श्री सत्यनारायण भगवान पूर्णिमा व्रत कथा | shree satynarayan vrat katha

 सत्यनारायण व्रत कथा का महत्त्व

भारत वर्ष में श्री सत्यनारायन व्रत कथा अत्यंत लोकप्रिय हैं और जनता जनार्दन में इसका प्रचार प्रसार भी सर्वाधिक हैं | भारतीय सनातन परम्परा में किसी भी मांगलिक कार्यक्रम प्रारम्भ भगवान गणपतिं के पूजन से एव उस कार्यक्रम की पूर्णता भगवान सत्यनारायन की कथा श्रवण से समझी जाती हैं | वर्तमान समय में भगवान सत्यनारायन की प्रचलित कथा स्कन्द्पुराण के रेवाखंड के नाम से प्रसिद्द हैं , जों पांच या सात अध्याय के रूप में उपलब्ध हैं | भविष्यपुराण के प्रतिसर्गपर्व में भी सत्यनारायण व्रत कथा का उल्लेख मिलता हैं | जों छ: अध्याओ में हैं |

परमेश्वर ही त्रिकालबाधित सत्य हैं जों एकमात्र वही ज्ञेय , धेय्य एवं उपास्य हैं | ज्ञान – वैराग्य और अनन्य भक्ति भावना के द्वारा साक्षात्कार करने योग्य हैं | भागवत { १० | २ | २६ } में भी कहा गया हैं |

सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनि निहितं च सत्ये |

      सत्यस्य स्त्य्मृतसत्येनत्रम सत्यात्मकं त्वां शरणम् प्रपन्ना: |

श्री सत्यनारायण की पूजा का फल एवं विधि चतुर्मुख ब्रह्मा भी बतलाने में समर्थ नहीं हैं , किन्तु संक्षेप में मैं उसका फल तथा विधि बतला रही हूँ , आप सुने –

सत्यनारायण के व्रत एवं पूजन से  निर्धन व्यक्ति धनाढ्य और पुत्रहीन व्यक्ति पुत्रवान हो जाता हैं | दृष्टिहीन व्यक्ति दृष्टिसम्पन्न हो जाता हैं | अधिक क्या ? व्यक्ति जिस जिस वस्तु की इच्छा करता हैं वह सब उसे प्राप्त हो जाती  हैं | इसलिए सुने ! मनुष्य – जन्म से भक्तिपूर्वक सत्यनारायण की अवश्य आराधना करनी चाहिये | इससे वह अपने अभिलाषित वस्तु को नि: संदेह शीघ्र ही प्राप्त कर लेता हैं |

       इस सत्यनारायण व्रत के करने वाले व्रती को चाहिये कि वह प्रात: द्न्त्धावन पूर्वक स्नान कर पवित्र हो जाय | हाथ में तुलसी मंजरी लेकर सत्य में प्रतिष्ठित भगवान श्री हरी का इस प्रकार ध्यान

 करे  ———–

नारायणम                      सान्द्रघनावदातं

         चतुर्भुजं                    पीतमहा हर्वाससम |

प्रसन्न वक्त्र्म                      नव कंज लोचनं

स्न्न्दनाद्योरूपसेवितं               भजे  ||

करोमि  ते  व्रतं  देव  सांयकाले  त्व्द्रच्र्न्म  |

श्रुत्वा  गाथा त्वदीय ही प्रसादं ते भजाम्यहम ||

           इस प्रकार मन में संकल्प कर सांयकाल में विधिपूर्वक भगवान सत्यनारायण की पूजा करनी चाहिये |

पूजन सामग्री:  ——— पूजा में पांच कलश , केले के पत्ते , बन्दनवार लगाने चाहिये , स्वर्ण मंडित भगवान शालग्राम को पंचामृत आदि से भली बहती स्नान कराकर चन्दन आदि अनेक उपचारों से भक्ति पूर्वक उनकी अर्चना करनी चहिये |

नमो भगवते  नित्य  सत्यदेवाय शेवय श्री मही |

च्तुप्दार्थदात्रे    च   नमस्तुभ्यम  नमों  नम ||

सत्यनारायण व्रत —- कथा में  शतानन्द [ सदानंद  ] ब्राह्मण की कथा

सूतजी बोले – ऋषियों ! भगवान नारायण ने स्वयं कृपा पूर्वक देवर्षि नारदजी जिस प्रकार इस व्रत का प्रचार प्रसार किया , अब मैं उस कथा कों कहता हूँ |, आप लोग सुने —–

