देवशयनी एकादशी व्रत , पूजा विधि ,पौराणिक कथा

Dev Shayani Ekadashi Vrat , Puja Vidhi , Pouranik Katha

20 जुलाई मंगलवार  2021  

देवशयनी एकादशी व्रत आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता हैं | भगवान सूर्य के मिथुन राशि में आने पर भगवान श्री हरिविष्णु को शयन करा दे | तुला राशि में सूर्य के जाने पर भगवान श्री विष्णु को शयन से देवोत्थानी एकादशी को उठाये | सोमवार 23 जुलाई को देवशयनी एकादशी हैं | इसी दिन से चातुर्मास का आरम्भ माना जाता हैं |

 देवशयनी एकादशी व्रत पूजन विधि

Dev Shayani Ekadashi Vrat , Pujan Vidhi

भक्तिपूर्वक श्रद्धा से स्त्री या पुरुष आषाढ़ शुक्ल एकादशी को उपवास करे | प्रात: काल स्नानादि से निर्वत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर , भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प ले |

भगवान श्री हरी को दूध , दही , शक्कर , घी , जल भगवान की प्रतिमा को स्नान करा नवीन वस्त्र धारण करवाये | पूजन व आरती कर घी का दीपक जलाकर भगवान का प्रसाद भक्तो में वितरण कर नरम मुलायम गद्दे व तकिये से युक्त उत्तम शय्या पर शंख , चक्रधारी भगवान विष्णु को भक्तिपूर्वक शयन कराये |

देवशयनी एकादशी व्रत से देवोत्थानी एकादशी तक करे इन चीजो का त्याग :-

गुड – वाणी , तेल – सुंदर देह , कटु तेल – शत्रुओ का नाश , पुष्प – स्वर्ग प्राप्ति  ,पान [ ताम्बुल ] – श्रेष्ठ सुख ,  घी – अष्ट सिद्धिया , फल – बुद्धिमान आदि चीजो का त्याग करने से अगले जन्म में सभी सुख प्राप्त होता हैं | पृथ्वी पर शयन का संकल्प लेने से भगवान विष्णु का भक्त होता हैं |

देवशयनी एकादशी की पौराणिक कथा

 

किसी समय तपस्या के प्रभाव से भगवान विष्णु को प्रसन्न कर योगनिन्द्रा ने प्रार्थना की कि भगवान ! आप मुझे अपने चरणों में स्थान दीजिये | तब मैंने प्रसन्न हो योगनिन्द्रा को चार मास तक नत्रो में योगनिन्द्रा को स्थान दिया | यह सुनकर प्रसन्न होकर योगनिन्द्रा ने मेरे नेत्रों में वास किया | योगनिन्द्रा  में जब मैं क्षीर सागर में शेष नाग शय्या पर शयन करता हूँ , उस समय ब्रह्मा के सानिध्य में भगवती लक्ष्मी अपने हाथो से मेरे चरणों को दबाती हैं | क्षीरसागर की लहरे मेरे चरणों को धोती हैं | जो मनुष्य देवशयनी एकादशी का व्रत करता हैं उसे भगवान जनार्दन के चरण कमलो में स्थान प्राप्त होता हैं | शंख चक्र गदाधारी भगवान विष्णु कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागते हैं |

देवशयनी एकादशी व्रत कथा

धर्मराज युधिष्ठिर ने कहा   हे वासुदेव आषाढ़ शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? इस व्रत के करने की विधि क्या है और किस देवता का पूजन किया जाता है? श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे युधिष्ठिर! जिस कथा को ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था वही  कथा मैं तुमसे कहता हूँ।

एक बार देवऋषि नारदजी ने ब्रह्माजी से देवशयनी एकादशी का महात्म्य जानने की इच्छा प्रकट की, तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया: सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी हैं । परन्तु  भविष्य में क्या हो जाए, यह कोई नहीं जानता। अतः वे भी इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके राज्य में शीघ्र ही भयंकर अकाल पड़ने वाला है।

उनके राज्य में पूरे तीन वर्ष तक वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा। इस अकाल से चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। धर्म पक्ष के यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि में कमी हो गई।  राजा तो इस स्थिति को लेकर पहले से ही दुःखी थे। वे सोचने लगे कि आखिर मैंने ऐसा कौन: सा पाप-कर्म किया है, जिसका दंड मुझे इस रूप में मिल रहा है? फिर अकाल मुक्ति के  कष्ट से मुक्ति पाने का कोई साधन करने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए।

 एक दिन वे अंगीरा  ऋषि के आश्रम में पहुँचे और उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। ऋषिवर ने  आशीवाद दिया और  कुशल क्षेम पूछी । फिर अपने आश्रम में आने का प्रयोजन जानना चाहा।

तब राजा ने हाथ जोड़कर कहा -: महात्मन्‌! सभी प्रकार से धर्म का पालन करता हुआ भी मैं अपनी प्रजा को इस कष्ट से मुक्ति के लिए कोई उपाय हैं । ऐसा  क्यों हो रहा है, कृपया इसका उपाय बतलाइये  करें। यह सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा: हे राजन! सब युगों से उत्तम यह सतयुग है। इसमें छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है। आप कोई और उपाय बताएँ। महर्षि अंगिरा ने बताया: आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत करें। इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी।

राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए और चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।

ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष माहात्म्य का वर्णन किया गया है। इस व्रत को करने से प्राणी की समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। 

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