श्रीमद्देवीभागवत महात्म्यअध्याय–1 देवीभागवत  महिमा

 

ऋषिगण बोले— सूत जी ! हमें वह कथा सुनने की इच्छा है, जो परम पवित्र हो तथा जिसके प्रभाव से मनुष्य सुगमता- पूर्वक मुक्ति और मुक्ति के सम्यक् अधिकारी बन

 

जायँ । सूतजी कहते हैं-ऋषियो ! तुम बड़े भाग्यशाली हो । जगत् के कल्याण होने की इच्छा से तुमने यह बहुत उत्तम बात पूछी । व्यासजी भगवान् विष्णु के अंश हैं। पराशरजी उनके पिता और सत्यवती माता हैं । व्यासजी ने वेदों को चार भागों में विभाजन करके उन्हें अपने शिष्यों को पढ़ाया, उसी समय भुक्ति और मुक्ति देने वाला देवीभागवत नामक पुराण रचा।

 

पूर्व समय की बात है कि जनमेजय के पिता राजा परीक्षित थे। उन्हें तक्षक सप ने डंस लिया था । उनकी दुर्गति-निवा- रण के लिये जनमेजय ने देवीभागवत सुना । वेदव्यासजी के मुखारविन्द से नौ दिनों में इसकी श्रवण-विधि संपन्न की । नवाह्न यज्ञ समाप्त होने पर उसी क्षण महाराज परीक्षितको

भगवती का परमधाम प्राप्त हो गया। पिता को परमधाम – प्राप्त हो गया-यह देखकर राजा जनमेजय को अपार हर्ष हुआ।। उन्होंने मुनिवर व्यासजी की भलीभाँति पूजा की। जो मानव भक्तिपूर्वक देवीभागत की कथा सुनते हैं, सिद्धि सदा उनके संनिकट खेलती रहती है। देवीभागवत सर्वोत्तम पुराण माना जाता है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्षकी प्राप्ति के लिये यह सर्वोपरि साधन है। जो पुरुष देवीभागवत के अथवा बधे श्लोक का भी भक्तिभाव से नित्य पाठ करता है, उस पर देवी प्रसन्न हो जाती हैं। भगवान् श्रीकृष्ण प्रसेन एक श्लोक को खोजने के लिये चले गये। बहुत समय तक नहीं लौटे तब वसुदेवजीने यह देवीभागवत पुराण सुना। इसके प्रभाव से उन्होंने प्रिय पुत्र श्रीकृष्ण को शीघ्र पाकर आनन्द लाभ किया था।

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