भद्रा व्रत कथा , भद्रा व्रत विधि , भद्रा व्रत का महत्त्व

भद्रा व्रत कथा भद्रा सूरज भगवान की पुत्री हैं | सूरज भगवान की पत्नी छाया से उत्पन्न है और शनी भगवान की सगी बहन हैं | ऐसा कहा जाता हैं की भद्रा के जन्म लेते ही उसने यज्ञो , मंगल कार्यो , ब्राह्मणों के अनुष्ठान  में बाधा पहुचने लगी और पुरे संसार को दुःख पहुचाने लगी | भद्रा के इस व्यवहार को देखकर भगवान सूर्य ने भद्रा का विवाह करने का विचार किया परन्तु असफल रहे |

सूरज भगवान ने विवाह मंडप बनवाया पर भद्रा ने सब नष्ट कर दिए | भगवान सूर्यनारायण चिंताग्रस्त हो विचार करने लगे भद्रा का विवाह किस के साथ करू | प्रजा के दुःख को देखकर ब्रह्माजी स्वयं सूर्य नारायण के पास आये और भद्रा के विषय में चिंता प्रकट की |

भगवान सूर्य ने विनती की – “ ब्रह्मान ! आप इस लोक के कर्ता धर्ता हैं आप स्वयं कोई उपाय बतलाये | तब ब्रह्माजी ने भद्रा को बुलाया और कहा हे भद्रे ! जो व्यक्ति यात्रा , शुभ कार्यो , खेती व्यापार, राखी बांधना आदि कार्य भद्रा में करे उन्ही में तुम विघ्न उत्पन्न करों |  दिन शांत रहो चौथे दिन आधे भाग में देवता और आधे भाग में असुर तुम्हारी पूजा करेंगे | जो तुम्हारा सम्मान नही करे तुम उसके कार्य में विघ्न डालना | इस प्रकार भद्रा को समझाकर ब्रह्माजी अपने लोक चले गये | इसलिए भद्रा के समय सभी शुभ कार्य का त्याग करना उत्तम माना गया हैं |

भद्रा व्रत का महत्त्व , भद्रा का शुभ अशुभ फल

भद्रा पांच घड़ी मुख में रहती हैं तब कार्य का नाश होता हैं |

भद्रा दो घड़ी कण्ठ में रहती हैं तब धन का नाश होता हैं |

भद्रा ग्यारह घड़ी हृदय में रहती हैं तब प्राणों का नाश होता हैं |

भद्रा चार घड़ी नाभि में तब कलह होती हैं |

पांच घड़ी कटी में रहती हैं तब अर्थभंश होता हैं |

भद्रा तीन घड़ी पुच्छ में तब निश्चित रूप से विजय एवं कार्य – सिद्धि होती हैं |

भद्रा को प्रसन्न करने का अचूक उपाय , सभी कार्य सिद्धि उपाय

भद्रा के बारह नाम –

  1. धन्या
  2. दधिमुखी
  3. भद्रा
  4. महामारी
  5. खरानना
  6. कालरात्रि
  7. महारुद्रा
  8. विष्टि
  9. कुलपुत्रिका
  10. भैरवी
  11. महाकाली
  12. असुरक्षयकरी

इन बारह नामों का जो प्रात: काल स्मरण करता हैं | उसे जीवन में कोई बीमारी नहीं होती | रोगी रोग मुक्त हो जाता हैं | सभी ग्रह पक्ष में हो जाते हैं सभी कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो जाते हैं |

 

 

भद्रा व्रत पूजन विधि

जिस दिन भद्रा हो उस दिन यह व्रत किया जाता हैं | स्नानादि से निर्वत हो पूजन किया जाता हैं | इस व्रत को तीन पहर तक किया जाता हैं | इस व्रत में देवता और पितरो का तर्पण तथा पूजन किया जाता हैं |

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