लोकप्रसिद्द कांशी नगरी में एक श्रेष्ट विद्वान् ब्राह्मण रहते थे , वे ग्रहस्थ थे , दिन थे तथा स्त्री – पुत्रवान थे | वे भिक्षा – वृति से अपना जीवन – यापन करते थे | उनका नाम शतानंद था | एक समय वे भिक्षा मांगने के लिये जा रहे थे |  उन विनीत एवं अतिशय शांत शतानंद को मार्ग में एक वृद ब्राह्मण दिखायी दिये’ , जों साक्षात् हरी ही थे | उन वृद ब्राह्मण वेष धारी श्री हरी ने ब्राह्मण शतानंद से पूछा –‘ ‘ दिव्ज श्रेष्ट ! आप किस निमित्त से कहाँ जा रहे हैं ? ‘ शतानन्द बोले — सोम्य ! अपने पुत्र क्लत्रादी के भरण – पौषण के लिये धन याचना की कामनाओ मैं धनिकों के पास जा रहा हूँ |,

नारायण ने कहा —- दिव्ज ! निर्धनता के कारण आपने भिक्षा वृति अपना रखी हैं , इसकी निवृति के लिए सत्यनारायण व्रत कलि युग में सर्वोतम उपाय हैं |  इसलिये मेरे कथन के अनुसार आप कमल नेत्र भगवान सत्यनारायण के चरणों की शरण – ग्रहण करे , इसमे दारिद्रय , शोक और सभी संतापों का विनाश होता हैं और मोक्ष भी प्राप्त होता हैं | करुणामूर्ति भगवान के इन वचनों को सुनकर ब्राह्मण शतानंद ने पूछा —  ‘ ये सत्यनारायण कौन हैं ? ’

ब्राह्मणरूपधारी भगवान बोले —- नानारूप धारण करने वाले , सत्यव्रत , सर्वत्र व्यापक रहने वाले तथा निरंजन वे देव इस समय विप्र का रूप धारण कर तुम्हारे सामने आये हैं | इस महान दुःख रूपी संसार सागर में पड़े हुए प्राणियों को तारने के लिए भगवान के चरण नौका रूप हैं | जों बुद्धिमान व्यक्ति हैं , वे भगवान की शरण में जाते हैं , किन्तु विषयों में व्याप्त विषय बुद्धि वाले व्यक्ति भगवान की शरण में न जाकर इसी संसार सागर में पड़े रहते हैं | इसलिये दिविज  संसार के कल्याण के लिए विविध उपचारों से भगवान सत्य नारायण देव की पूजा आराधना तथा ध्यान करते हुए तुम इस व्रत को प्रकाश में लाओ |

विप्ररूपधारी भगवान के ऐसा कहते ही उस ब्राह्मण शतानंद ने मेघो के समान नीलवर्ण , सुन्दर चार भुजाओ में शंख , चक्र , गदा तथा पदम् लिए हुए और पीताम्बर धारण किये हुए , नवीन विकशित कमल के समान नेत्र वाले तथा मंद मंद मधुर मुस्कान वाले ,वनमाला युक्त और भोरों द्वारा चुमबित चरण कमल वाले पुरुषोत्तम भगवान नारायण के साक्षात् दर्शन किये |

भगवान की वाणी सुनने के बाद प्रत्यक्ष दर्शन करने के बाद उस विप्र के सभी अंग पुलकित हो उठे , आखों में प्रेमाश्रु भर आये | उसने भूमि पर गिरकर भगवान को साष्टांग प्रणाम किया और गद – गद वाणी से वह उनकी इस प्रकार स्तुति करने लगा ————-

संसार के स्वामी ,जगत के कारण के भी कारण ,अनाथों के नाथ , तीनो प्रकार के तापों का सम्मुल उच्छेद करने वाले भगवान सत्यनारायन को में प्रणाम करता हूँ | आज में धन्य हो गया , पुण्यवान हो गया ,आज मेरा जन्म सफल हो गया , जों की मन वाणी से अगम – अगोचर आपका मुझे  प्रत्यक्ष दर्शन हुआ |

लोकनाथ ! रमापते ! किस विधि श्रीसत्यनारायण  का पूजन करना चाहिए , विभों ! कृपाकर उसे भी आप बताए |

