माँ लक्ष्मीदेवी को प्रसन्न करने वाला
अदभुत चमत्कारिक सुख़ , सम्पति
और शान्ति देने वाला
वैभव लक्ष्मी व्रत
यह व्रत शीघ्र फल दाई हैं | किन्तु फल न मिले तो तिन माह के बाद इस व्रत को फिर से शुरू करना चाहिये और जब तक मनवांछित फल न मिले तब तक यह व्रत तीन तीन महीने पर करते रहना चाहिऐ | तो कभी भी इस व्रत का फल अवश्य मिलता ही हैं |
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व्रत विधि शुरू करने से पहले की विधि
- ‘ श्री यंत्र ‘ के सामने देखकर ‘ श्री यंत्र को प्रणाम कर |’ ऐसा बोल कर श्री यंत्र को प्रणाम करे | पूजा के समय आपके पास वैभव लक्ष्मी व्रत पुस्तक होना अत्यंत आवश्यक हैं |
- बाद में लक्ष्मी जी के नीचे मुताबिक आठ स्वरूप की छवियों को प्रणाम करे |
- धन लक्ष्मी एवं वैभव लक्ष्मी माँ का स्वरूप
- श्री गजलक्ष्मी माँ
- श्री अधिलक्ष्मी माँ
- श्री विजयालक्ष्मी माँ
- श्री एश्वर्य लक्ष्मी माँ
- श्री वीर लक्ष्मी माँ
- श्री धान्य लक्ष्मी माँ
- श्री सन्तान लक्ष्मी माँ
लक्ष्मी स्तवन का भावार्थ
जों लाल कमल में रहती हैं ,जों अपूर्व कान्तिवाली हैं , जों असहय तेजवाली हैं , जों पूर्ण रूप से लाल हैं ,जिसने रक्तरूप वस्त्र पहने हैं , जों भगवान विष्णु को अति प्रिय हैं ,जों लक्ष्मी मन को आनन्द देती हैं ,जों समुन्द्रमंथन से प्रकट हुई हैं , जों विष्णु भगवान की पत्नी हैं , जों कमल से जन्मी हैं और अतिशय पूज्य हैं वैसी ही लक्ष्मी देवी ! आप मेरी रक्षा करे |
वैभव लक्ष्मी व्रत करने का नियम
- यह व्रत सौभाग्यशाली स्त्रिया करे तो उनका अति उत्तम फल मिलता हैं | इस व्रत को पुरुष , कुमारिका भी यह व्रत कर सकते हैं उत्तम फल प्राप्त होगा |
- यह व्रत पूरी श्रद्धा और पवित्र भाव से करना चाहिए | बिना मन के यह व्रत नही करना चाहिए |
- यह व्रत शुक्रवार को किया जाता हैं | व्रत शुरू करते वक्त 11 या 21 शुक्रवार की मन्नत ब्र्खनी पडती हैं ,और शास्त्रीय विधि के अनुसार ही उद्यापन विधि करनी चाहिए | यह विधि सरल हैं | किन्तु शास्त्रीय विधि अनुसार व्रत नहीं करने पर जरा भी फल प्राप्त नहीं होता |
- एक बार व्रत करने पूरा करने के पश्चात फिर मन्नत कर सकते हैं और फिर व्रत कर सकते हैं |
- माता लक्ष्मी देवी के अनेक स्वरूप हैं | उनमे उनका धन लक्ष्मी स्वरूप ही ‘ वैभवलक्ष्मी ‘ हैं और माता लक्ष्मी को श्री यंत्र अत्यंत प्रिय हैं व्रत करते समय माँ लक्ष्मी के हर स्वरूप को और ‘ श्री यंत्र ‘ को प्रणाम करना चाहिए तभी व्रत का फल मिलता हैं | अगर हम इतनी भी मेहनत नहीं कर सकते तो लक्ष्मी देवी भी हमारे लिये कुछ करने को तैयार नहीं होगी | और हम सब पर माँ की कृपा नहीं होगी |
- व्रत के दिन सुबह से ही ‘ जय माँ लक्ष्मी ‘ ‘ जय माँ लक्ष्मी ‘मन में बोलते रहना हैं | माँ को पुरे मन से स्मरण करना आवश्यक हैं |
- शुक्रवार के दिन यदि आप घर से बाहर हैं तो आपको यह व्रत नही करना चाहिए वो शुक्रवार छोडकर अगला शुक्रवार कर सकते हैं | यह व्रत अपने ही घर में करना आवश्यक हैं | मन्नत पूरा करना अत्यंत आवश्यक हैं |
- व्रत पूरा होने पर कम से कम सात स्त्रियों को या आपकी इच्छा के अनुसार 11 , 21 , 51 , 101 स्त्रियों को वैभव लक्ष्मी व्रत की पुस्तक कुमकुम का तिलक करके भेट के रूप में देनी चाहिए | जितनी ज्यादा पुस्तक आप देंगी उतना ही ज्यादा माँ लक्ष्मी की कृपा आप पर होगी |
