Ganga Dussehra 2023 : साल 2023 में गंगा दशहरा कब है। और इस दिन स्नान-दान का क्या महत्व है। गंगा दशहरा के दिन पूजा करने की विधि क्या है। आइए जानते हैं।
गंगा दशहरा 2021 , गंगा दशहरा कथा
गंगा दशहरा का व्रत कर व्यक्ति रोग , शोक तथा दुखो से मुक्त हो जाता हैं | इस पुण्यकारी व्रत ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि को किया जाता हैं | इस दिन माँ गंगा स्वर्ग लोक से शिव भगवान की जटाओ से पृथ्वी पर अवतरित हुई थी | इसलिये इस दिन को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है | इस दिन स्नान करके पवित्र हो माँ गंगा व शिवजी भगवान का पूजन किया जाता हैं | मोक्ष की देवी माँ गंगा में स्नान करने से विशेष फल मिलता हैं | गंगा दशहरा के दिन माँ गंगा मन्दिरों व गंगा जी में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता हैं |
गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान के पश्चात दिन दुखियो को वस्त्र , अन्न , जल का दान करने से विशेष फल मिलता हैं | इस दिन किया हुआ गंगा स्नान , दान , जप , होम , तथा उपवास अनन्त फलदायक होता हैं |
जों व्रती गंगा दशहरा के दिन फल , पुष्प आदि लेकर माँ गंगा की प्रदक्षिणा करता हैं माँ गंगा के तट पर या किसी भी पवित्र तीर्थ पर स्नान पितृ तर्पण करने से माँ गंगा सभी मनोकामनाये पूर्ण हो करती हैं | तथा अंत में प्रभु चरणों में स्थान मिलता हैं |
गंगा की उत्पति के बारे में अनेक मान्यताये हैं | हिन्दूओ की आस्था का केंद्र गंगा एक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी के कमंडल से माँ गंगा का जन्म हुआ |
एक अन्य मान्यता के अनुसार गंगा श्री विष्णु जी के चरणों से अवतरित हुई | जिसका पृथ्वी पर अवतरण राजा सगर के साठ हजार पुत्रो का उद्दार करने के लिए इनके वंशज राजा दिलीप के पुत्र भागीरथ हुए | राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजो का उद्धार करने के लिए पहले माँ गंगा को प्रसन्न किया उसके बाद भगवान शंकर की कठोर आराधना कर नदियों में श्रेष्ठ गंगा को पृथ्वी पर उतरा व अंत में माँ गंगा भागीरथ के पीछे – पीछे कपिल मुनि के आश्रम में गई एवं देवनदी गंगा का स्पर्श होते ही भागीरथ के पूर्वजो [ राजा सगर के हजार पुत्रो ] का उद्धार हुआ |
एक अन्य कथा श्रीमद्भागवत के पंचम स्कन्धानुसार राजा बलि ने तिन पग पृथ्वी नापने के समय भगवान वामन का बायाँ चरण ब्रह्मांड के ऊपर चला गया | वहाँ ब्रह्माजी के द्वारा भगवान के चरण धोने के बाद जों जलधारा थी , वह उनके चरणों को स्पर्श करती हुई चार भागो में विभक्त हो गई |
- सीता – पूर्व दिशा
- अलकनंदा – दक्षिण
- चक्षु – पश्चिम
- भद्रा – उत्तर – विन्ध्यगिरी के उत्तरी भागो में इसे भागीरथी गंगा के नाम से जाना जाता हैं |
भारतीय साहित्य में देवनदी गंगा के उत्पत्ति की दो तिथिया बताई जाती हैं |
- प्रथम – बैशाख मास शुक्ल पक्ष तृतीया
- दिव्तीय – ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की गंगा दशमी
गंगा जल का स्पर्श होते ही सारे पाप क्षण भर में धुल जाते हैं | देवनदी गंगा जिनके दर्शन मात्र से ही सारे पाप धुल जाते हैं क्यों की गंगा जी भगवान के उन चरण कमलो से निकली हैं जिनके शरण में जाने से सारे क्लेश मिट जाते हैं |
गंगा दशहरा के दिन सम्पूर्ण दिन माँ गंगा का मन में जप करते हुए बिताये तथा गंगा दशहरा के दिन किसी की निंदा नहीं करे | इस पूण्यतिथि को अपने घर के मन्दिर , आगंन , घर के बाहर घी के दीपक जलाये किसी जलाशय में दीपक जला कर तैराने से विशेष फल मिलता हैं |
गंगा आरती दर्शन करने मात्र से अनंत सुखो की प्राप्ति होती हैं |
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