गणेश जन्मोत्सव 2022 | माघी शुक्ल पक्ष चतुर्थी

  1. माघी गणेश चतुर्थी माघ मास में चतुर्दशी तिथिके दिन गणेश जन्मोत्सव के रूप में ,मनाय जाता हैं | गणेश जन्मोत्सव इस वर्ष 4 फरवरी 2022 शुक्रवार को हैं | इस दिन गौरी पुत्र गणेश का विधिपूर्वक पूजन करने से सभी मनोकामनाए पूर्ण हो जाती हैं |

गौरी पुत्र गणेश जी का विधिपूर्वक पूजन करने व् कथा सुनने से यश कीर्ति और अपार धन सम्पदा की प्राप्ति होती हैं | गणेश जी भगवान की कृपा से भक्तों के सभी दुःख कष्ट क्षण में ही दूर हो जाती हैं रुके हुए कार्य पूर्ण होते हैं किसी भी कार्य में विघ्न नहीं होता | सभी कार्य निर्विघ्न सम्पन्न हो जाते हैं |

ऐसी  मान्यता है की इस दिन चंद्रमा का दर्शन वर्जित माना गया हैं इस दिन चन्द्र दर्शन करने से मिथ्या कलंक लगने कि सम्भावना रहती हैं | आप व्रत करे या नही करे पर इस दिन चन्द्र दर्शन कदापि नहीं करे | अगर भूल से चन्द्र दर्शन हो जाए तो इस दोष के निवारण के लिए नीचे लिखे मन्त्र का 21 , 51  या 108 बार जप करें।

 

श्रीमद्भागवत के दसवें स्कन्द के 57वें अध्याय का पाठ करने से भी चन्द्र दर्शन का दोष समाप्त हो जाता है।
ध्यान रहे कि तुलसी ka  पूजा में इस्तेमाल नहीं हों। तुलसी को छोड़कर बाकी सब पत्र-पुष्प गणेश जी को प्रिय हैं। गणेश पूजन में गणेश जी की एक परिक्रमा करने का विधान है। मतान्तर से गणेश जी की तीन परिक्रमा भी की जाती है।

गणेश जन्मोत्सव पूजा विधि :-

प्रात स्नानादि से निवर्त होकर हरे रंग के वस्त्र धारण करे |

धुप , दीप , नेवैध्य , अगर , कपूर , कलावा मोली , पीले पुष्प  

गणेश चतुर्थी के दिन व्रत का संकल्प लें शुभ मुहूर्त में किसी पाटे, चौकी लाल कपड़ा बिछाकर गणेश जी की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें। गंगाजल का छिड़काव करें और गणपति जी को प्रणाम करें. गणेश जी को सिंदूर अर्पित करें और दीप जलाएं। गणेश भगवान को मोदक, लड्डू, पुष्प, सिंदूर, जनेऊ और 21 दूर्वा अर्पित करें। पूरे परिवार सहित गणेश जी की आरती करें।

 

शिव पुराण के अनुसार गणेशोत्पति की कथा

shiv Puraan Ke Anusar Ganesh Bhagwan Ki Janm Katha

भगवती पार्वती की दो सखिया थी एक जया और दूसरी विजया उन्होंने माँ पार्वती से कहा – “ हे सखी “ ये सभी रूद्र गण हैं जो प्रभु की आज्ञा में सदैव तत्पर रहते हैं | असंख्य गणों में भी हमारा कोई नहीं हैं ये सभी रूद्र गण शिव की अनन्य भक्ति के कारण ही यहाँ उपस्थित हैं |वे सभी हमारे साथ हैं परन्तु आप हम सभी के लिए भी एक गण की रचना कर दीजिये | माता पार्वती ने सखियों की बातें सुन कर मन ही मन विचार करने लगी |

