पाबूजी [ लोक देवता ] pabuji lok devta

पाबूजी महाराज इनका जन्म संवत 1313 कोलुमंड गाँव , फलौदी , जोधपुर में हुआ था | इनके पिता का नाम धांधल जी राठौड़ था | पाबूजी को ‘ लक्ष्मण जी का अवतार ‘ एंव ‘ ऊँटो के देवता ‘ के रूप माना गया हैं | पाबूजी को लोकदेवता के रूप में पूजा जाता हैं | वीरता , प्रतिज्ञा पालन , त्याग , शरणागत – वत्सलता एंव गौ रक्षा हेतु स्वयं बलिदान देने के कारण राजस्थान की जनता पाबूजी की देवता के रूप में पूजा करती हैं | राजस्थान में इनके यशगान स्वरूप ‘ पावडे ‘ गीत गाये जाते हैं  व मनोकामना पूरी होने पर पाबूजी की फड बांची जाती हैं | ‘ पाबूजी की फड ‘ का सभी भक्त जनों का विशेष महत्त्व हैं |

पाबूजी को लक्ष्मण जी का अवतार माना जाता हैं | इनका स्वरूप अत्यंत मनमोहक हैं इनके रूप का वाणी से वर्णन करना असम्भव हैं | इन्हे घोड़े पर सवार हाथ में भाला लिए हुए सिर पर केसरिया पगड़ी मन को मोहने वाला अदभुद रूप हैं |

मारवाड़ के कोलू गाँव में पाबूजी का मुख्य थान हैं | यहाँ पाबूजी का विशाल मेला लगता हैं व भोपे पाबूजी की फड बांचते हैं | साथ में सभी भक्त जन नृत्य करते हैं | ये थोरी जाती के होते हैं | फड – कपड़े पर पाबूजी के जीवन पर आधारित चित्रों से बनी एक चित्र श्रंखला होती हैं | पाबूजी से मन्नत मांगने पर ऊँटो की बीमारी दुर हो जाती हैं |

इसके अतिरिक्त यंहा के गाँवो में पाबूजी के [ स्थल ] चबूतरे हैं | पाबूजी की महिमा और वीरता का गान यहाँ चारणों , भाटो तथा कवियों ने विभिन्न दोहों , कवित्तों , रूपकों , छन्दों , गीतों , पवाडों, सोरठों आदि में किया हैं | ‘ पाबूजी री बात ‘ और ‘ पाबूजी री गाथा ‘ में भी उनके गोरक्षार्थ किये युद्ध का वर्णन तथा उनके उद्दात जीवन – चरित्र की विविध घटनाएँ वर्णित हैं | पाबूजी की कथा  { जनश्रुति पर आधारित } पाबूजी का विवाह अमरकोट के सोढा राणा सूरजमल की पुत्री के साथ तय हुआ | वीर पाबूजी राठोड ने अपने विवाह के फेरे लेते हुए सुना कि डाकू एक अबला देवल चारणों की गायों का हरण करके ले जा रहे हैं | पाबूजी ने गायों की रक्षा का वचन दे रखा था | गायों के अपहरण की बात सुनते ही पाबूजी आधे फेरे छोड़ कर गायों की रक्षा करते हुए वीर गति को प्राप्त हुए | इसी कारण पाबूजी को गायों , ऊँटो एवं अन्य पशुओं का रक्षक माना जाता हैं | इन्हे ‘ प्लेग ‘ रक्षक भी माना जाता हैं |

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