- व्रत के शुक्रवार को स्त्री रजस्वला हो या सुवा / सुतक हो तो यह व्रत छोड़ देना चाहिए | बाद के शुक्रवार करना चाहिए | मन्नत के पुरे शुक्रवार करना आवश्यक हैं |
- व्रत की विधि शुरु करते वक्त लक्ष्मी स्तवन का एक बार पाठ करना आवश्यक हैं |
व्रत के दिन हो सके तो उपवास करना चाहिये और शाम को प्रसाद लेकर शुक्रवार करना चाहिये | अगर न हो सके तो फलाहार या एक बार भोजन कर सकते हैं | अगर व्रतधारी का शरीर अत्यंत कमजोर हैं तो दो बार भोजन कर सकते हैं |सबसे महत्त्व की बात यह हैं की व्रतधारी की माँ लक्ष्मी पर पूरी श्रद्धा होनी चाहिए |
वैभव लक्ष्मी माँ आप पर प्रसन्न हो |
वैभव लक्ष्मी व्रत कथा
एक बड़ा शहर था | इस शहर में लाखो लोग रहते थे | पहले के जमाने के लोग साथ – साथ रहते थे और एक दुसरे के काम आते थे | पर नये जमाने के लोगों का स्वरूप ही अलग सा हैं |सब अपने – अपने काम में व्यस्त रहते हैं | किसी को किसी की परवाह नहीं |घर के सदस्यों को भी एक दुसरे की परवाह नही होती | भजन – कीर्तन , भक्ति – भाव , दया – माया , परोपकार जैसे संस्कार कम हो गये | शहर में बुराईया बढ़ गई थी |शराब , जुआ , रेस , व्यभिचार , चौरी – डकैती वगैरह बहुत गुनाह शहर में होते थे |
कहावत हैं की हजारों निराशा से एक अमर आशा छिपी हुई हैं | इसी तरह इतनी बुराईयों के बाद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे |
ऐसे अच्छे लोगों में शीला और उसके पति की गृहस्थी मानी जाती थी | शीला धार्मिक प्रकृति की और सन्तोषी थी | उसका पति भी विवेकी और सुशिल था |
शीला और उनका पति इमानदारी से जीते थे | वे किसी को बुराई न थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे | उनकी गृहस्थी आदर्श गृहस्थी थी और शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सहायता करते थे |
शीला की गृहस्थी इसी तरह ख़ुशी – ख़ुशी चल रही थी | पर कहा जाता हैं कि ‘ कर्म की गति अटल हैं ‘ विधाता के लिखे लेख कोई नहीं समझ सकता हैं | इंसान का नसीब पल भर में राजा को रंक बना देता हैं और रंक को राजा | शीला के पति के अगले जन्म के कर्म भोगने बाकि रह गये होंगे की वह बुरे लोगो से दौस्ती कर बैठा | वह जल्द ही करौडपति होने का ख्वाब देखने लगा | इसलिये वह गलत रास्ते पर चढ़ गया और करौड पति के बजे रौड पति बन गया | यानि रास्ते के भिखारी के समान उसकी हालत हो गई थी |
शहर में शराब , जुआ , रेस , चरस गांजा वगैरह बुराईयों फैली हुई थी | उसमे शीला का पति फँस गया |दौस्तो के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई | जल्द से जल्द पैसे वाला बनने का लालच में दौस्तो के साथ जुआ भी खेलने लगा | इस तरह बचाई हुई धन राशी जुए में हर गया था |
शीला सुशिल और संस्कारी स्त्री थी | उसको पति के बर्ताव से बहुत दुःख हुआ | किन्तु वह भगवान पर भरोषा करके बड़ा दिल रखकर दुःख शने लगी | कहा जाता हैं की सुख़ के पीछे दुःख और दुःख के पीछे सुख़ आता ही हैं | इसलिये दूख़ के पीछे सुख़ आएगा ही , इसी श्रद्दा के साथ शीला प्रभु कीर्तन में लींन रहने लगी | इस तरह शिला असहाय दुःख सहते सहते प्रभु में वक्त बिताने लगी |अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी |
शीला सोच में पड गई की मुझ जैसे गरीब के घर इस वक्त कौन आया होगा ?
