dushala ke janm ki katha

 क्या आप जानते हैं गांधारी के सौ पुत्रो के अतिरिक्त एक पुत्री भी थी उस पुत्री का नाम क्या था उसका जन्म कैसे हुआ

क्या आप जानते हैं गांधारी के सौ पुत्रो के अतिरिक्त एक पुत्री भी थी उस पुत्री का नाम क्या था उसका जन्म कैसे हुआ | दु:श्ला  नाम वाली उस कन्या की  कामना गांधारी ने  मन ही मन कैसे की |

महर्षि व्यास के प्रसाद से धतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्र हुए परंतु यह कम लोग जानते हैं कि उनके एक कन्या भी थी

धृतराष्ट्र और गांधारी के सौ पुत्रों के अतिरिक्त एक कन्या भी थी | अमित तेजस्वी महर्षि व्यास जी ने गांधार राजकुमारी को सौ पुत्र होने का वरदान दिया था |

फिर उनके किस प्रकार एक पुत्री उत्पन्न हुई इसकी कथा आज हम जानते हैं |

महर्षि ने उसे मांस पिंड के सौ भाग किए और यदि सुबल पुत्री गांधारी ने किसी प्रकार का गर्भधारण नहीं किया तो फिर दु :शला का जन्म कैसे हुआ ? दु:शलानाम वाली उस कन्या का जन्म कैसे हुआ | उस समय दु:शला नाम वाली कन्या का जन्म किस प्रकार हुआ |

महा तपस्वी जी भगवान व्यास जी ने स्वयं ही उस महात्मा पिंड को शीतल जल से सीच कर उसके सौ भाग किए थे उस समय जो भाग जैसा बना उसे वैसे ही एक-एक करके घी से भरे हुए कुडों में डलवारहे थे | इसी समय रानी गांधारी ने कन्या के स्नेह के संबंध में विचार करके मन ही मन सोचने लगी कि मेरे सौपुत्र होंगे और यदि मेरे एक पुत्री भी हो जाती तो मैं संपूर्ण संसार में सबसे सौभाग्यशाली होती |

यदि मेरे सौ पुत्रों के अतिरिक्त एक छोटी सी कन्या हो जाएगी तो मेरे दौहित्र का पुण्य प्राप्त होने वाले उत्तम भोगो से भी हम वंचित नहीं रहूंगी |

यदि मेरे एक पुत्री हो जाएगी तो मैं मेरा जीवन सफल हो जाएगा यदि मैंने सचमुच स्वयं के जीवन में दान , होम किया है तथा गुरुजनों की सेवा के द्वारा उन्हें प्रसन्न कर लिया हो यदि मैं पतिव्रता नारी हूं तो मुझे पुत्री अवश्य प्राप्त होगी |ऐसा विचार मन ही मन करने लगी |

तभी व्यास जी ने कहा की थी गांधारी मैंने सौ पुत्रों के अतिरिक्त एक भाग और बचा दिया हैं जिसे दौहित्र का योग होगा इस भाग से तुम्हें अपने मन के अनुरूप एक सौभाग्यशाली ने कन्या प्राप्त होगी |

ऐसा कहते हुए वहां तपस्वी व्यास जी ने घी से भरा हुए एक और घड़ा मंगवाया और उसमें तपोधन मुनि ने उस कन्या भाग को उसी में डाल दिया | इस प्रकार उचित समय आने पर गांधारी के सौ पुत्रो तथा एक पुत्री का जन्म हुआ हैं |

 

 

 

इस प्रकार दु:शला के का जन्म हुआ है

समय आने पर महाराज धृतराष्ट्र ने विवाह योग्य होने पर अपनी पुत्री दु:शला का विवाह राजा जयद्रथ के साथ विधिपूर्वक कर दिया था |

 

 

 

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