आरती पार्श्वनाथ जी की | Aarti Parshvanath Ji Ki
ॐ जय पारस देवा , स्वामी जय पारस देवा |
सुर – नर – मुनि जन तुम चरनन , की करते नित सेवा |
ॐ जय पारस देवा …………|
पौष बदी ग्यारस कांशी में , आनन्द अति भारी -२
अश्वसेन के घर – वामा के उर , लीनों अवतारी |
ॐ जय पारस देवा ………………………|
श्याम वर्ण – नव हस्त के पग , उरग लखन सोहे- २
सुरकृत अति अनुपम पा भूषण – २, सबका मन मोहे |
ॐ जय पारस देवा ………………|
जलते देख नाग नागिन को , मन्त्र नवकार दिया – २
हरा कमठ का मान ज्ञान का – २ , भानु प्रकाश किया |
ॐ जय पारस देवा ……………….|
तुम परमातम तुम अध्यात्म , तुम अन्तर्यामी – २ ,
स्वर्ग मोक्ष के दाता तुम हो – २ , त्रिभुवन के स्वामी |
ॐ जय पारस देवा …………….|
दीनबन्धु दुःख हरण जिनेश्वर ,तुम ही हो मेरे – २
दो शिवधाम को वास दास – २ , हम द्वार खड़े तेरे |
ॐ जय पारस देवा …………….|
ॐ जय पारस देवा , स्वामी जय पारस देवा |
सुर नर मुनिजन तुम चरणन की , करते निज सेवा |