फिर भी द्वार पर आये हुए अतिथि को आदर करना चाहिये , ऐसे आर्य धर्म के संस्कार वाली शीला ने खड़े होकर द्वार खोला |
देखा तो सामने एक माँ जी खड़ी थी | वे बड़ी उम्र की लगती थी | किन्तु उसके चहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था |उनकी आँखों में मानो अमृत भ रहा था | उनका भव्य चहरा करुणा और प्यार से छलकता था | उनको देखते ही शिला के मन में अपार शान्ति छा गई |वैसे शिला इस मांजी को पहचानती न थी | फिर भी उनको देखकर शिला के रोम रोम में आनन्द छ गया | शिला माँ जी को आदर से घर ले आई | घर में बिठाने के लिए कुछ नहीं था | अत:न सकुचाकर फटी हुई चद्दर पर पर उनको बिठाया |
माँ जी ने कहा: ‘ क्यों शीला ! मुझे पहचाना नहीं ?
शिला ने सकुचाकर कहा : माँ !आपको देखते ही बहुत ख़ुशी हो रही हैं | बहुत शान्ति मिल रही हैं | ऐसा लगता हैं की मैं बहुत दिनों से जिसे ढूंढ रही थी वे आप ही हैं | पर मैं आपको पहचान नही सकती | ‘
माँ जी ने हसंकर कहा – ‘ क्यों भूल गई ? हर शुक्रवार को लक्ष्मी जी के मन्दिर में भजन कीर्तन होते हैं , तब मैं भी वहा आती हूँ | वहाँ हर शुक्रवार हम मिलते हैं | ‘
पति गलत रास्ते पर चढ़ गया , तब से शिला बहुत दुखी हो गई थी और दुःख के मारी वह लक्ष्मीजी के मन्दिर भी नहीं जाती थी | बाहर के लोगो से नजर मिलते भी उसे शर्म आने लगती थी | उसने यादाश्त पर भी जोर दिया पर उसे कुछ याद् नही आ रहा था | तभ माजी ने कहां
“ तू लक्ष्मी मन्दिर में कितने मधुर भजन गाती थी | आजकल तू दिखाई नही देती इसलिये मुझे हुआ की तुम क्यों नहीं आती हो ? कही बीमार तो नहीं हो गई हैं न ? ऐसा सोच कर मैं तुझे मिलने चली आई हूँ |
मांजी के अति प्रेम के शब्दों से शीला का हृदय पिधल गया | उसकी आँखों में आंसू आ गये |यह देख कर मांजी शीला के नजदीक और उसकी सिसकती पीठ प्यार भरा हाथ रख कर सांत्वना दी|
मांजी ने कहा ! बेटी सुख़ और दुःख तो धुप और छाया जैसी होती हैं | सुख़ के पीछे दुःख और दुःख के पीछे सुख़ आता हैं |धेर्य रखो बेटी ! और तुझे क्यां परेशानी हैं | तेरे दुःख की बात मुझे सुना | तेरा मन भी हल्का हो जायेगा तेरे दुःख का कोइ न कोई उपाय तो मिल ही जायेगा |
मांजी की बात सुन कर शीला के मन में कुछ तसल्ली हुई उसने मांजी से कहा, माँ ! मेरी गृहस्थी में भरपूर प्रेम और खुशिया थी |मेरे पति भी सुशिल थे | भगवान की कृपा से किसी चीज की कोई कमी नही थी संतोष था | हम शान्ति से गृहस्थी चलाते परस्पर भक्ति में अपना समय व्यतीत करते थे | यकायक हमारा भाग्य ह,हमसे रूठ गया | मेरे पति की बुरे लोगो से दौस्ती हो गई | खराब संगत की वजह से शराब ,जुआ ,रेस ,चरस – गांजा वगैरह खराब आदत के शिकार हो गये और उन्होंने सब कुछ खो दिया और हम भिखारी जैसे हो गये |
यह सुन मांजी ने कहा : सुख़ के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख़ तो आता ही हैंऐसा भी कहा जाता हैं की कर्म की गति न्यारी होती हैं | हर इंसान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते हैं | इसलिये तू चिंता मत कर | अब तू भुगत चुकी हैं |अब तुम्हारे सुख़ के दिन अवश्य आयेंगे | तू तो माँ लक्ष्मी जी की भक्त हैं | माँ लक्ष्मी जी तो प्यार करुणा के अवतार हैं | वे अपने भक्तो पर हमेशा ममता रखती हैं |इसलिये तू धेर्य रख के माँ लक्ष्मी जी का व्रत कर | इससे सब ठीक हो जायेगा | ‘
