सूरज रविवार की कहानी | सूरज रोट रविवार की कहानी | Suraj ravivar ki kahani

सूरज रविवार का व्रत गणगौर पूजन करने वाली कन्याओं और स्त्रियों के लिए सूरज रविवार का व्रत करना आवश्यक माना गया हैं |  इस व्रत को ‘ होली पाछला रविवार ‘ व ‘ सूरज रोट का व्रत ‘ भी कहते हैं | होली के बाद और गणगौर से पहले आने वाले रविवार को यह व्रत किया जाता हैं | जों कोई इस सूरज रोटो रविवार का व्रत करता हैं वह अपने जीवन में सभी सुखों को प्राप्त करता हैं उसके जीवन में कभी किसी वस्तु का अभाव नहीं होता हैं |

सूरज रविवार व्रत विधि

एक चौकी पर जल भरा लोटा रख उस पर रोली से स्वास्तिक बनाये उस पर मोली बांधे , कच्चे सूत का आठ तार का आठ गांठ लगाकर डोरा बनाये और आठ गेहूँ के दाने हाथ में लेकर कहानी सुने , उसकें बाद बिना नमक का रोट [ रोटी जैसा ] बनाये | एक के बीच में छेद करे और एक को पूरा रोटी [ रोट ] जैसा रखे | छेद वाले रोट में से सूरज भगवान को देखते हुये कहानी सुने हुये जल से सूरज भगवान को अर्ध्य दे वे | अपने साथ एक महिला को रखे जों जल चढ़ाती जाये और पूछती जाये ‘ सूरज – सूरज दिख्यो ‘ आप स्वयं कहे ‘ दिख्यो सो ही ठुठ्यो ‘ ऐसे सात बार कहे | फिर जों दूसरा रोट हैं उसे आप स्वयं खा लेवे | दिन अस्त होने के बाद पानी भी नहीं पीवे |

सूरज रविवार व्रत उद्यापन विधि

अगर लडकी के शादी का पहला साल हो तो उद्यापन करे | व्रत की विधि एक जैसी रहेगी , सिर्फ आठ जगह चार – चार पुड़ी – हलवा , बेस [साड़ी , ब्लाउज ,पेटीकोट ] रुपया कल्प कर सासुजी को पाँव लग कर देवे व आठ व्रत करी हुई लडकियों को जिमावे व उन्हें दक्षिणा भी दे देवे |

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सूरज रविवार की कहानी | सूरज रोट रविवार की कहानी

दो माँ बेटी थी | सूरज भगवान का व्रत करती थी | सूरज रविवार का व्रत आया माँ को किसी आवश्यक कार्य से बाहर जाना पड़ा उसने अपनी बेटी से कहा बेटा तू दो रोट बना लेना | बेटी ने दो रोट बना लिया उसी समय एक जोगी भिक्षा मांगने आया उसने माँ के रोट में से एक टुकड़ा तोड़ कर जोगी को दे दिया | माँ बाहर से आई और बोली मेरा रोट दे तो बेटी बोली माँ एक जोगी भिक्षा मांगने आया था आपके रोट में से थौड़ा टुकड़ा उसको दे दिया | ऐसा सुनते ही उसकी माँ ने जिद्ध पकड़ ली और सारा दिन कहने लगी ‘ घी रोटो दे ,घी रोटो मेली कोर दे , पुरो दे पर म्हारों दे | सब ने यही सोचा की यह पागल हो गई और सब जनों ने मिलकर उसे एक अँधेरी कोठरी में बंध कर दिया | लडकी का एक राजकुमार से विवाह हो गया | उसके पति ने जिद्ध कर ली की मेरे को अपने ससुराल जाना हैं | बेटी के मायके में और कोई नहीं था , जब उसने सूरज भगवान से विनती की मेरे को सवा पहर का मायका दे दो |

जब सूरज भगवान ततास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गये | उसके बाद सूरज भगवान की कृपा से जंगल में महल बाग  बगीचे , माता – पिता ,भाई ,बहन , भाभी , भतीजे  सब बेटी जवाई के आदर सत्कार करने लगे | अपना प्यार लुटाने लगे | सवा पहर का समय बीतने लगा पर जवाई जी का मन नहीं भरा बेटी बोली चलो देर हो रही हैं उसको पता था सवा पहर होते ही सब खत्म हो जायेगा | वो अपने पति को लेकर जाने लगी | उसके पति ने अपने एक पाँव की मोचड़ी वही छोड़ दी | आधे रास्ते गया और बोला मेरी मोचड़ी वही रह गई | उसने बहुत समझाया आपके क्या कमी हैं पर वह नहीं माना वापस जाकर देखा तो वहाँ जोर से हवा चल रही,जहाँ भोजन बनाया वहा राख उड़ रही |

पेड़ के नीचे उसकी मोचड़ी रखी थी | उसके पति ने उसका हाथ पकड़ा और पूछा ये क्या जादू किया तुमने , तब उसने अपने पति को सारी बात बताई की उसके पियर [ मायका ] में कोई नहीं हैं उसकी एक बावली माँ हैं | ये तो सूरज भगवान ने उसको सवा पहर का मायका दिया | उसने और उसके पति ने सूरज भगवान से प्रार्थना की और सूरज भगवान की कृपा से उसकी माँ ठीक हो गई और उसको बहुत सारी धन दौलत देकर विदा किया |

हे सूरज भगवान जैसा लडकी को दिया वैसा सबको देना , कहानी कहता न , सुनता न , म्हारा सारा परिवार न |

इस कहानी के बाद विनायक जी की कहानी सुने |

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