सम्पूर्ण भारतवर्ष में रामचरितमानस के रचियता गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती मनाई जाती हैं | रविवार 23  अगस्त 2023 गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय :-तुलसीदास जयंती हैं | उनकी जयंती के अवसर पर हम आपको उनके जीवन से जुडी बाते बताने जा रहे हैं |

प्रयाग के पास बाँदा जिले में राजापुर नामक एक ग्राम हैं , वहाँ आत्माराम दुबे नाम के प्रतिष्ठित सरयू पारीण ब्राह्मण रहते थे | उनकी धर्म पत्नी का नाम हुलसी था | 1554 की श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन अभुक्तमूल नक्षत्र में इन्ही भाग्यवान दम्पति के यहाँ बारह महीने गर्भ रहने के बाद गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म हुआ | जन्मते समय बालक तुलसीदास जी रोये नहीं , किन्तु उनके मुख से राम का नाम निकला |उनके मुख में बत्तीसो दांत मोजूद थे | उनका डील दोल पञ्च वर्ष के बालक के समान था | इस प्रकार अदभुद बालक को देखकर पिता अमंगल की शंका से भयभीत हो गये और उनके सम्बन्ध में की सारी  कल्पनाये करने लगे | माता हुलसी को यह देखकर बहुत चिंता हुई | उन्होंने बालक के अनिष्ट की आशंका दशमी की रात को नवजात शिशु को अपनी दासी के साथ ससुराल भेज दिया | और दुसरे दिन स्वयं इस संसार से चल बसी |हनुमान चालीसा

दासी जिसका नाम चुनिया था | बड़े प्रेम से पालन – पोषण किया | जब तुलसी दास जी लगभग साढ़े पाँच वर्ष के हुए ‘ चुनिया ‘ का भी देहांत हो गया , अब बालक अनाथ हो गया | वह द्वार द्वार भटकने लगा | इस पर जगजननी माँ पार्वती को उस बालक पर दया आ गई | वे ब्राह्मणी रूप धारण कर प्रतिदिन बालक के पास जाती और उसे अपने हाथों से भोजन करवाती | सुन्दर काण्ड

इधर भगवान शंकर जी की प्रेरणा से राम शैल पर रहने वाले श्री अनन्तानन्दजी के प्रिय शिष्य श्री नरहमनिनन्दजी ने इस बालक को ढूंढ लिया और इनका नाम राम बोला रखा | उसे ये अयोध्या ले गये और  वहाँ संवत 1561 में माघ शुक्ला पंचमी शुक्रवार को उनका यज्ञोपवित संस्कार करवाया | बिना सिखाये ही बालक रामबोला ने गायत्री मन्त्र का उच्चारण कर लिया जिसे देखकर सब लोग चकित रह गये | इसके बाद नरहरि स्वामी ने वैष्णवो के पञ्च संस्कार करके रामबोला को राम मन्त्र की दीक्षा दी और अयोध्या में ही रहकर विद्याध्ययन करवाने लगे | बालक राम बोला की बुद्धि बड़ी प्रखर थी |रामायण मनका 108

एक बार गुरु मुख से जो सुन लेते थे उन्हें वह कंठस्थ हो जाता था | वहा से कुछ दिन बाद गुरु शिष्य दोनों सुकर क्षेत्र पहुचे | वहाँ श्री नरहरि दास जी रामचरितमानस सुनाया | कुछ दिन बाद वे काशी चले आये | काशी में शेष सनातन जी महाराज के पास रहकर वेद वेदांग का अध्यन किया | इधर उनकी लोक वासना कुछ जाग्रत हुई और अपने विद्या गुरु से आज्ञा लेकर ये अपनी जन्म भूमि लौट आये | यहाँ आकर इन्होने देखा की इनका परिवार सब नष्ट हो चूका हैं | उन्होंने विधि पूर्वक पिता का श्राद्ध करवाया और वही रहकर लोगो को राम कथा सुनाने लगे | रामवतार स्तुति

संवत् 1586 ज्येष्ठ शुक्ला तेरस गुरुवार को भाद्वाज गोत्र की एक सुंदर कन्या से उनका विवाह हुआ | वे सुखपूर्वक अपनी नवविवाहित वधु के साथ रहने लगे | एक बार उनकी पत्नी अपने भाई के साथ मायके चली गई | पीछे पीछे तुलसीदास जी भी वहाँ जा पहुंचे | उनकी पत्नी ने इस पर उन्हें धिक्कारा और कहा की “ मेरे इस हाड मांस के शरीर में जितनी तुम्हारी आसक्ति हैं , उससे आधी भी यदि भगवान में होती तो तुम्हारा बेडा पार हो गया होता |

तुलसीदास जी को ये शब्द लग गये | वे एक क्षण भी नहीं रुके , तुरंत वहाँ से चल दिए | सीताराम सीताराम सीताराम कहिये