माँ लक्ष्मी जी का व्रत करने की बात सुन कर शिला के चहरे पर चमक आ गई | उसने पूछा : माँ ! लक्ष्मी जी का व्रत कैसे किया जाता हैं , वह मुझे समझाइए | मैं यह व्रत अवश्य करूंगी | ‘
माँ जी ने कहा , बेटी ! माँ लक्ष्मी का व्रत बहुत सरल हैं | उसे ‘ वरलक्ष्मी व्रत ‘ या ‘वैभव लक्ष्मी ‘ कहा जाता हैं | यह व्रत करने वालो की सब मनोकामना पूर्ण होती हैं |वह सुख़ सम्पत्ति और यश प्राप्त करता हैं | ऐसा कहकर मांजी ‘ वैभव लक्ष्मी व्रत ‘ की विधि कहने लगी |
‘ बेटी ! वैभव लक्ष्मी व्रत तो सीधा – साधा व्रत हैं | किन्तु कई लोग यह व्रत गलत तरीके से करते हैं | अत: उसका फल नहीं मिलता | की लोग कहते हैं की सोने के गहने की की हल्दी – कुमकुम से पूजा करो | बस ! व्रत हो गया | पर ऐसा नहीं हैं | कोई भी व्रत शास्त्रीय विधिपूर्वक करना चाहिए |तभी उसका फल मिलता हैं | सिर्फ सोने के गहने की पूजा करने से फल मिल जाता हों तो सभी आज लखपति बन गये होते | सच्ची बात यह हैं कि सोने के गहनों की विधि से पूजन करना चाहिए | व्रत का उद्द्याप्न विधि भी शास्त्र्यीय विधि मुताबिक करनी चाहिए | तभी यह “ वैभवलक्ष्मी व्रत “ फल देता हैं |
यह वर शुक्रवार को करना चाहिये | सुबह में स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनो और सारा दी मन में ‘ जय माँ लक्ष्मी ‘ ‘ जय माँ लक्ष्मी ‘ का रटन करते रहो | किसी से चुगली नहीं करनी चाहिये | शाम को पूर्व दिशा में मुँह रख सके , इसी तरह आसन पर बैठ जावों |
सामने पाटा रख कर उसके ऊपर रुमाल रखो | रुमाल पर चावल का छोटा सा ढेर करों |उस ढेर पर पानी से भरा ताम्बे का कलश रख कर , कलश पर एक कटोरी रखो | उस कटोरी में एक सोने का गहना रखो | सोने का न हो तो चांदी का का भी चलेगा |चांदी का न हो तो नकद रुपया भी चलेगा | बाद में घी का दीपक जला कर अगरबत्ती सुलगा कर रखो |
माँ लक्ष्मी जी के बहुत स्वरूप हैं औरमाँ लक्ष्मीजी को ‘ श्री यंत्र “ अति प्रिय हैं | अत: “ वैभवलक्ष्मी “ में पूजन विधि करते वक्त प्रथम ‘ श्री यंत्र ‘ और लक्ष्मी जी के विधिवत स्वरूपों का सच्चे दिल से दर्शन करों | उसके बाद लक्ष्मी स्तवन का पाठ करे | बाद में कटोरी में रखे गहने हुए गहनों या रुपयों को हल्दी कुमकुम औरचावल चढ़ाकर पूजा करों और लाल रंग के फूल चढाओ | शाम को कोई मिठी चीज बना कर उसका प्रसाद रखो | न हो सके तो गुड या शक्कर नही चल सकता हैं | फिर आरती करके ग्याहर बार सच्चे हृदय से ‘ जय माँ लक्ष्मी ‘ बोलो |
