संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजन विधि , कथा || Sankashti Chaturthi Vrat pujan vidhi , Katha

संकष्टी चतुर्थी व्रत पूजन विधि 

प्रत्येक मास में कृष्ण पक्षमें विनायक चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती हैं | संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का पूजन किया जाता हैं | ऐसी मान्यता हैं की संकष्टी चतुर्थी को व्रत एवम भगवान गणेश का पूजन करने से सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं जीवन में आने वाले अनिष्ट दूर हो जाते हैं तथा  धन – धान्य और सुख सम्पति का वास होता हैं | संकष्टी चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता हैं | प्रथम पूज्य गणेश भगवान की अनेक रूपों में पूजा की जाती हैं |

 

 

 

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भगवान गणेश के अनुकूल होने से समस्त जगत अनुकूल हो जाता हैं | जिस पर एकदन्त भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं उस पर देवता , पितृ , मनुष्य सभी प्रसन्न हो जाते हैं | समस्त विघ्नों को दूर करने के लिए श्रद्धा , भक्ति से भगवान गणेश की पूजा अर्चना जप तप करना चाहिए |

 

 

 

भगवान गणेश को बुद्धि के देवता माने जाते हैं | वैसे तो प्रत्येक मास की चतुर्थी करना शुभ माना जाता हैं | सबसे बड़ी चतुर्थी के रूप में भाद्रपद मास की चतुर्थी को बहुला चतुर्थी के रूप में मनाया जाता हैं |

भगवान गणेश की पूजा प्रात: स्नानादि से निर्वत हो साफ वस्त्र धारण करे वस्त्र लाल रंग के हो तो उत्तम होगा | भगवान गणपति को स्नान कराए सिन्द्र्र का चोला चढाये , धुप , दीप , अगरबती मोदक से भगवान विनायक का पूजन कर प्रसाद बाँट देवे | चौथ माता व विनायक जी कथा सुने प्रेम सहित आरती  गाये और चाँद को अर्ध्य देकर स्वयं भोजन करे |

संकष्टी चतुर्थी व्रत की अनेक कथाये प्रचलित हैं

 

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 संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा

विष्णु भगवान लक्ष्मी जी की शादी होने लगी | समस्त देवी देवताओ को विवाह का आमन्त्रण दिया गया | तो सभी कहने लगे , गणेशजी को नहीं ले जांएगे वे बहुत सारा खाते हैं | दुन्द दुन्द्याल्या , सुन्द सुन्द्याल्या , उखल से पांव , छाछ्ले से कान , मोटा मस्तक वाले हैं | गणेशजी को साथ ले जाकर क्या करेंगे | गणेशजी को घर की रखवाली छोड़ जाते हैं और सब बरात में चले गये |

 

 

नारद जी ने गणेश जी भगवान को भड़का दिया की आपका बड़ा अपमान किया हैं | बारात बुरी लगती इसलिए आपको नहीं ले गये | गणेश जी ने क्रोधित होकर चूहों को आज्ञा दी की पृथ्वी को खोखला कर  दो | पृथ्वी के खोखला करने के कारण रथ के पहिये मिटटी में धंस गये सबके प्रयास करने पर भी सफलता नहीं मिली तब खाती को बुलाया गया | खाती ने रथ को निकलने के लिए जैसे ही हाथ लगाया गणेशजी भगवान की जय और रथ का पहिया निकल गया | समस्त देवता आश्चर्यचकित हो गये और पूछा तुमने गणेशजी का नाम क्यों लिया तब उसने कहा की किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश का ध्यान करने से सभी कार्य निर्विघ्न सम्पूर्ण हो जाते हैं |

तब सभी देवताओ ने सम्मान के साथ गणेश जी को बुलाया | गणेश जी का विवाह रिद्धि सिद्धि से करवाया फिर लक्ष्मी जी के साथ विष्णु भगवान का विवाह हुआ |

हे गणेशजी भगवान जिस प्रकार निर्विघ्न विष्णु भगवान का कार्य सिद्ध किया वैसे सभी भक्तो का कार्य सिद्ध करना |

 

 

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