होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा रविवार दिनांक 6   मार्च 2023  सोमवार   

होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा रविवार दिनांक 6   मार्च 2023   को  प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा होने के कारण इसी दिन होली का त्यौहार हैं | इस दिन होलिका तथा प्रहलाद की पूजा की जाती हैं , पूजा के पश्चात होलिका दहन किया जाता हैं | होलिका दहन के अगले दिन रंगो का त्यौहार धुलेंडी मनाया जाता हैं | घर में सुख़ – शान्ति , सन्तान प्राप्ति , आरोग्य के लिए महिलाये होलिका तथा प्रहलाद की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं | तथा बसन्त ऋतु के स्वागत के लिए यह त्यौहार मनाया जाता हैं | होलिका दहन का मुहूर्त –  06   बजकर 27    मिनट से 6  बजकर  39   मिनट तक हैं 

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रीति – रिवाज पूर्व तैयारी

फाल्गुन सुदी एकादशी को या होली से पहले शुभ मुहूर्त देखकर गाय के गोबर से बडकुल्ला 11 , 21 ,51 आपकी इच्छा से बनाये | नारियल में पैसे व भाई की पसंद की मिठाई रखे , तलवार , एक चाँद , एक सूरज ,  एक जीभ बनाये | बडकुल्ला की माला बनाये | घर में जितनी लडकिय हो उतनी माला बनाये व कुवारी लडकिया होलिका के चढ़ा कर नारियल अपने भाई से बदरवाये [ तुडवाये ] व नारियल में रखे पैसे व मिठाई अपने भाई को दे देवे | ऐसी मान्यता हैं की ऐसा करने से भाई – बहन का प्यार अटूट होता हैं |  इस दिन सब स्त्रिया कच्चे सूत की कुकडी , जल का लोटा , नारियल , कच्चे गेहु की बालियां , कच्चे चने युक्त डालियो से होली की पूजा करे | पूजन के बाद शुभ मुहूर्त में होलीका दहन किया जाता हैं |

कच्चे गेहु चने की बालियाँ होलिका दहन में सेककर , वहाँ से थोड़ी आग वापस घर लाकर नारियल का भोग लगाकर सारे घर में घुमाये | ऐसी मान्यता हैं की ऐसा करने से घर से नकारात्मक उर्जा बाहर जाती हैं तथा सकारात्मक उर्जा का प्रसार होता हैं | घर के सारे कष्ट दुर हो जाते हैं | सुख़ – शान्ति तथा धन – धान्य के भंडार भरे रहते हैं |

होलाष्टक आरम्भ

इस वर्ष 2022  में होलाष्टक11  मार्च  को लगेगा और 18   मार्च 2021 तक रहेगा | इन दिनों में शुभ कार्य वर्जित रहेंगे | होली के आठ दिन पहले होलाष्टक आरम्भ हो जाते हैं | होलाष्टक में शुभ कार्य वर्जित होते हैं | ज्योतिषियों के अनुसार शुभ मुहूर्त में किये गये कार्य विशेष फलदाई होते हैं |

ढूंढ पूजना

फाल्गुन सुदी एकादशी को नवजात बच्चो का ढूंढ पूजन करवाया जाता हैं | जब किसी नवजात बच्चे या बच्ची का जन्म होता हैं उसी वर्ष होली से पहले आने वाली एकादशी को ढूंढ पूजन किया जाता हैं | कई जगह ऐसी मान्यता हैं की जब तक ढूंढ नहीं पूजा जाता तब तक सीधा तिलक नहीं लगाते | इस में परिवार के सभी सदस्य शामिल होते हैं | भुवा , बहने ,व ननिहाल वाले नवजात बच्चे व परिवार के सदस्यों के लिए नये वस्त्र उपहार लाते हैं | महिलाये मंगल गीत व ढ़ोल पर नाच कर अपनी ख़ुशी प्रकट करती हैं |

होली की  पौराणिक कथा

अहंकारी राजा हिरण्यकश्प को   ब्रह्माजी  से यह वरदान प्राप्त था संसार में कोई भी जीव – जन्तु , देवी – देवता , राक्षस ,मानव उसे न मार सकें | न व दिन में मरेगा ,न रात में , न पृथ्वी पर ,न आकाश में , न घर में , न बाहर ,न कोई  सशत्र भी उसे मार नहीं सकता |

ऐसा वरदान पाकर व अहंकार के वशीभूत होकर अपने आप को भगवान समझने लगा |हिरण्यकश्यप के यहाँ प्रहलाद  परमात्मा को मानने वाला भक्त पुत्र पैदा हुआ | प्रहलाद भगवान विष्णु का परम् भक्त था और उस पर प्रभु नारायण की असिम कृपा थी | हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद तथा राज्य निवासियों को आदेश दिया की अब तुम्हारा भगवान में ही हूँ तुम मेरी ही आराधना करो |प्रहलाद के नहीं मानने पर उसको अपना शत्रु समझने लगा और उसको मारने के अनेक उपाय किये , पर प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ |

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हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि में नहीं जलने का वरदान प्राप्त था |हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन के साथ मिलकर प्रहलाद कोमारने की योजना बनाई | होलिका बालक प्रहलाद को गोद में लेकर आग में जलाने के लिए बैठ गई | भगवान नारायण की कृपा से होलिका जल गई और बालक प्रहलाद को मारने के प्रयास असफल हो गया बुराई पर सत्य की जीत हुई |

तथी से होली का त्यौहार मनाया जाता हैं |  भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार धारण कर खम्बे से निकल कर गोधुली बेला में  दरवाजे की चोखट पर बैठकर अपने नाखूनों से अत्याचारी राजा  हिरण्यकश्यप का वध किया  |

तभी  से होली का त्यौहार मनाया जाता हैं |

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