व्रत और उपवास का महत्त्व | Vrat Aur Upvaas Ka Mahattv

भगवान की भक्ति में श्रद्धा व भक्ति में लीन अन्न , जल का त्याग कर अपने इष्ट के ध्यान में समय व्यतीत करना उपवास कहलाता हैं | व्रत उपवास का ही एक भाग हैं | संकल्पपूर्वक किये गये कर्म को व्रत कहते हैं | उपवास करने की परम्परा युगों युगों से चली आ रही हैं | ऋषि मुनि तपस्या में लीन  होकर अपनी तपस्या के बल से सालो तक अन्न , जल त्याग के उपवास करते थे | भोजन के बिना कुछ अवधि तक शारीरिक व मानसिक तप करना उपवास कहलाता हैं | व्रत  और उपवास का महत्त्व के बारे में जाने \

व्रत धर्म का साधन हैं | संसार के समस्त धर्मो ने व्रत , उपवास को किसी न किसी रूप में अपनाया हैं | व्रत को रखने से पापों का नाश , पूण्य की प्राप्ति , शारीरिक व मानसिक शुद्धि तथा मनवांछित फल की प्राप्ति होती हैं | मनुष्य को पूण्य के आचरण से परम् शांति तथा पाप के आचरण से मानसिक अशान्ति प्राप्त होती हैं |

व्रत के तीन प्रकार होते हैं :-

नित्य व्रत – सत्य बोलना , इन्दियो का निग्रह करना , क्रोध न करना , निंदा न करना सात्विक आचरण करना ही नित्य व्रत हैं |

नैमेतिक व्रत – किसी भी निमित के उद्देश्य की पूर्ति के लिए किये गये व्रत नैमेतिक व्रत हैं |

काम्य व्रत –  जो व्रत किसी भी प्रकार की कामना विशेष के उद्देश्य की पूर्ति के लिए जाने वाले व्रत कमी व्रत हैं | पुत्र प्राप्ति के लिए राजा दिलीप ने इसी व्रत को किया था | प्रत्येक व्रत के आचरण के लिए समय निश्चित हैं |

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