गुरुभक्त आरुणी की कथा | Guru Bhakt Aaruni Ki Katha

गुरुभक्त आरुणी की कथा | Guru Bhakt Aaruni Ki Katha

यह कथा गुरुभक्त आरुणी की हैं जिसमें श्रद्धा [ गुरु के प्रति विनय , सेवा की भावना ] , तत्परता [ लग्न परिश्रम ] , संयतेन्द्रियता [ मन एवं इन्द्रयो को वश में रखना ] कूट कूट कर भरी थी | विद्याथियो का जीवन सादा व मन को चंचल करने वाले सभी साधनों से दूर रहना चाहिए | विद्याथियो का जीवन त्यागमय होता हैं |अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संयम रखना अत्यंत आवश्यक हैं |

महर्षि धौम्य आश्रम में विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान किया करते थे |वे बहुत ही विद्वान महापुरुष थे | वेदों के ज्ञाता थे | उनके आश्रम में धनी व निर्धन बालक शिक्षा ग्रहण करते थे |  बालक आरुणी के लिए गुरु की आज्ञा ही सर्वोपरी थी | वर्षाकाल में गुरुकुल के खेत की मेड टूट गई थी | गुरूजी को चिंता में देख गुरु की आज्ञा से खेत की मेड ठीक करने चला गया | आरुणी जब वहाँ पहुंचा तो देखा वर्षा तेजी से हो रही थी अब आरुणी अकेला क्या करता ? एक और गुरु आज्ञा थी तो दूसरी और घनघौर वर्षा |

 

 

आरुणी ने मिट्टी से मेड बाँधने का प्रयास किया परन्तु वह सफल नहीं हुआ कोई तरकीब काम नहीं आई तब आरुणी स्वयं खेत की मेड पर लेट गये जिससे खेत में पानी नहीं जा सके | परन्तु ठंड एवं वर्षा के कारण आरुनी मुर्छित हो गये | रात्रि बीत गई सवेरा हुआ आरुणी खेत की मेड ठीक कर नही लौटे | गुरूजी का ध्यान आरुणी पर गया की आरुणी अभी तक खेत से नहीं आये यह देखकर गुरूजी चिन्तित हो गये |

गुरूजी व विद्यार्थी आरुणी आरुणी बेटा ! पुकारते – पुकारते खेत में जा पहुंचे | आरुणी को मूर्छित अवस्था में देख कर गुरूजी की आखो में आसू बहने लगे | गुरूजी ने आरुणी को गले से लगा लिया और आश्रम लाये | उपचार से आरुणी को चेतना आई | गुरूजी ने कहा – बेटा ! अब तुम्हे शिक्षा की आवश्यकता नहीं हैं तुम्हे सभी विद्याये सहज ही प्राप्त हो जाएगी | ‘ गदगद हृदय से गुरूजी नें आशीवाद दिया | 

गुरूजी के आशीर्वाद से आरुणी को ज्ञान प्राप्त हुआ और वे वेद के पारंगत विद्वान् हुए | 

 

 

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