बाद में ग्याहर या इक्कीस शुक्रवार करने का दृढ संकल्प माँ के सामने करो और जों भी मनोकामना हो वह पूरी करने को माँ लक्ष्मीजी को विनती करों | फिर माँ का प्रसाद बाँट दो | और थौड़ा प्रसाद अपने लिए रख लो | अगर आप में शक्ति हो तो पुरे दिन उपवास रखो और प्रसाद खाकर उपवास करों |न शक्ति हो तो शाम को एक समय प्रसाद खाकर खाना खा लो | अगर थौड़ी शक्ति भी न हो तो दिन में दो बार खाना खा सकती हैं | बाद में कटोरी में रखा गहना या रुपया ले लो | कलश का पानी तुलसी क्यारी में डाल दो और चावल पक्षियों को डाल दो | इसी तरह शास्त्रीय विधि अनुसार व्रत करने से अवश्य फल मिलता हैं |इस व्रत के प्रभाव से सब प्रकार की विपत्ति दुर हो कर आदमी मालामाल हो जाता हैं |सन्तान न हो तो उसे सन्तान प्राप्ति होती हैं |सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रहता हैं | कुमारी लडकी को मनभावन पति मिलता हैं |
शिला यह सुनकर आनन्दित हो गई | फिर पूछा : ‘ माँ ! आपने “ वैभैव लक्ष्मी व्रत “ की जों शास्त्रीय विधि बताई हैं , वैसे में अवश्य करूंगी | किन्तु उसकी उद्यापन विधि किस तरह करनी चाहिए ? यह भी कृपा करके सुनाइये |’
मांजी ने कहा : ग्याहर या इक्कीस जों मन्नत मानी हो उतने शुक्रवार यह “ वैभैवलक्ष्मी व्रत “ पूरी श्रद्धा और भावना से करना चाहिये | व्रत के आखरी शुक्रवार को जों शास्त्रीय विधि अनुसार उद्दयाप्न विधि करनी चाहिये वह मैं तुझे बताती हूँ | आखरी शुक्रवार को खीर या नैवैद्ध्य रखो | पूजन विधि हर शुक्रवार को करते हैवैसे ही करनी चाहिये | पूजन विधि के बाद एक श्री फल फोड़ो और कम से कम सात कुंवारी या सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का तिलक करके साहित्य संगम की “ वैभैवलक्ष्मी व्रत “ की एक एक पुस्तक उपहार में देनी चाहिये | और सब को घर का प्रसाद देना चाहिए | फिर धनलक्ष्मी स्वरूप , वैभैवलक्ष्मी स्वरूप माँ लक्ष्मी की छवि को प्रणाम करे | माँ लक्ष्मी का यह स्वरूप वैभव देनें वाला हैं | प्रणाम करके मन ही मन भावुकता से माँ को प्रार्थना करते वक्त कहे कि ‘ हे माँ धन लक्ष्मी ! हे माँ वैभैवलक्ष्मी ! मैंने सच्चे हृदय से आपका ‘ वैभैवलक्ष्मी व्रत ‘ पूर्ण किया हैं | तो हे माँ ! हमारी [ जों भी मनोकामना की हैं वह बोलो ] की कामना पूर्ण करों | हमारा सबका कल्याण करो | जिसे सन्तान न हो उसे सन्तान देना | सौभाग्यशालिस्त्री का सौभाग्य अखंड रखना | कुंवारी लडकी को मन भावन पति देना | आपका यह चमत्कारी वैभैवलक्ष्मी व्रत जों करे उसकी सब विपत्ति दुर करना | सब को सुखी करना | हे माँ ! आपकी महिमा अपरम्पार हैं |
इस तरह माँ की प्रार्थना करके माँ लक्ष्मी जी का धनलक्ष्मी स्वरूप ‘ को भाव से बंदन करो |’
मांजी के पास से ‘ वैभैवलक्ष्मी व्रत ‘ की शास्त्रीय विधि सुन कर शिला भावविभोर हो उठी | उसे लगा मानो सुख़ का रास्ता मिल गया हैं | उसने आंखे बंद करके मन ही मन उसी क्षण संकल्प लिया की ‘ हे वैभैवलक्ष्मी माँ ! मैं भी मांजी के कहे मुताबिक श्रद्धा से शास्त्रीय विधि अनुसार ‘ वैभैवलक्ष्मी व्रत ‘ इक्कीस शुक्रवार तक करूंगी और व्रत की शास्त्रीय विधि अनुसार उद्दयाप्न विधि करूंगी |’
शिला ने संकल्प कर आंखे खोली तो सामने कोई न था | वह विस्मित हो गई की मांजी कहा गये ? यह मांजी दूसरा कोई न था… साक्षात् लक्ष्मी जी ही थी | शिला क्क्ष्मीजी की भक्त थी | शिला लक्ष्मी जी की भक्त थी | इसलिये अपने भक्त को रास्ता दिखाने के लिए माँ लक्ष्मीदेवी मांजी का रूप धारण कर शीला के पास आई थी |