संसार को मोहित करने वाले भगवान नारायण मधुर वाणी में बोले — विपेन्द्र ! मेरी पुजा में बहुत अधिक धन की आवश्कता नहीं , अनायास ही धन प्राप्त हो जाये , उसी से श्रद्दापूर्वक मेरा व्रत करना चाहिए | इस व्रत की विधि सुने ———

अभीष्ट कामना की सिद्दी के लिए पूजा की सामग्री एकत्रकर विधिपूर्वक भगवान सत्यनारायण की पूजा करनी चाहिए | सवा सेर की गौधुम – चूर्ण में दूध और शक्कर चाहिए ,यह भगवान को अत्यंत प्रिय हैं | पंचामृत के द्वारा भगवान  शालग्राम को स्नान कराकर गंध , पुष्प ,धुप , दीप ,नैवेध्य तथा ताम्बुलादी उपचारों से मन्त्रो द्वारा उनकी अर्चना करनी चाहिए | अनेक मिष्टान तथा भक्ष्य – भोजन पदार्थो एवं फलों तथा फूलो से भक्ति पूर्वक पूजा करनी चाहिये | फिर ब्राह्मणों तथा स्वजनों के साथ मेरी कथा ,राजा तुंगध्वज के इतिहास , भीलो की और वणिक [ साधू ] की कथा को आदर पूर्वक श्रवण करना चाहिए | कथा के अनन्तर भक्तिपूर्वक सत्यदेव को प्रणाम कर प्रसाद का वितरण करना चाहिए | तदन्तर भोजन करना चाहिए | मेरी प्रसन्नता द्र्व्यादी से नही , अपितु श्रद्दा से होती हैं |

विपेन्द्र ! इस प्रकार जों विधिपूर्वक पूजा करते हैं , वे पुत्र – पोत्र तथा धन – सम्म्पति से युक्त होकर श्रेष्ट भोगो का उपभोग करते हैं और अंत में मेरा सानिध्य प्राप्त कर मेरे साथ आनन्दपूर्वक रहते हैं |जों – जों कामना करते हैं ,वह अवश्य ही पूरी हो जाती हैं |

इतना कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गये और वे ब्राह्मण भी अत्यंत प्रसन्न हो गये | मन ही मन उन्हें प्रणाम कर वे भिक्षा के लिए नगर की और चले गये और उन्होंने मन ही मन निश्चय किया की ‘ आज भिक्षा में जों धन मुझे प्राप्त होगा , मैं उससे भगवान सत्यनारायण की पूजा करूंगा | ”

उस दिन अनायास बिना मागे ही उन्हें प्रचुर धन प्राप्त हो गया | वे आश्चर्य चकित हो अपने घर आये | उन्होंने सारा वृतांत अपनी धर्म पत्नी को बताया | उसने भी सत्यनारायण के व्रत पूजा का अनुमोदन किया | वह पति की आज्ञा से श्रद्दापूर्वक बाजार से पूजा की सभी सामग्री को ले आये और अपने बन्धु बान्धव तथा पड़ोसियों को भगवान सत्यनारायण की पूजा में सम्मिलित होने के लिए बुला ले आई | अनन्तर शतानन्द ने भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा की | कथा की समाप्ति पर प्रसन्न होकर उनकी कामनाओ को पूर्ण करने के उद्देश्य से भक्तवत्सल भगवान सत्यनारायनण प्रकट हो गए | उनका दर्शन कर ब्राह्मण शतानंद ने भगवान से इस लोक में तथा परलोक में सुख़ तथा पराभक्ति की याचना की और कहा —– हे भगवान ! आप मुझे अपना दस बना ले | ’ भगवान भी ‘ ततास्तु ‘कहकर अंतर्धयान हो गए | यह देखकर कथा में आये सभी जन अत्यंत विसिम्त हो गए और ब्राह्मण भी कृतकृत्य हो गया | वे सभी भगवान को दंडवत प्रणामकर आदरपूर्वक प्रसाद ग्रहणकर’ यह ब्राह्मण धन्य हैं , धन्य हैं |

तभी से लोक में यह प्रचार हो गया की भगवान सत्यनारायण व्रत अभीष्ट कामनाओ की सिद्दी प्रदान करने वाला , क्लेश्नाश्क और भोग – मोक्ष को प्रदान करने वाला हैं |

