होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा रविवार दिनांक 28 मार्च 2021
होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा रविवार दिनांक 28 मार्च 2021 को प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा होने के कारण इसी दिन होली का त्यौहार हैं | इस दिन होलिका तथा प्रहलाद की पूजा की जाती हैं , पूजा के पश्चात होलिका दहन किया जाता हैं | होलिका दहन के अगले दिन रंगो का त्यौहार धुलेंडी मनाया जाता हैं | घर में सुख़ – शान्ति , सन्तान प्राप्ति , आरोग्य के लिए महिलाये होलिका तथा प्रहलाद की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं | तथा बसन्त ऋतु के स्वागत के लिए यह त्यौहार मनाया जाता हैं | होलिका दहन का मुहूर्त – 06 बजकर 25 मिनट से 08 बजकर 49 मिनट तक हैं |
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रीति – रिवाज पूर्व तैयारी
फाल्गुन सुदी एकादशी को या होली से पहले शुभ मुहूर्त देखकर गाय के गोबर से बडकुल्ला 11 , 21 ,51 आपकी इच्छा से बनाये | नारियल में पैसे व भाई की पसंद की मिठाई रखे , तलवार , एक चाँद , एक सूरज , एक जीभ बनाये | बडकुल्ला की माला बनाये | घर में जितनी लडकिय हो उतनी माला बनाये व कुवारी लडकिया होलिका के चढ़ा कर नारियल अपने भाई से बदरवाये [ तुडवाये ] व नारियल में रखे पैसे व मिठाई अपने भाई को दे देवे | ऐसी मान्यता हैं की ऐसा करने से भाई – बहन का प्यार अटूट होता हैं | इस दिन सब स्त्रिया कच्चे सूत की कुकडी , जल का लोटा , नारियल , कच्चे गेहु की बालियां , कच्चे चने युक्त डालियो से होली की पूजा करे | पूजन के बाद शुभ मुहूर्त में होलीका दहन किया जाता हैं |
कच्चे गेहु चने की बालियाँ होलिका दहन में सेककर , वहाँ से थोड़ी आग वापस घर लाकर नारियल का भोग लगाकर सारे घर में घुमाये | ऐसी मान्यता हैं की ऐसा करने से घर से नकारात्मक उर्जा बाहर जाती हैं तथा सकारात्मक उर्जा का प्रसार होता हैं | घर के सारे कष्ट दुर हो जाते हैं | सुख़ – शान्ति तथा धन – धान्य के भंडार भरे रहते हैं |
होलाष्टक आरम्भ
इस वर्ष 2021 में होलाष्टक22 मार्च को लगेगा और 28 मार्च 2021 तक रहेगा | इन दिनों में शुभ कार्य वर्जित रहेंगे | होली के आठ दिन पहले होलाष्टक आरम्भ हो जाते हैं | होलाष्टक में शुभ कार्य वर्जित होते हैं | ज्योतिषियों के अनुसार शुभ मुहूर्त में किये गये कार्य विशेष फलदाई होते हैं |
ढूंढ पूजना
फाल्गुन सुदी एकादशी को नवजात बच्चो का ढूंढ पूजन करवाया जाता हैं | जब किसी नवजात बच्चे या बच्ची का जन्म होता हैं उसी वर्ष होली से पहले आने वाली एकादशी को ढूंढ पूजन किया जाता हैं | कई जगह ऐसी मान्यता हैं की जब तक ढूंढ नहीं पूजा जाता तब तक सीधा तिलक नहीं लगाते | इस में परिवार के सभी सदस्य शामिल होते हैं | भुवा , बहने ,व ननिहाल वाले नवजात बच्चे व परिवार के सदस्यों के लिए नये वस्त्र उपहार लाते हैं | महिलाये मंगल गीत व ढ़ोल पर नाच कर अपनी ख़ुशी प्रकट करती हैं |
होली की पौराणिक कथा
अहंकारी राजा हिरण्यकश्प को ब्रह्माजी से यह वरदान प्राप्त था संसार में कोई भी जीव – जन्तु , देवी – देवता , राक्षस ,मानव उसे न मार सकें | न व दिन में मरेगा ,न रात में , न पृथ्वी पर ,न आकाश में , न घर में , न बाहर ,न कोई सशत्र भी उसे मार नहीं सकता |
ऐसा वरदान पाकर व अहंकार के वशीभूत होकर अपने आप को भगवान समझने लगा |हिरण्यकश्यप के यहाँ प्रहलाद परमात्मा को मानने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ | प्रहलाद भगवान विष्णु का परम् भक्त था और उस पर प्रभु नारायण की असिम कृपा थी | हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद तथा राज्य निवासियों को आदेश दिया की अब तुम्हारा भगवान में ही हूँ तुम मेरी ही आराधना करो |प्रहलाद के नहीं मानने पर उसको अपना शत्रु समझने लगा और उसको मारने के अनेक उपाय किये , पर प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ |
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हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि में नहीं जलने का वरदान प्राप्त था |हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन के साथ मिलकर प्रहलाद कोमारने की योजना बनाई | होलिका बालक प्रहलाद को गोद में लेकर आग में जलाने के लिए बैठ गई | भगवान नारायण की कृपा से होलिका जल गई और बालक प्रहलाद को मारने के प्रयास असफल हो गया बुराई पर सत्य की जीत हुई |
तथी से होली का त्यौहार मनाया जाता हैं | भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार धारण कर खम्बे से निकल कर गोधुली बेला में दरवाजे की चोखट पर बैठकर अपने नाखूनों से अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यप का वध किया |
तभी से होली का त्यौहार मनाया जाता हैं |
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धन्यवाद जी