चन्द्र ग्रहण 2023 तिथि तारीख
इस वर्ष 2023 में 2 चंद्रग्रहण होंगे |
पहला चंद्र ग्रहण – 5 मई 2023
दूसरा चंद्र ग्रहण – 28 अक्टूबर 2032
तीसरा चंद्र ग्रहण – 4 जुलाई 5 जुलाई
चौथा चंद्र ग्रहण – 29 नवम्बर 30 नवंबर
इस वर्ष उपछाया चंद्रग्रहण होने के कारण सुतक काल नहीं होगा सुतक काल नहीं लगने के कारण मन्दिरों के कपाट खुले रहेंगे और पूजा पाठ भी वर्जित नहीं हैं
|उपछाया चंद्रग्रहण
चन्द्र ग्रहण के होने से पहले चन्द्रमा पृथ्वी की छाया में प्रवेश करती हैं जिसे चन्द्र मालिन्य PENUMBRA के नाम से जाना जाता हैं | इसके बाद पृथ्वी की वास्तविक छाया UMBRA में प्रवेश करती हैं |
ग्रहण स्नान का महात्म्य और विधान
चन्द्र ग्रहण के अवसर पर भजन , कीर्तन, भगवान की स्तुति पाठ का अत्यधिक महत्त्व हैं | ग्रहण के समय मन्दिर के द्वार बंद रहते हैं तथा सभी भक्त जन अपना समय प्रभु भक्ति में लगाते हैं | ग्रहण काल में इस प्रकार देव आराधना करे |
ब्राह्मणों के द्वारा स्वस्तिवाचन कराकर इत्र , पुष्प माला आदि से पूजा करे | देवताओं का आवाह्न इस प्रकार करे ——— सभी समुन्द्र , नदिया यजमान के पापों का नाश करने के लिए यहाँ पधारे |’ इसके बाद प्रार्थना करे – जों देवताओ के स्वामी माने गये हैं तथा जिनके एक हजार नेत्र हैं , वे वज्रधारिणी इन्द्रदेव मेरी ग्रहण जन्य पीड़ा को शांत करे | जों समस्त देवताओं के मुख स्वरूप , सात जिव्हाओं युक्त और अतुल क्रांति वाले हैं , वे अग्नि देव चन्द्र ग्रहण से उत्पन्न मेरी पीड़ा को दुर करे | जों नाग पाश धारण करने वाले हैं तथा मकर जिनका वाहन हैं वे वरुण देव मेरी ग्रहण जन्य पीड़ा को नष्ट करे | जों समस्त प्राणियों की रक्षा करते हैं , जों प्राण रूप से समस्त प्राणियों की रक्षा करते हैं , कृष्ण मृग जिनका प्रिय वाहन हैं , वे वायु देव मेरी चन्द्र ग्रहण से उत्पन्न हुई पीड़ा का विनाश करे |
जी निधियों के स्वामी तथा खड्ग त्रिशूल और गदा धारण करने वाले हैं , कुबेर देव मेरी रक्षा करे | जिनका ललाट चन्द्रमा से सुशोभित हैं , वृषभ जिनका वाहन हैं , जों पिनाक नामक धनुष धारण करने वाले हैं , वे देवाधिदेव शंकर मेरी चन्द्र ग्रहण जन्य पीड़ा का विनाश करे | ब्रह्मा विष्णु और सूर्य सहित त्रिलोकी में जितने प्राणी हैं , वे सभी मेरी चन्द्र ग्रहण की पीड़ा को भस्म कर दे |
जों मानव ग्रहण के समय इस प्रकार देव आराधना करता हैं तथा स्नान करता हैं उसे ग्रहण जन्य पीड़ा नहीं होती हैं तथा उसके बन्धु जनों का विनाश नहीं होता अपितु उसे सिद्धि की प्राप्ति होती हैं |
जी मनुष्य इस ग्रहण स्नान की विधि को नित्य सुनता अथवा दूसरों को श्रवण कराता हैं , वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर इंद्र लोक में प्रतिष्ठित होता हैं |