23  जुलाई 2021  शुक्रवार  

कोकिला व्रत का महत्त्व

इस व्रत को करने से सुख़ , सौभाग्य , अखंड सौभाग्य , पुत्र , सुख़ – समृद्धि ,  पति पत्नी में प्रेम बढ़ता हैं | इस व्रत को विधि – विधान से करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती हैं | यह व्रत स्त्रियाँ के द्वारा किया जाता हैं | इस व्रत को करने से अहिल्या ने पाप मुक्ति पाई थी | माता सीता , माता रुक्मणी  और किर्तिमाला ने इस व्रत को किया था |

कोकिला व्रत पूजन विधि

सौभाग्यवती स्त्रियाँ इस व्रत को आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि से आरम्भ होकर श्रावण मास की पूर्णिमा को समाप्त होता है | व्रत के समय उबटन लगाकर नित्य प्रात: स्नान करना चाहिए  , एक समय भोजन करना चाहिए  , भूमि शयन करे  ,ब्रह्मचार्य व्रत का पालन करे  , प्राणियों पर दया करे , पराई निंदा नहीं करे  , विधि विधान से पूजन करनी चाहिये |

कोकिला व्रत कथा कोकिला व्रत की कहानी 

यमुना तट पर मथुरा नामक एक सुन्दर नगरी हैं | वहाँ रामचन्द्रजी ने अपने भाई शत्रुघ्न को राजा के पद पर प्रतिष्ठित किया था | उनकी रानी का नाम किर्तिमाला था | वह बड़ी पतिव्रता स्त्री थी |एक दिन कीर्तिमाला ने अपने गुरु वशिष्ठ जी से पूछा – मुनिश्रेष्ठ ! आप कोई ऐसा व्रत बताये जिससे सौभाग्य , पुत्र , सुख़ – समृद्धि आये |
आषाढ़ मास की पूर्णिमा को संकल्प करे की श्रावण महीने में पुरे महीने नित्य स्नान , तारों की छाँव में भोजन , भूमि शयन ,ब्रह्मचर्यं का पालन औए प्राणियों पर दया करूंगी | नदी या तीर्थ स्थान पर उबटन [ तिल का उबटन ] लगाकर आठ दिन स्नान करे | सर्वोषधियो का उबटन लगाकर आठ दिन स्नान करे | शेष दिनों में जौके आटे , हल्दी का उबटन लगाकर स्नान कर सूर्य भगवान का ध्यान करे | तिल को पिस कर कोकिला पक्षी की मूर्ति बनाकर  लाल पुष्प , लाल चन्दन , अगरबत्ती ,तिल , चावल , दूर्वा से यह मन्त्र बोलकर पूजा करे |

तिलसहे  तिलसौख्ये  तिलवर्ण  तिलप्रिये  |

सौभाग्यद्रव्यपुत्रास्रच देहि में कोकिले नम: ||

आप तिल के समान श्याम वर्ण की हैं | आपको तिल अत्यंत प्रिय हैं | आप मुझे सौभाग्य , सम्पति तथा सन्तान प्रदान करे | आपके श्री चरणों में मेरा बारम्बार नमस्कार | इस प्रकार पूजन कर भोजन ग्रहण करे | इस विधि से एक मास तक व्रत पूजन के लम्बे के बर्तन में कोकिला पक्षी को रख वस्त्र दक्षिणा शिन ब्राह्मण को दान करे |

इस विधि से जों स्त्री व्रत करती वह जन्म जन्म तक अखंड सोभाग्यवती रहती है | वशिष्ठ जी से व्रत का विधान जानकर किर्तिमाला ने यह व्रत किया और अखण्ड सौभाग्य उत्तम सन्तान , सुख़ – समृद्धि , और शत्रुघ्न जी का साथ प्राप्त हुआ |

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