एक दिन की बात हैं | माँ पार्वती स्नानागार में थी | भगवान शिव अपनी प्राण प्रिया से मिलने गये उस समय माता स्नान कर रही थी | नंदी ने भगवान से निवेदन किया परन्तु  नंदी के निवेदन को अनदेखा कर भगवान शिव सीधे स्नानागार में चले गये | माँ पार्वती  यह देख मन ही मन बहुत दुखी हुई और चकित हो गई |  तब माता ने मन ही मन विचार किया कीमेरी सखिया जया विजया ठीक ही कह रही थी |यदि शिव प्रिया ने मन ही मन विचार किया यदि द्वार पर मेरा कोई गण होता तो मेरे प्राण प्रिय स्वामी नहीं आ पाते |इन गणों  पर मेरा सम्पूर्ण अधिकार नही हैं इस प्रकार विचार कर मन ने अपने उबटन के मेल से एक चैतन्य बालक का निर्माण किया वह शुभ लक्षणों से युक्त था उसके सभी अंग दोष रहित एवं सुन्दर थे उसका वह शरीर गौरवर्ण सुन्दर विशाल और अतुल्य पराक्रम से सम्पन्न था | माँ भगवती ने अपनी मन्त्र शक्ति से उसमें प्राण डाले और आशीर्वाद दिया और कहा – आज से तुम मेरे पुत्र हो तुम्हारे सिवा दूसरा मेरा प्रिय कोई नहीं हैं |

उस चेतन्य रूप बालक  ने माँ भगवती को प्रणाम किया और कहा – माता आपका प्रत्येक आदेश स्वीकार्य हैं |आप आज्ञा दे मैं सदैव आपकी आज्ञा का पालन करूंगा | देवी पार्वती ने कहा तूम  मेरे प्रिय पुत्र हो | एक दिन माता ने पुत्र  से कहा मेरे अन्त: पुर में किसी को मत आने देना इसका ख्याल रखना | इसके बाद माँ भगवती अपनी सखियों के साथ स्नान करने चली गई |

कुछ समय पश्चात भगवान शिव आये और माँ पार्वती से मिलने की इच्छा दे अंदर जाने लगे परन्तु दंडधारी  गजानंद  ने कहा माता स्नान कर रही हैं उनकी आज्ञा के बिना कोई भी अंदर नहीं जा सकता | मैं यहाँ माता का द्वार रक्षक हूँ | भगवान शिव माता के प्रिय पुत्र से सर्वथा अंजान थे | वे उस हठी बालक पर क्रोधित हो गये और अपने गणों को आज्ञा दी औरयुद्ध शुरू हो गया परन्तु माता पार्वती के  सर्वगुण बलशाली पुत्र से कौन जीत सकता था | सभी गणों का तेज क्षीण हो गया | भगवान शिव का क्रोध बढ़ता ही जा रहा था | इससे क्रोधित होकर भगवान के अपना त्रिशूल फेका जिससे माँ के प्रिय गजानंद पुत्र का सिर दूर कट कर गिर गया | पुत्र का सिर कटते ही माँ भगवती क्रोधित हो गई और उन्होंने सहस्त्रों रोद्र शक्तियों को उत्पन्न कर दिया | सर्वत्र हाहाकार मच गया | देवता ऋषि मुनि समस्त स्रष्टि भयभीत हो गई | देवता ऋषि मुनियों देवगणों सप्त ऋषियों ने माँ की स्तुति की जिससे करुणा मयी माँ भगवती के  क्रोध शांत करने के लिए भगवान शिव ने समस्त देवगणों से कहा उतर दिशा की और जो भी बाजिव मिले उसी का मस्तक बालक के शीश पर लगाया जाए |उत्तर दिशा में कुछ दुरी पर जाते ही एक गज मिला जिसके एक ही दन्त था उसका धड़ लगाया गया अभिमंत्रित जल से छिटका देवादिदेव महादेव की इच्छा से बालक में चेतना आ गई उस समय की शोभा अत्यंत निराली थी उसका वर्णन करना दुर्लभ हैं | सभी देवताओ ने प्रसन्न मन से आशीष प्रदान की और अपने अपने स्थान चले गये | भगवान शिव ने प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया और इस संसार में गणेश के नाम से विख्यात्त हुए |

 

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