सोमवती अमावस्या की कहानी , व्रत विधि | somvati-amavshya-ki-khani-vrt-vidhi 2022 

 

सोमवती अमावस्या की कहानी , व्रत विधि व्रत विधि

सोमवती व्रत के दिन जिस दिन सोमवार और अमावस्या तिथि हो उसे सोमवती अमावस्या कहते हैं | इस दिन पितरो का तर्पण कर दान पुण्य का विशेष महत्त्व हैं | इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा व 108 परिक्रमा करना चाहिए |इस दिन परिक्रमा में पैसा , फल , मिठाई आदि चढ़ानी चाहिए |  बच्चो को फल तथा मिठाई बाटने से विशेष फल मिलता हैं | इस दिन का शास्त्रों में विशेष महत्व हैं | इस व्रत को सुहागिन स्त्रिया अपने पति व पुत्र की दीर्घायु के लिए व अखंड सौभाग्य के लिए करती हैं |

सोमवती अमावस्या की कहानी

सोमवती अमावस्या की कहानी एक साहूकार था | उसके सात बेटे बहु व एक बेटी थी | उसके घर एक जोगी भिक्षा लेने आता जब बहुए भिक्षा देती तो वह ले लेता और जब बेटी देती तो जोगी भिक्षा नही लेता और बोलता “ बेटी सुहागन तो हैं , पर इसके भाग्य में दुःख लिखा हैं |” ऐसा सुनकर बेटी दुबली होने लगी तो बेटी की माँ ने बेटी से पूछा , तू क्यों सुख़ रही हैं ? बेटी की माँ ने जोगी वाली बात बताई |

दुसरे दिन माँ ने छुपकर जोगी की बात सुन ली और जोगी के पावं पकड़ लिए और कहा की आप ही कुछ इसका उपाय बता सकते हैं की इसके भाग्य में क्या लिखा हैं , इसका उपाय बताओं | जोगी ने कहा की सात समुन्द्र पार एक सीमा धोबन रहती हैं | वह सोमवती अमावस्या का व्रत करती हैं यदि वह इसका फल इसको दे दे तो इसके भाग्य में लिखे दुःख टल जायेगे |

उसकी माँ सीमा धोबन की तलाश में सात समुन्द्र पार सीमा धोबन को ढूढने चली गई |रास्ते में पीपल के पेड़ के नीचे विश्राम करने लगी तो देखा एक सापं गरुड पक्षी के बच्चो को खा जायेगा तो उसने गरुड पक्षी को मर दिया | इतने में गरुड पक्षी का जौड़ा उड़ता उड़ता आकाश से आया और चोच मरने लगा तो वो बोली “ मैने तो तेरे बच्चो को बचाया हैं , तेरा गुनहगार मरा पड़ा हैं |” गरुड बोला जों मांगना हैं मांग सो मांग |

लडकी की माँ बोली मुझे सात समुन्द्र पार पहुचा दो | गरुड ने उसे सीमा धोबन के घर के पास उसको छोड़ दिया |वहाँ सीमा धोबन के सात बहु व बेटे थे | बहुए काम करते हुए लडती थी | सीमा धोबन को खुश करने के लिए सारा काम सबके उठने से पहले कर देती | सब सोचने लगे की यह काम कौन करता हैं | सीमा धोबन ने सोचा सारा काम कोनसी बहु करती हैं देखना चाहिए | “  चुपचाप आँख बंद करके सो गई तो देखा एक ओरत आई और सारा काम करके जाने लगी |

 

सीमा धोबन ने उसको रोक कर पूछा – तू किस स्वार्थ से हमारे घर का काम करती हैं | साहुकारनी  बोली – मेरी बेटी को आप अपना सोमवती अमावस्या का पुण्य दे दे और सारी बात बताई | धोबन तैयार हो गई | अपने घर वालो को बोल दिया की मेरे आने तक किसी को भी घर के बाहर न जाने देना| साहुकारनी के साथ सीमा धोबन उसके घर आ गई | बेटी के ब्याह की तैयारी करी | दूल्हा दुल्हन फेरे में बैठे | दूल्हा के पास सीमा धोबन , मिट्टी की हांड़ी कच्चा दूध , कच्चा सूत लेकर बैठी | इतने में दुल्हे को डसने के लिए साँप आया |

धोबन ने उसे हांड़ी में डाला और कच्चे सूत से हांड़ी बांध दी तो साँप बोला दूल्हा तो डर के मारे मर गया | तू उसे जीवन दान दे | सीमा धोबन ने उसके ऊपर छीटे दिए और कहा आज तक जितनी सोमवती अमावस्या करी उसका पुण्य साहूकार की बेटी को लगना और जों अमावस्या करूं उसका पुण्य साहूकार की बेटी को लगना और आगे जों अमावस्या करूं उसका फल मेरे पति को लगना | इतना बोलते ही दूल्हा उठ गया | काम पूरा हुआ , वो अपने घर जाने लगी तो साहुकारनी बोली  मैं आपको क्या दू तब सीमा धोबन बोली मुझे क्या चाहिए , बीएस एक मिट्टी की हांड़ी दे दे | रास्ते में अमावस्या आई | उसने हांड़ी के 108 टुकड़े कर पीपल के नीचे रखे | 13 टुकड़े एक जगह रखे व पीपल के 108 परिक्रमा दी और टुकड़े पीपल में गाड़ दिये , घर जाने लगी | घर आई तो उसका पति मरा पड़ा था |

उसने पति पर सुहाग का छीटा दिया और कहा मेरी अमावस्या का फल मेरे पति को मिले | ऐसा कहते ही उसका पति जीवित हो गया | एक ब्राह्मण आया और बोला सोमवती अमावस्या का जों किया हो वो दान दो | सीमा धोबन बोली रास्ते में अमावस्या आई कुछ नही कर पाई और जों किया वो पीपल के नीचे गाड़ दिया | ब्राह्मण ने जगह खोदी तो पाया की वहाँ 108 व 13 सोने के टुकड़े रखे हैं | इकट्टे करके वो घर आया , और धोबन से बोला इतना धर्म किया और कहती कुछ न किया | सीमा धोबन बोली ये सब तुम्हारे भाग का हैं आप ले आवो |

ब्राह्मण बोला मेरा तो चौथा हिस्सा ही हैं | बाकि तिन हिस्सा आप की इच्छा हो उसको देना | ब्राह्मण ने नगर में ढिढोरा पिटा दिया , सब जन सोमवती अमावस्या का व्रत करे | हे सोमवती अमावस्या साहूकार की बेटी को दिया वैसा अमर सुहाग सबको देना |

|| जय बोलो सोमवती अमावस्या की जय ||                         ||ॐ पितृ देव्य नम: || somoti amavsya 2022 

मोनी अमवस्या की कहानी 

वट सावित्री व्रत कथा