देवशयनी एकादशी व्रत , पूजा विधि ,पौराणिक कथा
Dev Shayani Ekadashi Vrat , Puja Vidhi , Pouranik Katha
01 जुलाई बुधवार 2020
आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देवशयनी एकादशी के नाम से जाना जाता हैं | भगवान सूर्य के मिथुन राशि में आने पर भगवान श्री हरिविष्णु को शयन करा दे | तुला राशि में सूर्य के जाने पर भगवान श्री विष्णु को शयन से देवोत्थानी एकादशी को उठाये | सोमवार 23 जुलाई को देवशयनी एकादशी हैं | इसी दिन से चातुर्मास का आरम्भ माना जाता हैं |
देवशयनी एकादशी व्रत पूजन विधि
Dev Shayani Ekadashi Vrat , Pujan Vidhi
भक्तिपूर्वक श्रद्धा से स्त्री या पुरुष आषाढ़ शुक्ल एकादशी को उपवास करे | प्रात: काल स्नानादि से निर्वत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर , भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प ले |
भगवान श्री हरी को दूध , दही , शक्कर , घी , जल भगवान की प्रतिमा को स्नान करा नवीन वस्त्र धारण करवाये | पूजन व आरती कर घी का दीपक जलाकर भगवान का प्रसाद भक्तो में वितरण कर नरम मुलायम गद्दे व तकिये से युक्त उत्तम शय्या पर शंख , चक्रधारी भगवान विष्णु को भक्तिपूर्वक शयन कराये |
देवशयनी एकादशी व्रत से देवोत्थानी एकादशी तक करे इन चीजो का त्याग :-
गुड – वाणी , तेल – सुंदर देह , कटु तेल – शत्रुओ का नाश , पुष्प – स्वर्ग प्राप्ति ,पान [ ताम्बुल ] – श्रेष्ठ सुख , घी – अष्ट सिद्धिया , फल – बुद्धिमान आदि चीजो का त्याग करने से अगले जन्म में सभी सुख प्राप्त होता हैं | पृथ्वी पर शयन का संकल्प लेने से भगवान विष्णु का भक्त होता हैं |
देवशयनी एकादशी की पौराणिक कथा
किसी समय तपस्या के प्रभाव से भगवान विष्णु को प्रसन्न कर योगनिन्द्रा ने प्रार्थना की कि भगवान ! आप मुझे अपने चरणों में स्थान दीजिये | तब मैंने प्रसन्न हो योगनिन्द्रा को चार मास तक नत्रो में योगनिन्द्रा को स्थान दिया | यह सुनकर प्रसन्न होकर योगनिन्द्रा ने मेरे नेत्रों में वास किया | योगनिन्द्रा में जब मैं क्षीर सागर में शेष नाग शय्या पर शयन करता हूँ , उस समय ब्रह्मा के सानिध्य में भगवती लक्ष्मी अपने हाथो से मेरे चरणों को दबाती हैं | क्षीरसागर की लहरे मेरे चरणों को धोती हैं | जो मनुष्य देवशयनी एकादशी का व्रत करता हैं उसे भगवान जनार्दन के चरण कमलो में स्थान प्राप्त होता हैं | शंख चक्र गदाधारी भगवान विष्णु कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागते हैं |
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