दुसरे दिन शुक्रवार था | सवेरे स्वच्छ वस्त्र धारण कर शिला मन ही मन श्रद्धा से और पुरे भाव से ‘ जय माँ लक्ष्मी ‘ ‘ जय माँ लक्ष्मी ‘ माँ मन ही मन रटन करने लगी | सारा दिन किसी की चुगली नहीं की | शाम हुई तब हाथ पांव मुह धोकर शिला पूर्व दिशा की और मुँह करके बैठी | घर में पहले सोने के बहुत घने थे पा पति के गलत रास्ते पर चढ़ कर सब गहने गिरवी रख दिए थे | पर नक् की चुन्नी बच गई थी | नक् की चुन्नी निकाल कर , उसे धोकर शिला ने कटोरी में रख दी | सामने पते पर रुमाल रख कर मुट्टी भर कर चावल का ढेर किया | उस पर तांबे का कलश पानी भर कर रखा | उसके ऊपर चुन्नी वाली कटोरी रखी | फिर मंजी ने कही थी शास्त्रीय विधि अनुसार वन्दन , स्तवन , पुंजन , वगैरह किया | और घर में थोड़ी शक्कर थी , वह प्रसाद रखकर ’ वैभैवलक्ष्मी जी का व्रत ’ किया |
यह प्रसाद पहले पति को खिलाया | प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड गया | उस दिन उसने शीला को मारा नहीं , मनाया भी नहीं | शीला को बहुत आनन्द हुआ | उसके मन में वैभैवलक्ष्मी व्रत ‘ के लिए श्रद्धा बढ़ गई |
शीला ने पूर्ण श्रधा – भक्ति इक्कीस शुक्रवार तक ‘ वैभैवलक्ष्मी व्रत ‘ किया | इक्कीसवे शुक्रवार तक ‘ वैभैवलक्ष्मी व्रत ‘किया | इक्कीसवे शुक्रवार मांजी के कहे मुताबिक उद्दयाप्न विधि कर सात स्त्रियो को को ‘ वैभवलक्ष्मी व्रत ‘ की सात पुस्तके उपहार में दी | फिर माताजी के ‘ धनलक्ष्मी स्वरूप ‘ की छवि का वन्दन करके मन ही मन प्रार्थना करने लगी |’ हे माँ धन लक्ष्मी ! मैंने आप का ‘ वैभव लक्ष्मी व्रत ‘ करने की मन्नत मानी थी यह व्रत आज पूर्ण किया | हे माँ ! मेरी हर विपत्ति दुर करो | हमारा सबका कल्याण हो | जिसे सन्तान न हो उसे सन्तान देना , सौभाग्यवती स्त्री को अखंड सौभाग्य रखना |कंवारी लडकी को मनभावन पति देना |आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे , उनकी सब विपत्ति दुर करना | सब को सुखी करना | हे माँ ! आपकी महिमा अपरम्पार हैं | ऐसा बोल कर लक्ष्मी जी के ‘ धनलक्ष्मी स्वरूप ‘ की छवि को प्रणाम किया |
इस तरह शास्त्रीय विधिपूर्वक शीला ने श्रद्धा से व्रत किया और तुरन्त ही उसे फल मिला | उसका पति गलत रास्ते पर चला गया गया था , वह अच्छा आदमी हो गया और कड़ी मेहनत करके व्यवसाय करने लगा | माँ लक्ष्मीजी के ‘ वैभवलक्ष्मी व्रत ‘ के प्रभाव से उसको ज्यादा मुनाफा होने लगा ‘ उसने तुरन्त शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए | घर में धन की बाढ़ सी आ गई | घर में पहले जैसी शान्ति छा गई |
वैभवलक्ष्मी व्रत ‘ का प्रभाव देख कर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियों भी शास्त्रीय विधिपूर्वक ‘ वैभवलक्ष्मी व्रत ‘ करने लगी |
हे धनलक्ष्मी माँ ! आप जैसे शीला पर प्रसन्न हुई उसी तरह आपका व्रत करने वाले सब पर प्रसन्न होना | सब को सुख़ – शान्ति देना | ‘ जय धनलक्ष्मी माँ ‘ जय वैभवलक्ष्मी माँ ‘
इस महालक्ष्मी यंत्र के नित्य दर्शन करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं |
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