“धर्मो रक्षति रक्षितः।इतिमनुः”
जो मनुष्य धर्म का अतिक्रमण करता है या जो धर्म को नष्ट करना चाहता है, वो धर्म द्वारा ही अपने आप नष्ट हो जाता है। धर्म की रक्षा करने वालो की धर्म रक्षा करता है। धर्म को वृष कहा जाता है अर्थात कामनाओंकी वर्षा करने वाला कहा जाता है,धर्म निवारक को देवता वृषल कहते है। यह जान लीजिए धर्म ही परम मित्र है मृत्यु के पश्चात भी धर्म ही साथ रहता है, सभी सबंध छूट जाते है।
वेद धर्म का मूल है, आचार प्रथम धर्म है। वेद को श्रुति और धर्मशास्त्र को स्मृति कहते है, यह दोनों अतर्क्य है अर्थात इन पर तर्क नहीं करना चाहिए कारण की यहीं दोनों धर्म के प्रकाशक है। श्रुति-स्मृति-आचार-संतुष्टि यह चार धर्म के लक्षण है। – इति मनुस्मृति