सम्पूर्ण व्रत – उपवास , तप , दान , आराधना से जों पुण्य प्राप्त होता हैं , वही पुण्य गाय को हरी घास खिलाने से होता हैं | गाय के गोबर से शुद्ध खाद बनती हैं जिससे हरे पेड़ पौधे तथा अच्छी फसले होती हैं , पर्यावरण शुद्ध रहता हैं | अत: सभी प्राणियों को गौ माता को नमन करते हुए यही कामना करनी चाहिए | गाय सदा मेरे साथ रहे , गाय की सेवा का अवसर मुझे मिले |