वहाँ से चलकर तुलसीदास जी प्रयाग आये | वहाँ उन्होंने गृहस्थ वेश का परित्याग कर साधू वेश धारण कर लिया | फिर तीर्थाटन करते हुए काशी पहुंचे | मानसरोवर के पास उन्हें काकभुशुंडी जी के दर्शन हुए | काशी में तुलसीदास जी राम कथा कहने लगे | वहाँ उन्हें एक दिन एक प्रेत मिला जिसने उन्हें हनुमान जी का पता बतलाया | हनुमान जी से मिलकर तुलसीदास जी ने उनसे श्री राम चन्द्र जी के दर्शन करने की प्रार्थना की | हनुमान जी ने कहा – ‘ तुम्हे चित्रकूटधाम में हनुमान जी के दर्शन होंगे | ‘ इस पर तुलसीदास जी चित्रकूटधाम की और चल पड़े | आरती रामचन्द्र जी की

चित्रकूटधाम पहुंचकर रामघाट पर उन्होंने अपना आसन जमाया | एक दिन वे पददक्षिणा करने निकले थे | मार्ग में उन्हें श्री रामचन्द्र जी के दर्शन हुए | उन्होंने देखा की दो बड़े ही सुंदर राजकुमार घोड़ों पर सवार होकर धनुष बाण लिये जा रहे हैं | तुलसीदासजी उन्हें देखकर मुग्ध हो गये , परन्तु उन्हें पहचान न सके | पीछे से हनुमान जी ने आकर सारा भेद बतलाया तो वे पश्चाताप करने लगे | हनुमान जी ने उन्हें सांत्वना दी और कहा प्रात: काल फिर दर्शन होंगे |

संवत् 1607 की मोनी अमावस्या बुधवार के दिन उनके सामने भगवान श्री राम पुनः प्रगट हुए | उन्होंने

बालक रूप तुलसीदास जी से कहा – बाबा ! हमे चन्दन दो ! हनुमान ने सोचा , वे इस बार धोखा न खा जाये , इससे उन्होंने तोते का रूप धारणकर यह दोहा कहा –

चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर | तुलसीदास चन्दन घिसे तिलक करे रघुवीर || श्री रामावतार

तुलसीदास जी उस अदभुद छबी को निहार कर शरीर की सुधि भूल गये | भगवान ने अपने हाथ से चन्दन लेकर अपने तथा तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और अंतर्ध्यान हो गये |

संवत् 1628 में ये हनुमान जी आज्ञा से अयोध्या की और चल पड़े ; उन दिनों प्रयाग में माघ मेला था | वहाँ कुछ दिन ठहर गये | पर्व के छ: दिन बाद एक वट वृक्ष के नीचे उन्हें भारद्वाज और याज्ञ वल्व्य मुनि के दर्शन हुए | वहाँ उस समय वही कथा हो रही थी जो उन्होंने अपने गुरु से सुनी थी | वहाँ से काशी चले आये और वहाँ प्रहलाद घाट पर एक ब्राह्मण के घर निवास किया | वहाँ उन्हें बंदर कवित्व शक्ति का स्फुरण हुआ और वे संस्कृत में पद्य रचना करने लगे | परन्तु दिन में जितने पद्य लिखते थे रात्रि में वे सब लुप्त हो जाते | यह घटना रोज घटती | आठवे दिन तुलसीदास जी को स्वप्न हुआ | भगवान शंकर ने उन्हें आदेश दिया कि तुम अपनी काव्य रचना करो | तुलसीदासजी की नींद उचट गई | वे उठकर बैठ गये | उसी समय भगवान शिव और माँ पार्वती उनके सामने प्रगट हुए | तुलसीदास जी ने उन्हें साष्टांग प्रणाम किया | शिवजी ने कहा – ‘ तुम अयोध्या जाकर रहो और काव्य रचना करो | मेरे आशीर्वाद से तुम्हारी कविता सामवेद के समान फलित होगी | इतना कहकर अंतर्ध्यान हो गये | हनुमान जी की आरती

संवत् 1631 का प्रारम्भ हुआ |  इस साल रामनवमी के दिन राम जन्म के समान योग का दिन था | उस दिन प्रात:काल श्री तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की | दो वर्ष सैट माह छब्बीस दिन में ग्रन्थ की समाप्ति हुई |

संवत् 1633 के मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष में रामविवाह के दिन सातों कांड पूर्ण हो गये | इसके बाद भगवान की आज्ञा से तुलसीदास जी काशी चले आये | वहाँ उन्होंने भगवान विश्वनाथ और माता अन्न पूर्णा को रामचरितमानस सुनाया | रात को पुस्तक श्री विश्वनाथ जी के मन्दिर में रख दी गयी | सवेरे जब पट खुले तो उस पर ‘ सत्यं शिवं सुन्दरम् ‘ लिखा हुआ पाया | उस समय उपस्थित जनों ने ‘ सत्यं शिवं सुन्दरम् ‘ की आवाज भी कानो से सुनी |

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