सोमवार व्रत की कहानी । Somwar Vrat ki kahani

 

सोमवार व्रत की कहानी

देवाधिदेव महादेव जी कैलाश पर्वत पर जा रहे थे । मां पार्वती बोली मैं भी चलूंगी । महादेव जी बोले है पार्वती तुम मत चलो तुम्हें भूख प्यास लगेगी पार्वती जी बोली नहीं मैं भी चलूंगी रास्ते में पार्वती जी बोली है स्वामी मुझे भूख लगी है । मुझे तो खीरखंड के भोजन करने हैं महादेव जी बोले मैंने तो कही थी कि तुम मत चलो।

चलते-चलते एक साहूकार के घर पर आ गए साहूकारनी बोली महाराज क्या चाहिए महादेव जी बोले हमारी देवी को खीरखंड के भजन चाहिए तो साहूकार ने बोले घर में क्यों ना रहे इतना सुनकर महादेव जी और पार्वती जी आगे चले रास्ते में उनको एक बुढ़िया मिली और बोली आओ महाराज बैठो महादेव जी बोले हमारी देवी को खीरखंड के भजन चाहिए बुढ़िया लोटा लेकर चल दी महादेव जी बोले बुढ़िया कहां चली बोली दूध चावल खंड लेने जाऊं महादेव जी बोले घर में देखो देखे दूध के टोकने भरे हैं चावल की परात भरी है खांड की बोरी भरी है । भगोना भर खीर बना ली महादेव जी और पार्वती जी को जिमा दिया बुढ़िया माई बोली अब इन बची हुई का क्या करूं महाराज । मेरे घर में तो खाने वाला कोई नहीं है। महादेव जी बोले आंख बंद कर और आंख खोल कर देखें तो खूब परिवार हो गया अब बोली महाराज कहां रखूं महादेव जी ने झोपड़ी झोपड़ी को महल बना दिया। अब बुढ़िया माई खीर के कटोरा भर भर कर बांटने लगी तब सब बोले की खीर कहां से आई । तब बुढ़िया मैं बोली महादेव जी और पार्वती जी मेरे घर आए उन्होंने ही मेरे घर में धन के ढेर लगा दिए मैंने कुछ भी नहीं किया मैं तो सिर्फ भगवान शिव जी और मां पार्वती का पूजन करती हूं। हे भगवान जैसे बुढ़िया माई के भोलेपन पर प्रसन्न हुए वैसे सब पर प्रसन्न होना ।

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