मनोरथ पूर्णिमा व्रत की विधि , महत्त्व | Manorath Purnima Vrat Vidhi Mahttav

मनोरथ पूर्णिमा

मनोरथ पूर्णिमा

फाल्गुन मास की पूर्णिमा से संवत्सर पर्यन्त किया जाने वाला एक व्रत हैं , जों मनोरथ पूर्णिमा के नाम जानी जाती हैं | इस व्रत को करने से सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं | इस दिन भगवान जनार्दन का लक्ष्मी सहित पूजन अर्चन किया जाता हैं | इस व्रत को पुरे एक वर्ष तक करने का विधान हैं | सम्पूर्ण दिन मन में भगवान जनार्दन का स्मरण करते रहना चाहिए | व्रत के दिन किसी की भी निंदा नहीं करनी चाहिए | रात्रि के समय लक्ष्मी और भगवान जनार्दन का स्मरण करते हुए चन्द्रमा को अर्ध्य देना चाहिए | बाद में तेल एवं बिना नमक का भोजन करे |

फाल्गुन , चेत्र , वैशाख ,ज्येष्ठ इन तिन माह में लक्ष्मी जी और भगवान जनार्दन का पूजन एवं अर्ध्य प्रदान करे | आषाढ , श्रावण , भाद्रपद और आश्रीवं इन चार महीनो की पूर्णिमा को लक्ष्मी सहित भगवान विष्णु का पूजन करे | कार्तिक , मार्गशीर्ष , पौष , माघ मास में भगवान केशव का पूजन कर चन्द्रमा को अर्ध्य प्रदान करे | रात्रि के समय भजन कीर्तन करे | प्रतिमास ब्राह्मणों को यथा शक्ति दान अवश्य करे | भगवान जनार्दन के इन नामों का जप करे – केशव , नारायण , माधव , गोविन्द , विष्णु , मधुसुदन , त्रिविक्रम , वामन , श्रीधर , राम , पद्मनाभम ,और दामोदर इन नामों का कीर्तन करने वाले व्यक्ति के सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं | जों स्त्री या  पुरुष इस व्रत को करते हैं उनका कभी अपने इष्ट से वियोग नहीं होता | उसके सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं और वह स्त्री या पुरुष भगवान जनार्दन व लक्ष्मी का स्मरण करता हैं उसे दिव्य लोक प्राप्त होता हैं |

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