अंगारक चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी फाल्गुन मास | ANGARKI CHATURTHI

गणेश जी की कहानी

अंगारक चतुर्थी -संकष्टी चतुर्थी 

फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को अंगारकी चतुर्थी का व्रत है। अंगारकी चतुर्थी व्रत में  भगवान गणेश विधि विधान से पूजा अर्चना और व्रत किया जाता है ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश की विधि पूर्वक पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है इस दिन एक समय भोजन किया जाता है  इस व्रत में चंद्रमा की भी पूजा की जाती है चंद्र दर्शन के पश्चात ही यह व्रत पूर्ण होता है ऐसी मान्यता है कि अंगारकी चतुर्थी का व्रत करने से पूरे साल भर के चतुर्थी व्रत का फल प्राप्त होता हैं |

गणेश पुराण के उपासना खंड में ब्रह्मा जी  कथा के अनुसार पृथ्वी पुत्र भौम ने नर्मदा नदी के किनारे पद्मासन लगाकर भगवान विघ्नहर्ता श्रीगणेश की घोर तपस्या उनके वैदिकमंत्रों का जप करने लगे। निराहार रहते हुए उनका शरीर अत्यंत दुर्बल कमजोर हो गया था। इस प्रकार कई वर्षो तक कठोर तप करने के बाद चतुर्थी तिथि को जब चंद्रमा उदय हुए तो उस समय भगवान गणेशजी ने भौम को अपने विराट रूप के दर्शन दिये |विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी दिव्य वस्त्र धारण किये उनके मस्तक पर चंद्रमा शोभायमान हो रहे थे , उनके हाथ में अनेकों प्रकार के आयुध सुशोभित हो रहे थे। उनकी सूंड सुंदर थी  एक दंत अत्यंत शोभायमान हो रहा था। उनके बड़े-बड़े कान कुंडलों से सुशोभित हो रहे थे। उनका श्रीविग्रह करोड़ों सूर्य की आभा वाला और अनेक प्रकार के अलंकारों से अलंकृत था। भोम अपने इष्टदेव भगवान गणेश के अलौकिक रूप को देखकर उनके चरणों में गिर पड़ा और उन पार्वती पुत्र श्री गणेश की स्तुति करने लगे | भौम को भाव विभोर स्तुति करते हुए देख भगवान गणेश अत्यंत प्रसन्न हुए और मधुर वाणी से बोले हे वत्स ! मैं तुम्हारी मन को प्रसन्न करने वाली कठोर तपस्या, भक्ति और स्तुति से मैं बहुत प्रसन्न हूं। बाल्यवस्था होते हुए भी तुममें बहुत धैर्य है। मैं तुम्हें मनवांछित वरदान देता हूँ।

त्रैलोक्य में कल्याणकारक के रूप में विख्यात हो जाय। हे विभो ! अंगारकी चतुर्थी तिथि को मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है इसलिए  यह तिथि सम्पूर्ण कष्टों को हरने वाली तथा सभी कामनाओं की पूर्ति कराने वाली होगी |

भौम के भाव विभोर करने वाले मधुर वचनों से भगवान गणेश जी अति प्रसन्न हुए और बोले हे पृथ्वी पुत्र तुम्हे सुरों के साथ अमृतपान करोगे और मंगल इस नाम से लोक में तुम्हारी ख्याति होगी। अंगारक के सामान रक्तवर्ण होने के कारण तुम अंगारक नाम से भी प्रसिद्ध होगे। जो मनुष्य अंगारक चतुर्थी को तुम्हारा व्रत करेगा उसे वर्ष भर संकष्ट चतुर्थी व्रत करने से होने वाले फल के समतुल्य पुण्य प्राप्त होगा। उनके संपूर्ण कार्यों में निर्बिघ्नता होगी इसमें कोई संशय नहीं है। हे शत्रुओं को संतप्त करने वाले ! तुमने व्रतों में सर्वश्रेष्ठ चतुर्थी व्रत का अनुष्ठान किया अतः उसके प्रभाव से तुम अवंतीनगरी के राजा होगे। तुम्हारे नाम का जप करने  मात्र से ही मनुष्य अपनी सभी कामनाओं को प्राप्त करेगा।

मंगल को इस प्रकार वरदान देकरपार्वती पुत्र गजानन भगवान गणेश जी अंतर्ध्यान हो गए। तब भगवान गणेश ने विराट रूप धारी अलौकिक भगवान गणेश की वाली प्रतिमा की भक्ति पूर्वक स्थापना की और मंदिर का नाम मंगलमूर्ति रखा। तभी से अवंतिका क्षेत्र सभी मनुष्यों के लिए मनो कामनाओं को पूर्ण करने वाला हो गया। अंगारकी चतुर्थी को मंगल की पूजा आराधना करने से जन्म कुंडली में मंगल ग्रह जनित दोषों से मुक्ति मिलती है।

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