रम्भा तृतीया व्रत पूजा विधि 

प्रातकाल स्नानादि से निर्वत होकर नवीं वस्त्र धारण करे |

पूर्व दिशा की और मुख कर भगवान सूर्य का धुप , दीप , गंध , पुष्प , नेवैध्य से दीप जलाकर पूजन करे |

देवी रम्भा का ध्यान कर उनका पूजन करे |

रात्रि जागरण कर देवी के भजन गाये नृत्य करे | 

ब्राह्मण भोज का आयोजन कर ब्राह्मणों को यथा शक्ति दान दक्षिणा देवे |

 

रम्भा तृतीया व्रत कथा

युधिष्ठिरने पूछा- भगवन् ! इस मृत्युलोकमें जिस व्रतके द्वारा स्त्रियोंका गृहस्थ जीवन सुचारु-रूपसे चले और उन्हें पति का सानिध्य मिले आप उस व्रत के बारे में विधि पूर्वक बताइये।

भगवान् श्रीकृष्णने कहा –  एक समय अनेक  पुष्पोंसे सुशोभित,  रमणीय कैलास-शिखरपर माँ पार्वती और भगवान् शिव बैठे हुए थे । उस समय भगवान् देवाधिदेव शंकरने पार्वतीसे पूछा – ‘हे देवी  ! तुमने कौन-सा ऐसा उत्तम व्रत किया था जिससे आज तुम मेरी वामाङ्गी [ पत्नी ] के रूपमें अत्यन्त प्रिय बन गयी हो ?”

पार्वतीजी बोलीं-  हे नाथ ! मैंने बाल्यकालमें रम्भाव्रत तृतीया व्रत किया था, रम्भा तृतीया व्रत के प्रभाव से आप मुझे पतिरूपमें प्राप्त हुए हैं  एवं मैं सभी स्त्रियोंकी स्वामिनी तथा आपकी अर्धाङ्गिनी भी बन गयी हूँ।

भगवान् शंकरने पू छा-  हे भद्रे ! सभीको स्नेह प्रदान करनेवाला वह रम्भाव्रत कैसे किया जाता है ? इस व्रत की क्या विधि हैं तुमने इस व्रत को जिस विधि से किया है वह सब तुम स्त्रियों के हित के लिए उसे बताओ।

देवी पार्वतीजी बोलीं – हे देवोकेदेव महादेव  ! एक समय मैं बाल्यकालमें अपने पिताके घर सखियोंके साथ खेलती थी, उस समय मेरे पिता हिमवान् तथा माता मेना ने मुझसे कहा – ‘पुत्रि ! तुम सुन्दर तथा सौभाग्यवर्धक रम्भा तृतीया के व्रतका अनुष्ठान करोउस व्रत को करने से   तुम्हें सौभाग्य, ऐश्वर्य तथा महादेवी-पदकी प्राप्ति हो जायगी।  हे पुत्रि ! ज्येष्ठ मासके शुक्ल पक्षकी तृतीयाको स्नान कर इस व्रतका संकल्प ग्रहण करो | उगते हुए सूर्य के प्रकाश में पूर्वकी दिशाकी ओर मुखकर बैठ जाओ और चार भुजाओंवाली एवं सभी अलंकारोंसे सुशोभित तथा कमलके ऊपर विराजमान भगवती महासतीका ध्यान करो। मेरी प्रिय पुत्रि ! महालक्ष्मी, महाकाली, महामाया, महामति, गङ्गा, यमुना, सिन्धु, शतद्रु, नर्मदा, मही, सरस्वती तथा वैतरणीके रूपमें वे ही महासती सर्वत्र विद्यमान हैं अतः तुम उन्हींकी आराधना करो।’

प्रभो ! मैंने माताके द्वारा बतलायी गयी विधिसे श्रद्धा भक्तिपूर्वक विधिपूर्वक  रम्भा तृतीया व्रतका अनुष्ठान किया और उसी व्रतके प्रभावसे मैंने आपको प्राप्त कर लिया।

 जो कोई स्त्री-पुरुष इस रम्भा तृतीया व्रतको करेगा, उसके कुलकी वृद्धि होगी। उसकी समस्त मनोकामनाए पूर्ण हो जाएगी | इस व्रत को करने से गृहस्थ सुख , दीर्घायु , गुणवान सन्तान , सुख सम्पति के भंडार भरे रहते हैं | 

 

 

 

 

 

 रम्भा तृतीया व्रत का महत्त्व

रम्भा तृतीया व्रत में देवी भगवती सती व स्वर्ग की अप्सरा देवी रम्भा व सूर्यदेव का विधि विधान से पूजन किया जाता हैं |

इस व्रत में चूड़ी के जौड़े का भी विधिपूर्वक पूजन किया जाता हैं | चूड़ी के जौड़े को देवी रम्भा का प्रतीक माना जाता हैं |

धन एश्वर्य और सुन्दरता का वरदान देरी है देवी रम्भा | रम्भा तृतीया व्रत जीवन में एक बार अवश्य करना चाहिए |

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