इस कथा के बाद राजा चन्द्र चुड की कथा सुने |

                   ||  जय बोलो सत्यनारायण भगवान की जय ||

                      सत्यनारायण व्रत – कथा में राजा चन्द्रचुड का आख्यान

सूतजी बोले – ऋषियों ! प्राचीन काल में केदारखंड के मणिपूरक नामक नगर में राजर चन्द्रचुड नामक एक धार्मिक तथा प्रजा वत्सल राजा रहते थे | वे अत्यंत शान्त स्वभाव , मृदुभाषी तथा भगवान नारायण के भक्त थे |विन्द्यादेश के म्लेच्छगण उनके शत्रु हो गये | राजा का म्लेछो से युद्ध हुआ | राजा की सेना का बहुत अधिक नुकसान हुआ | लेकिन मलेच्छो का नुकसान कम हुआ | युद्द में परास्त होने पर राजा चन्द्रचुड वन में चले गये | तीर्थ के बहाने इधर – उधर घूमते हुए वे कांशीपुरी में पहुचे | वहा उन्होंने देखा की घर – घर सत्यनारायन की पुजा हो रही हैं और यह कांशी नगरी द्वारका के समान ही भव्य एवं समृद शाली हो गई हैं |

वहा की समृधि देखकर राजा विस्मित हो गये और उन्होंने सदानन्द [ शतानन्द ] ब्राह्मण द्वारा की गयी सत्यनारायण पुजा की प्रसिद्दी भी सुनी ,जिस्सके करने से सभी शील एवं धर्म से समृद्ध हो गये थे | राजा चन्द्रचुड  शतानन्द के पास गये और उनके चरणों में गिरकर उनसे सत्यनारायण पुजा की विधि पूछी तथा अपने राज्य भ्रष्ट होने की कथा भी बतलायी और कहा —- ब्रह्मन ! लक्ष्मीपति भगवान जनार्दन जिस व्रत से प्रसन्न होते हैं , पाप के नाश करने वाले उस व्रत को बतलाकर आप मेरा उद्दार करे |

सदानन्द { शतानन्द ] ने कहा —— राजन ! श्रीपति भगवान को प्रसन्न करने वाला सत्यनारायण एक श्रेष्ट व्रत हैं जों समस्त दुःख शोकादि को नष्ट करने वाला ,धन – धान्य , सौभग्य और सन्तान को देने वाला , तथा सर्वत्र विजय दिलाने वाला हैं | अभीष्ट कामना की सिद्दी के लिए पूजा की सामग्री एकत्रकर विधिपूर्वक भगवान सत्यनारायण की पूजा करनी चाहिए | सवा सेर की गौधुम – चूर्ण में दूध और शक्कर चाहिए ,यह भगवान को अत्यंत प्रिय हैं | पंचामृत के द्वारा भगवान  शालग्राम को स्नान कराकर गंध , पुष्प ,धुप , दीप ,नैवेध्य तथा ताम्बुलादी उपचारों से मन्त्रो द्वारा उनकी अर्चना करनी चाहिए | अनेक मिष्टान तथा भक्ष्य – भोजन पदार्थो एवं फलों तथा फूलो से भक्ति पूर्वक पूजा करनी चाहिये | फिर ब्राह्मणों तथा स्वजनों के साथ सत्यनारायण कथा ,राजा तुंगध्वज के इतिहास , भीलो की और वणिक [ साधू ] की कथा को आदर पूर्वक श्रवण करना चाहिए | कथा के अनन्तर भक्तिपूर्वक सत्यदेव को प्रणाम कर प्रसाद का वितरण करना चाहिए | तदन्तर भोजन करना चाहिए | मेरी प्रसन्नता द्र्व्यादी से नही , अपितु श्रद्दा से होती हैं |

यह सुनकर राजा ने कांशी में ही भगवान सत्यनारायण की शीघ्र पुजा की , और अपने राज्य आकर मलेच्छो को परास्त कर अपना राज्य प्राप्त कर नर्मदा के तट पर पुन: भगवान श्री की पुजा की |

वे राजा प्रत्येक मास की पूर्णिमा को प्रेम और भक्तिपूर्वक विधि – विधान से भगवान सत्यदेव की पुजा करने लगे |

व्रत के प्रभाव से वे लाखो ग्रामो के अधिपति हो गये और साथ वर्ष तक राज्य करते हुए अंत में विष्णु लोक को प्राप्त किया  |

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|| वन्दे विष्णु ||                                                                                   ||  वन्दे विष्णु  ||

                       ||     जय बोलो सत्यनारायण भगवान की जय    || 

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