अचला सप्तमी [ माघी सप्तमी ] व्रत कथा , व्रत विधि
Achala Saptami Vrat Katha , Achala Saptami Vrat Vidhi
माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अचला सप्तमी का व्रत किया जाता हैं | इस व्रत को करने से रूप , सौभाग्य , सन्तान , आरोग्य और अनन्त पुण्य प्राप्त होता हैं | इस दिन भगवान सूर्यनारायण की पूजा अर्चना की जाती हैं | इस व्रत में नमक खाना वर्जित होता हैं |
अचला सप्तमी व्रत विधि
Achala Saptami Vrat Vidhi
प्रातकाल स्नानादि से निर्वत होकर सूर्य भगवान को अर्ध्य प्रदान कर किसी नदी या तालाब पर दीपदान करे |
देवता और पितरो का तर्पण करे |
धुप , दीप नैवैध्य भगवान सूर्यनारायण का पूजन करे |
भगवान सूर्यनारायण से शुख शांति तथा दुखो के नाश की प्रार्थना करे |
यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान दक्षिणा देवे |
जो स्त्री या पुरुष विधि पूर्वक अचला सप्तमी का व्रत करता हैं उसे सम्पूर्ण माघ स्नान के समान फल मिलता हैं |
अचला सप्तमी व्रत की कथा
Achala Saptami Vrat Katha
मगध देश में इंदुमती नाम की एक वैश्या रहती थी | एक दिन उसने सोचा की यह संसार नश्वर हैं यहाँ किस प्रकार मोक्ष प्राप्त किया जा सकता हैं |
यह विचार कर वैश्या महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में चली गई और उन्हें हाथ जौडकर विनती की – महाराज ! मैंने जीवन में कभी कोई जप तप दान पुण्य , व्रत , उपवास नहीं किया आप मुझे कोई ऐसा व्रत बतलाये जिसके करने से मेरा उद्धार हो |
वैश्या की विनती सुनकर महर्षि वशिष्ठ मुनि ने कहा माघ मास के शुक्ल पक्ष की अचला सप्तमी का व्रत विधिपूर्वक करने को कहा वैश्या ने विधिपूर्वक अचला सप्तमी व्रत किया | अचला सप्तमी व्रत के प्रभाव से वैश्या बहुत काल तक सांसारिक सुख भोगकर अंत में इंद्र की अप्सराओं में स्थान प्राप्त किया |
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