कार्तिक मास की महिमा | कार्तिक मास में क्या करे क्या नहीं करे

कार्तिक मास की महिमा 21 अक्टूबर से शुरू19 नवम्बर को  कार्तिक मास समाप्त , इसी मास में भगवान कार्तिकेय ने किया था तारकासुर का वध, इसलिए इस महीने का नाम पड़ा कार्तिक

कार्तिक मास के स्वामी भगवान विष्णु हैं और इस मास में भगवन्न विष्णु का पूजन करने से इस लोक में सुख भोगकर परमात्मा श्री हरी के चरणों में स्थान प्राप्त होता हैं |इस मास में ये कार्य कदापि नहीं करे –

 इस महीने में माँस मदिरा त्याग करना चाहिए।

इसके साथ ही पूरे महीने संयम से रहना चाहिए।

असत्य वचन कदापि न कहे |

कार्तिक मास में स्नान , दान , जप ,तप का विशेष महत्त्व हैं |

1.  कार्तिक मास में सबसे प्रमुख काम दीपदान करना बताया गया है। इस महीने में नदी, तालाब , मन्दिर , तुलसीमाता , पीपल , पथवारी  पर  दीपदान किया जाता है। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है।

2.  कार्तिक मास में तुलसी माता को जल चढाने रोली मोली अक्षत से पूजा करने तथा प्रसाद स्वरूप  तुलसी  सेवन करने का विशेष महत्व बताया गया है। कार्तिक में तुलसी पूजा का महत्व कई गुना माना गया है।

3.  पलंग पर शयन न करके भूमि पर शयन करना चाहिए |

  4.  कार्तिक महीने में केवल एक बार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी नरक चतुर्दशी  के दिन ही शरीर पर तेल लगाना चाहिए। कार्तिक मास में अन्य दिनों में तेल लगाना वर्जित है।

  5. द्विदलन वर्जित हैं अर्थात कार्तिक महीने में उड़द, मूंग, मसूर, आदि नहीं खाना चाहिए।

  6. ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए |

  7 इस मास में संयमित जीवन जीना चाहिए मन ,कर्म , वचन से भगवान नारायण का ध्यान करना चाहिए |  तपस्वियों के समान व्यवहार करे। अर्थात कम बोले, पराई निंदा या विवाद न करे, मन पर संयम रखें आदि।

कार्तिक मास का धार्मिक महत्त्व

कार्तिक मास महात्म्य के प्रकरण में ब्रह्माजी ने नारद जी से कार्तिक मास की श्रेष्टता , उसमे करने योग्य स्नान , दान ,पूजन आदि धर्मो का माहात्म्य बतलाकर स्नान की विधि एवं कार्तिक व्रत करने वालो के लिए पालनीय नियमो का वर्णन किया है |

कार्तिक मास क सम्बन्ध में ब्रह्माजी ने बताया है कि कार्तिक मास के समान कोई मास नही , सतयुग के समान कोई युग नही , वेदों के समान कोई शास्त्र नही और गंगाजी के समान दूसरा कोई तीर्थ नही तथा इसी प्रकार अन्न दान के समान कोई दूसरा दान नही है |

मनुष्य को कार्तिक मास में शालग्राम शिला का पूजन और भगवान वासुदेव का ध्यान करना चाहिए | नारद ! सब दानो से बढकर कन्या दान है ,उससे भी अधिक विद्धादान है , विद्धादान से भी अधिक गोदान का महत्व अधिक है , और अन्न दान का भी महत्त्व अधिक है , क्यों कि यह अन्न के आधार पर ही जीवित रहता हैं इसलिए कार्तिक मास में अन्न दान अवश्य करना चाहिए |

पूर्व काल  में सत्यकेतु नामक ब्राह्मण ने केवल अन्न दान से सब पुण्यो का फल पाकर परम दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त किया था |

    कार्तिके मासि विपेन्द्र यस्तु गीतां पठेन्नर: |

    तस्य पुण्यफलं वक्तुं मम शक्तिं विदधते ||

    गीतामास्तु समं शास्त्रं न भूतं न भविष्यति |

    सर्वपापहरा  नित्यं  गीतेका  मोक्षदायनी ||

जों मनुष्य कार्तिक मास में नित्य गीता का पाठ करता है उसके पुण्य फल का वर्णन करने की शक्ति मेरे में नही हैं | गीता का एक पाठ करने से मनुष्य घोर नरक  से मुक्त हो जाता हैं | एक मात्र गीता ही सदा सब पापो को हरने वाली तथा मोक्ष देने वाली हैं|

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